
2 अक्टूबर, 1904 को जन्मे लाल बहादुर शास्त्री, भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे, जो अपने कूटनीतिक और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण के लिए जाने जाते थे। महत्वपूर्ण वर्षों में नेतृत्व करते हुए, उन्होंने शांति, कृषि आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय एकता का समर्थन किया। उनका प्रसिद्ध नारा “जय जवान, जय किसान” सैनिकों और किसानों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक था, जिसने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारत के संकल्प को मजबूत किया। शास्त्री की सादगी, ईमानदारी और समर्पण उन्हें एक सम्मानित नेता और सच्चे देशभक्त के रूप में स्थापित करते हैं, 2025 में उनकी जयंती पर देश लाल बहादुर शास्त्री को याद करते हुए हर्षोल्लास के साथ यह पर्व मनायेगा।
चर्चा में क्यों?
- भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती 2 अक्टूबर, 2025 के दिन गांधी जयंती के साथ-साथ मनाई जाएगी।
- यह दिन शास्त्री जी की सादगी, ईमानदारी और उनके प्रतिष्ठित नारे “जय जवान, जय किसान” की विरासत पर ज़ोर देता है।
- इस अवसर पर स्कूल, कॉलेज और सरकारी संस्थान उनके आत्मनिर्भरता और देशभक्ति के आदर्शों को पुनर्जीवित करने के लिए विशेष कार्यक्रम, चर्चाएँ और श्रद्धांजलि सभाएँ आयोजित करते हैं।
- सरकारी अधिकारी, नेता और नागरिक भारत की सामाजिक-आर्थिक प्रगति पर शास्त्री जी के प्रभाव और राष्ट्र निर्माण के मूल्यों के लिए उनकी निरंतर प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
शास्त्री जी का प्रारंभिक जीवन
- उनका जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी के एक छोटे से रेलवे शहर मुगलसराय (पंडित दीन दयाल उपाध्याय नगर) में हुआ था। उनके पिता एक शिक्षक थे, जिनका निधन तब हो गया जब वे मात्र डेढ़ वर्ष के थे। उनकी माँ, जो अभी बीस वर्ष की थीं, अपने तीन बच्चों के साथ अपने पिता के घर आकर बस गईं।
- घर पर उन्हें नन्हे या ‘छोटा’ कहकर पुकारा जाता था। गरीबी के कारण अपने छोटे से कस्बे में उनकी शिक्षा कुछ खास नहीं रही, फिर भी उनका बचपन खुशहाल रहा। हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए वे वाराणसी चले गए।
- बाद में, वह वाराणसी के काशी विद्या पीठ में शामिल हो गए, जो ब्रिटिश शासन के विरुद्ध स्थापित संस्थानों में से एक था। वहाँ वे राष्ट्रवादियों और देश के महानतम बुद्धिजीवियों के प्रभाव में आए। इसके अलावा, ‘शास्त्री’ को उसी संस्थान से स्नातक की उपाधि भी मिली।
- शास्त्री के लिए देश सर्वोपरि था, अन्यथा सब कुछ गौण, जिसे बहुत कम उम्र में ही एक व्यापक दृष्टिकोण से प्रदर्शित किया गया। उदाहरण के लिए, वे जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं करते, इसलिए उन्होंने अपना जाति-आधारित उपनाम हटा दिया।
लाल बहादुर शास्त्री के जीवन और योगदान की समयसारणी
| वर्ष/तिथि | घटना/भूमिका | विवरण और उपलब्धियाँ |
| 1904 (2 अक्तूबर) | जन्म | मुगलसराय, उत्तर प्रदेश में जन्म। |
| 1926 | स्नातक | काशी विद्यापीठ से शिक्षा पूर्ण की, “शास्त्री” उपनाम अपनाया। |
| 1928 | कांग्रेस में शामिल | भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। |
| 1937/1946 | निर्वाचित विधायक | यूनाइटेड प्रोविंस की विधानसभा। |
| 1947 | राज्य के पुलिस और परिवहन मंत्री | महिला बस कंडक्टरों की भर्ती शुरू की; प्रशासनिक सुधारों को बढ़ावा दिया। |
| 1952-1963 | नेहरू की कैबिनेट में मंत्री | रेल, परिवहन और संचार, वाणिज्य और उद्योग तथा गृह मंत्रालय के विभाग संभाले। |
| 1961 | गृह मंत्री | भ्रष्टाचार पर संथानम समिति की शुरुआत की। |
| 1964 (9 जून) | भारत के प्रधानमंत्री | गुलजारीलाल नंदा के अंतरिम कार्यकाल के बाद नेहरू के उत्तराधिकारी बने। |
| 1964-1966 | प्रधानमंत्री, प्रमुख नीतियाँ | खाद्य संकट पर ध्यान केंद्रित किया, हरित क्रांति, श्वेत क्रांति की शुरुआत की, अमूल और एनडीडीबी का समर्थन किया। |
| 1964 | श्रीमावो-शास्त्री समझौता | श्रीलंका में भारतीय तमिलों की स्थिति पर समझौता। |
| 1965 | मद्रास विरोधी-हिंदी आंदोलन | अंग्रेज़ी को आधिकारिक भाषा बनाए रखने का आश्वासन दिया; शांति स्थापित की। |
| 1965 | भारत-पाक युद्ध | मज़बूत नेतृत्व का प्रदर्शन किया; “जय जवान जय किसान” का नारा दिया; रक्षा का आधुनिकीकरण किया। |
| 1965 (23 सितम्बर) | भारत-पाक युद्ध का अंत | संयुक्त राष्ट्र द्वारा कराया गया युद्धविराम। |
| 1965 | बर्मा की यात्रा | बर्मी सरकार से मित्रतापूर्ण संबंध पुनः स्थापित किए। |
