पाठ्यक्रम: GS3/विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
संदर्भ
- भारत लंबे समय से STEM क्षेत्रों में बेहतर शोध अवसरों की खोज में विदेशों में प्रवास की चुनौती का सामना कर रहा है, जिससे भारत की बौद्धिक क्षमता और घरेलू संसाधनों के बीच एक अंतर उत्पन्न हुआ है।
भारत में ब्रेन ड्रेन
- ब्रेन ड्रेन का अर्थ है अत्यधिक कुशल और शिक्षित व्यक्तियों का एक देश से दूसरे देश में बेहतर अवसरों की खोज में प्रवास करना।
- भारत में इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक, आईटी पेशेवर और अकादमिक लोग अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा एवं ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों की ओर दृष्टिकोण करते हैं।
- 2015 से 2022 के बीच 13 लाख भारतीयों ने देश छोड़ा, जिनमें से कई उच्च शिक्षित पेशेवर थे।
- सिर्फ 2022 में ही 2.25 लाख भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है।
- शीर्ष गंतव्य: अमेरिका, कनाडा और यूरोप इन कुशल श्रमिकों के प्रमुख गंतव्य बने हुए हैं।
भारत से ब्रेन ड्रेन के कारण
- आर्थिक कारण: विकसित देशों की तुलना में कम वेतन।
- विशेषीकृत कौशल के लिए सीमित रोजगार के अवसर।
- शैक्षिक और पेशेवर अवसर: विश्व स्तरीय शोध अवसंरचना की सीमित उपलब्धता।
- विदेशों में बेहतर प्रशिक्षण, अनुभव और करियर विकास के अवसर।
- उच्च शिक्षा के लिए वैश्विक संस्थानों की प्राथमिकता।
- जीवनशैली और जीवन गुणवत्ता: विदेशों में बेहतर स्वास्थ्य सेवा, अवसंरचना और जीवन स्तर। वैश्विक मान्यता और नेटवर्किंग के अवसर।
- अपर्याप्त शोध निधि और अवसंरचना: भारत का अनुसंधान एवं विकास पर व्यय 2020-21 में GDP का मात्र 0.64% था, जबकि वैश्विक औसत 1.79% है।
चिंताएं
- कुशल मानव संसाधन की हानि: भारत आईटी, चिकित्सा और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में शिक्षा एवं प्रशिक्षण पर भारी निवेश करता है।
- जब अत्यधिक कुशल पेशेवर प्रवास करते हैं, तो देश नवाचार और आर्थिक विकास के लिए आवश्यक प्रतिभा विकसित नहीं कर पाता है।
- धीमी आर्थिक प्रगति: कुशल पेशेवर उद्यमिता, शोध और तकनीकी प्रगति के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। ब्रेन ड्रेन घरेलू उत्पादकता को कम करता है तथा उच्च तकनीकी उद्योगों और स्टार्ट-अप्स के विकास को धीमा करता है।
- स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों पर प्रभाव: बेहतर वेतन और कार्य स्थितियों के कारण डॉक्टरों, नर्सों एवं शिक्षकों की विदेशों में प्रवास से भारत में कमी उत्पन्न होती है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा में कमी: प्रतिभा का लगातार प्रवाह भारत को ज्ञान-आधारित क्षेत्रों में कम प्रतिस्पर्धी बना सकता है।
- अन्य देश भारत के मानव संसाधन निवेश से लाभ उठाते हैं, बिना लागत साझा किए।
सरकारी पहलें
- प्रधानमंत्री अनुसंधान फेलोशिप (PMRF): 2018 में शुरू की गई, यह योजना शीर्ष शोध प्रतिभा को बनाए रखने के लिए ₹70,000-80,000 मासिक वृति और ₹2 लाख वार्षिक शोध अनुदान प्रदान करती है।
- चिकित्सा शिक्षा विस्तार: मेडिकल कॉलेजों की संख्या 2013-14 में 387 से बढ़कर 2025-26 में 808 हो गई, स्नातक सीटों में 141% और स्नातकोत्तर सीटों में 144% की वृद्धि हुई।
- VAJRA (विजिटिंग एडवांस्ड जॉइंट रिसर्च) योजना: विदेशी वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को भारतीय संस्थानों के साथ सहयोग के लिए आमंत्रित करती है।
- अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (ANRF): अनुसंधान एवं विकास निवेश को बढ़ाने और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने के लिए स्थापित, केंद्रीय बजट 2024 में निजी क्षेत्र के R&D के लिए ₹20,000 करोड़ का कोष बनाया गया।
- राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF): विश्वविद्यालयों को शोध और अकादमिक मानकों में सुधार के लिए प्रोत्साहित करता है।
- रामानुजन फेलोशिप और INSPIRE फैकल्टी योजना: विदेशों में अनुभव प्राप्त युवा भारतीय वैज्ञानिकों को भारत लौटने के लिए आकर्षित करती है।
आगे की राह
- पुनःप्रवासन प्रयासों की प्रेरणा: अमेरिका में वृति और अकादमिक प्रतिबंध जैसी नीतियों ने भारत के लिए अपने प्रवासी नागरिकों को वापस लाने का अवसर सृजित किया है।
- गूगल का आंध्र प्रदेश में $15 बिलियन का एआई हब जैसे निवेश लौटने वाली प्रतिभा के लिए सहयोग के अवसर दर्शाते हैं।
- शिक्षा और अनुसंधान निधि: भारत शिक्षा पर GDP का 3-4% व्यय करता है, जो वैश्विक औसत 4.9% से कम है। इसे 5% तक बढ़ाना इस अंतर को समाप्त करने में सहायता करेगा।
- R&D व्यय में वृद्धि: भारत को अनुसंधान एवं विकास पर वर्तमान 0.64% से बढ़ाकर कम से कम 2% GDP व्यय करना चाहिए ताकि वैश्विक मानकों की बराबरी की जा सके।
- विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तरह निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़नी चाहिए।
- स्वतंत्रता और अकादमिक खुलापन: दीर्घकालिक प्रतिभा बनाए रखने और नवाचार के लिए अकादमिक स्वतंत्रता आवश्यक है।
- विद्वानों की निर्वासन और प्रतिबंध की घटनाएं संभावित वापसी करने वालों को हतोत्साहित करती हैं।
निष्कर्ष
- प्रतिभा को वापस लाना केवल प्रथम कदम है; भारत को ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाना होगा जहां विकसित हो सके—सुदृढ़ संस्थानों, अकादमिक स्वायत्तता, वित्त पोषण और चुनौतीपूर्ण प्रश्नों के प्रति खुलेपन के माध्यम से।
Source: IE
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संक्षिप्त समाचार 22-10-2025