पाठ्यक्रम :GS2/शासन
समाचारों में
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बढ़ते दुरुपयोग, विशेष रूप से सोशल मीडिया पर, पर चिंता व्यक्त की और आत्मसंयम व नियमन की आवश्यकता पर बल दिया।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ
- न्यायालय ने दोहराया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभ्य समाज की मूलभूत आवश्यकता है और इसे “तुच्छ और मनमाने कारणों” से खराब नहीं किया जा सकता।
- सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) को जीवन और गरिमा के अधिकार (अनुच्छेद 21) के साथ संतुलित किया जाना चाहिए। यदि टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है, तो गरिमा की प्रधानता होगी।
- न्यायालय ने नागरिकों से ऑनलाइन आत्मसंयम रखने की अपील की और यह भी बताया कि अपमानजनक पोस्टों के कारण अनगिनत मुकदमे न्याय व्यवस्था को अवरुद्ध कर रहे हैं। न्यायालय ने चेतावनी दी कि यदि लोग स्वयं नियमन नहीं करते, तो राज्य को हस्तक्षेप करना पड़ सकता है।
संवैधानिक एवं कानूनी संरक्षण: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- भारत में भाषण की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(1)(a) द्वारा संरक्षित है, जो भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत “उचित प्रतिबंध” की अनुमति है — जैसे सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता, राज्य की सुरक्षा, या हिंसा के लिए भड़काना।
- संविधान का अनुच्छेद 361A के अनुसार: यदि कोई व्यक्ति राज्य की विधान सभा के किसी सदन की कार्यवाही का वस्तुनिष्ठ सत्य रिपोर्ट किसी समाचार पत्र में प्रकाशित करता है, तो उसे किसी भी न्यायालय में नागरिक या आपराधिक कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि यह सिद्ध न हो जाए कि प्रकाशन द्वेषपूर्वक किया गया है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सोशल मीडिया का प्रभाव
- आवाजों का सशक्तीकरण: सोशल मीडिया मंचों ने अभिव्यक्ति को लोकतांत्रिक बना दिया है, जिससे व्यक्तियों और हाशिए पर मौजूद समूहों को अपने विचार, अनुभव साझा करने का अवसर मिला है।
- जानकारी का त्वरित प्रसार: समाचार, विचार और विविध दृष्टिकोण सोशल मीडिया पर तुरंत फैलते हैं, जिससे नागरिक अधिक जागरूक बनते हैं और घटनाओं पर तीव्र प्रतिक्रिया संभव होती है।
- पारदर्शिता में वृद्धि: सोशल मीडिया के जरिए सरकारों, कंपनियों और व्यक्तियों की जवाबदेही तय होती है; यह मुखबिरों और नागरिकों को गड़बड़ी उजागर करने का मंच देता है, जिसे अन्यथा दबाया जा सकता था।
चुनौतियाँ एवं चिंताएँ
- गलत जानकारी और भ्रामक सामग्री का प्रसार: सोशल मीडिया पर सामग्री साझा करना बेहद आसान है, जिससे झूठी अफ़वाहें, प्रचार और भ्रामक सूचना फैलने की आशंका रहती है।
- कानूनी और नियामक चुनौतियाँ: विश्व भर की सरकारें सोशल मीडिया सामग्री को नियंत्रित करने और साथ ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखने के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रही हैं।
- भारत में सोशल मीडिया के लिए कोई व्यापक कानून नहीं है। यद्यपि IT अधिनियम, 2000 और अन्य कानूनों की धाराएँ कुछ समस्याओं को संबोधित करती हैं, लेकिन प्रवर्तन असंगत और कमजोर है।
- निजता पर प्रभाव: डिजिटल निगरानी और डेटा एकत्रीकरण का वातावरण ऐसा बना देता है जिसमें लोग स्वतंत्र रूप से अपनी बात कहने से हिचकते हैं।
निष्कर्ष एवं आगे की राह
- सर्वोच्च न्यायालय ने बल दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा केवल कानूनी उपायों से नहीं, बल्कि आत्म-अनुशासन और जन-जिम्मेदारी से भी होती है।
- न्यायालय ने नागरिकों से अपील की कि वे अपने अधिकारों का विवेकपूर्ण उपयोग करें ताकि राज्य को प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता न पड़े।
- ऑनलाइन भाषण का दुरुपयोग लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर कर सकता है।
Source: TH
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संक्षिप्त समाचार 15-07-2025