श्रम शक्ति नीति, 2025 के मसौदे का अनावरण

पाठ्यक्रम: GS2/सरकारी नीति और हस्तक्षेप

संदर्भ

  • हाल ही में केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने भारत के श्रम परिदृश्य को पुनः आकार देने के उद्देश्य से “श्रम शक्ति नीति 2025” नामक राष्ट्रीय श्रम एवं रोजगार नीति का मसौदा जारी किया है। यह वर्तमान में सार्वजनिक प्रतिक्रिया के लिए खुला है।

श्रम शक्ति नीति 2025 के बारे में 

  • इसका उद्देश्य एक ऐसा श्रम पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है जो समावेशी, न्यायसंगत और लचीला हो, प्रत्येक श्रमिक के लिए गरिमा, सुरक्षा एवं अवसर सुनिश्चित करता हो, तथा जो श्रम धर्म—कार्य की नैतिक मूल्य प्रणाली—की सभ्यतागत भावना में निहित हो।

नीति की प्रमुख विशेषताएं 

  • सार्वभौमिक और पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा: नीति का उद्देश्य सभी श्रमिकों—औपचारिक और अनौपचारिक दोनों—के लिए सार्वभौमिक एवं पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा स्थापित करना है।
    • यह एक सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा खाता (USSA) के निर्माण की परिकल्पना करती है, जिसे निम्नलिखित प्रमुख कल्याण और बीमा प्रणालियों के एकीकरण से प्राप्त किया जाएगा:
      • कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO);
      • कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC);
      • प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY);
      • ई-श्रम पोर्टल;
      • राज्य कल्याण बोर्ड।
  • कौशल विकास और रोजगार: नीति कौशल और रोजगार के बीच निरंतरता की परिकल्पना करती है, जिसमें स्किल इंडिया, राष्ट्रीय अप्रेंटिसशिप प्रोत्साहन योजना एवं प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना जैसे प्रमुख कार्यक्रमों का समावेश होगा।
    • इनका समर्थन एक डिजिटल रूप से उन्नत राष्ट्रीय करियर सेवा–डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (NCS-DPI) द्वारा किया जाएगा, जिसे भारत के शहरों, कस्बों एवं MSME क्लस्टरों में प्रतिभा को अवसर से जोड़ने के लिए डिज़ाइन किया गया है। 
  • श्रम एवं रोजगार मंत्रालय राष्ट्रीय रोजगार सुविधा प्रदाता और नियामक के रूप में कार्य करने का लक्ष्य रखता है, जो श्रमिकों, नियोक्ताओं एवं प्रशिक्षण संस्थानों के बीच समन्वय को सक्षम बनाएगा।
  • निगरानी और जवाबदेही
    • रीयल-टाइम डैशबोर्ड;
    • श्रम एवं रोजगार नीति मूल्यांकन सूचकांक (LPEI) जो राज्यों के प्रदर्शन को मापेगा;
    • संसद को वार्षिक राष्ट्रीय श्रम रिपोर्ट;
    • बाहरी मूल्यांकन और जवाबदेही के लिए स्वतंत्र तृतीय-पक्ष समीक्षा।

कार्यान्वयन संरचना (तीन-स्तरीय)

  • राष्ट्रीय स्तर: श्रम मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय श्रम एवं रोजगार नीति कार्यान्वयन परिषद (NLPI)।
  • राज्य स्तर: राज्य श्रम मिशन जो स्थानीय कार्यान्वयन सुनिश्चित करेंगे।
  • जिला स्तर: जिला श्रम संसाधन केंद्र (DLRCs) जो पंजीकरण, कौशल विकास, रोजगार मिलान और शिकायत निवारण के लिए एकल-खिड़की केंद्र के रूप में कार्य करेंगे।

कार्यान्वयन रोडमैप (तीन चरण)

  • चरण I (2025–27): संस्थागत ढांचे की स्थापना और सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों का एकीकरण।
  • चरण II (2027–30): सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा खातों का राष्ट्रव्यापी विस्तार, कौशल क्रेडिट प्रणालियों की स्थापना और जिला स्तर पर रोजगार सुविधा केंद्रों का निर्माण।
  • चरण III (2030 के बाद): पेपरलेस शासन की ओर संक्रमण, पूर्वानुमान विश्लेषण को अपनाना और नीति का सतत नवीकरण।

अपेक्षित परिणाम

  • सार्वभौमिक श्रमिक पंजीकरण और सामाजिक सुरक्षा की पोर्टेबिलिटी;
  • AI-संचालित सुरक्षा प्रणालियों के माध्यम से कार्यस्थल पर लगभग शून्य मृत्यु दर;
  • 2030 तक महिला श्रम बल भागीदारी 35% (वर्तमान में 24%);
  • डिजिटल अनुपालन और पारदर्शिता के माध्यम से अनौपचारिक रोजगार में कमी;
  • लाखों हरित और गरिमापूर्ण रोजगारों का सृजन;
  • एक राष्ट्र एकीकृत कार्यबल पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना।

नीति की कमियाँ और चिंताएं

  • कार्यान्वयन में विखंडन: राज्यों के बीच समन्वय और क्षमता की कमी; अंतर-एजेंसी सहयोग और पर्याप्त वित्तपोषण की आवश्यकता।
  • डिजिटल विभाजन और पहुंच: डिजिटल साक्षरता और इंटरनेट पहुंच विशेष रूप से अनौपचारिक श्रमिकों, महिलाओं एवं ग्रामीण जनसंख्या में असमान बनी हुई है, जबकि नीति AI-संचालित प्रणालियों तथा डिजिटल प्लेटफार्मों पर अत्यधिक निर्भर करती है।
  • गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिक: नीति में प्रवर्तन, योगदान मॉडल और विवाद समाधान के लिए विशिष्ट तंत्रों की कमी है।
  • नौकरियों की गुणवत्ता बनाम मात्रा: नीति में रोजगारों की मात्रा के साथ-साथ गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट रोडमैप नहीं है।
    •  भारत को अपनी बढ़ती श्रम शक्ति को समाहित करने के लिए प्रति वर्ष लगभग 80 लाख गैर-कृषि रोजगारों का सृजन करना होगा।
  • निगरानी और जवाबदेही: स्वतंत्र निगरानी तंत्र स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं हैं। तृतीय-पक्ष ऑडिट और पारदर्शी रिपोर्टिंग के बिना प्रगति को ट्रैक करना तथा जवाबदेही सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • महिला समावेशन की आकांक्षा: 2030 तक 35% महिला श्रम बल भागीदारी एक आकांक्षात्मक लक्ष्य बना रह सकता है यदि ठोस रणनीतियाँ—जैसे कि बाल देखभाल सहायता, कार्यस्थल सुरक्षा और लचीले कार्य प्रबंध—नहीं अपनाई जातीं।

Source: TH

 

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