पाठ्यक्रम: GS1/इतिहास
समाचारों में
- 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है, जो भगवान बिरसा मुंडा की जयंती का स्मरण है। भारत सरकार ने 2021 में इस दिन को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित किया।
बिरसा मुंडा
- उनका जन्म 1874 में झारखंड के उलिहातु गाँव में हुआ था।
- वे एक आध्यात्मिक सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे।
- उन्हें धरती आबा (“पृथ्वी के पिता”) के नाम से जाना जाता है।
- उन्होंने उलगुलान या “महान कोलाहल” (1899–1900) (जिसे मुंडा विद्रोह (1895–1900) भी कहा जाता है) का नेतृत्व किया, जो जनजातीय स्वशासन और खुंटकटी (सामुदायिक भूमि अधिकार) की पुनर्स्थापना के लिए एक प्रचंड आंदोलन था।
- उन्होंने ब्रिटिश भूमि कानूनों और सामंती शोषण के विरुद्ध मुंडा जनजातियों को एकजुट किया।
- उन्होंने एक नैतिक, स्वशासित समाज की कल्पना की जो औपनिवेशिक प्रभाव से मुक्त हो।
- उन्हें पकड़ा गया और मात्र 25 वर्ष की आयु में रांची जेल में शहीद कर दिया गया।
| मुंडा विद्रोह (1895–1900) – जिसे उलगुलान (महान कोलाहल) भी कहा जाता है, यह बिरसा मुंडा द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन, शोषक बाहरी लोगों (जिन्हें दिकु कहा जाता था), और छोटानागपुर क्षेत्र में पारंपरिक जनजातीय प्रणालियों के क्षरण के विरुद्ध किया गया एक प्रमुख जनजातीय आंदोलन था। – यह विद्रोह जनजातीय प्रतिरोध का एक ऐतिहासिक घटना माना जाता है और अंततः छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (CNT Act) 1908 जैसे विधायी सुधारों को प्रेरित किया, जिसने जनजातीय भूमि अधिकारों की रक्षा की। विद्रोह के प्रमुख कारण – आर्थिक शोषण और भूमि से बेदखली: ब्रिटिश राजस्व नीतियों ने पारंपरिक खुंटकटी प्रणाली को नष्ट कर दिया। भूमि ज़मींदारों, महाजनों, ठेकेदारों और गैर-जनजातीय बसने वालों (दिकु) को हस्तांतरित कर दी गई, जिससे जनजातीय भूमि का व्यापक हरण हुआ। – जबरन मज़दूरी (बेथ बेगारी): जनजातियों, विशेषकर मुंडाओं को ब्रिटिश और दिकुओं के लिए अनिवार्य, प्रायः बिना वेतन की मज़दूरी करनी पड़ती थी, जिससे उनकी कठिनाइयाँ बढ़ीं और असंतोष भड़क उठा। – धार्मिक और सांस्कृतिक दमन: मिशनरी गतिविधियाँ, जबरन धर्मांतरण और विदेशी कानूनों का थोपना पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं के लिए खतरा बन गया। – राजनीतिक हाशिए पर डालना: ब्रिटिश प्रशासन ने मुंडाओं के भूमि, न्याय और स्वशासन के पारंपरिक अधिकार छीन लिए, जिससे उनकी स्वायत्तता एवं पारंपरिक नेतृत्व कमजोर हो गया। – पहचान का दावा और बिरसा मुंडा का नेतृत्व: बिरसा मुंडा के नेतृत्व ने नई पहचान, आध्यात्मिक पुनर्जागरण और जनसमुदाय को संगठित करने की शक्ति दी, जिससे समुदाय औपनिवेशिक शोषण का विरोध करने तथा अपने अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए एकजुट हुआ। |
सरकार के कदम
- जनजातीय गौरव दिवस बिरसा मुंडा की विरासत और अनुसूचित जनजातियों के योगदान का सम्मान करता है, जिसका उद्देश्य उनके संघर्षों और धरोहर को भारत की राष्ट्रीय चेतना में समाहित करना है।
- जनजातीय गौरव वर्ष और 11 समर्पित संग्रहालयों जैसी पहलों के माध्यम से सरकार एक भारत, श्रेष्ठ भारत की दृष्टि को सुदृढ़ करती है—एक ऐसा राष्ट्र जो सभी समुदायों का उत्सव मनाता है।
- ये संग्रहालय, जनजातीय अनुसंधान संस्थानों के समर्थन योजना के अंतर्गत वित्तपोषित हैं, जिनका उद्देश्य उन जनजातीय इतिहासों का दस्तावेज़ीकरण और प्रसार करना है जिन्हें प्रायः मुख्यधारा की कथाओं में नज़रअंदाज़ किया गया है।
Source :PIB
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संक्षिप्त समाचार 14-11-2025