| 1966 (10 जनवरी) | ताशकंद समझौता | भारत-पाक युद्ध के बाद अयूब ख़ान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर। |
| 1966 (11 जनवरी) | निधन | ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में निधन; मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित। |
लाल बहादुर शास्त्री जयंती और वर्तमान प्रासंगिकता
- लाल बहादुर शास्त्री दिवस 2 अक्टूबर को उनके जन्मदिन की स्मृति में मनाया जाता है, साथ ही यह दिवस महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है।
- यह दिवस शास्त्री जी की सादगी, सत्यनिष्ठा और नेतृत्व की विरासत के साथ-साथ आत्मनिर्भरता और देशभक्ति को बढ़ावा देने का प्रतीक है।
- शास्त्री जी के इन सिद्धांतों को आज के समय में भारत को एकजुट करने, देश में कृषि विकास को बढ़ावा देने और जनसेवा की इच्छा जगाने वाले सिद्धांतों के रूप में देखा जाता है।
- इस दिन आधिकारिक समारोह आयोजित किए जाते हैं, शिक्षा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और जनता उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करती है साथ ही यह दिन भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास और राष्ट्र की भावना पर शास्त्री जी के निरंतर प्रभाव को सुनिश्चित करता है।
गांधी जी और अन्य नेताओं का प्रभाव
- शास्त्री ने स्वतंत्रता संग्राम में गहरी रुचि ली और उसकी इतिहासिक पुस्तकों तथा उस काल के प्रमुख व्यक्तित्वों महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानन्द और एनी बेसेंट आदि के कार्यों का अध्ययन किया।
- उदाहरण के लिए, वे महात्मा गांधी की सादगी, सत्याग्रह आदि जैसी राजनीतिक शिक्षाओं से प्रभावित थे। इसके अतिरिक्त, वे गांधीजी के इस विचार में भी विश्वास करते थे कि “कड़ी मेहनत प्रार्थना के समान है।” बाद में, उन्होंने गांधीवादी जीवन शैली अपनाई। गांधीजी की तरह, वे सत्य को अहिंसा से भी ऊपर मानते थे।
- शास्त्री जी शांति और लोकतंत्र के सच्चे पैरोकार थे। इस प्रकार, उन्होंने भारत को विश्व में शांति का अग्रदूत बनाने की कल्पना की। हालाँकि, वे अपने देश की संप्रभुता की कीमत पर कुछ भी स्वीकार करने को तैयार नहीं थे और हमेशा यह मानते थे कि देश के हितों की रक्षा करना हमारा पहला और सबसे बड़ा कर्तव्य है, चाहे इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े।
- इसलिए, शास्त्री जी ने लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित सर्वेंट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी (लोक सेवक मंडल) के आजीवन सदस्य के रूप में खुद को नामांकित किया और मुजफ्फरपुर में गांधीजी के निर्देशन में हरिजनों की भलाई के लिए काम करना शुरू किया। बाद में, वे इस सोसाइटी के अध्यक्ष भी बने।
लाल बहादुर शास्त्री का दर्शन
वे निष्काम कर्म में दृढ़ विश्वास रखते थे। शास्त्री ने जीवन भर लोगों, विशेषकर ग्रामीण लोगों के उत्थान के लिए अथक प्रयास किया। समन्वयवाद के दर्शन में भी उनकी गहरी आस्था थी, जो एक दार्शनिक जीवन शैली पर आधारित परस्पर विरोधी दृष्टिकोणों के बीच माध्यम मार्ग अपनाती है। शास्त्री जी एक बहुत ही पढ़े-लिखे व्यक्ति थे और साथ ही साहित्य में भी उनकी गहरी रुचि थी।
स्वतंत्रता के बाद शास्त्री का सफ़र
- स्वतंत्रता के बाद, विनम्र और सहज दिखने वाले लाल बहादुर शास्त्री का असाधारण मूल्य पहले ही राष्ट्रीय संघर्ष के नेताओं द्वारा पहचाना जा चुका था। जब 1946 में सरकार का गठन हुआ, तब इस ‘छोटे कद के उर्जावान व्यक्ति’ (little dynamo of a man) को देश के शासन में एक रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए बुलाया गया।
- उन्हें उत्तर प्रदेश में संसदीय सचिव नियुक्त किया गया और बाद में वे गृह मंत्री के पद तक पहुँचे। उत्तर प्रदेश के लोगों ने उनकी कड़ी मेहनत और दक्षता की प्रशंसा की।
- 1951 में, वे नई दिल्ली चले गए और केंद्रीय मंत्रिमंडल में परिवहन एवं संचार मंत्री, रेल मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृह मंत्री जैसे कई विभागों का कार्यभार संभाला।
शास्त्री जी के जीवन की प्रेरक घटना
- शास्त्री जी ने सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और निष्ठा की एक मिसाल कायम की, जब उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान एक रेल दुर्घटना घटी। तमिलनाडु के अरियालुर में हुई एक रेल दुर्घटना, जिसमें 140 से ज़्यादा लोग मारे गए थे, के बाद उन्होंने इस घटना की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया, क्योंकि वे इस रेल दुर्घटना के लिए खुद को इसका ज़िम्मेदार महसूस कर रहे थे। इस अभूतपूर्व कदम की संसद और देश ने काफ़ी सराहना की।
- तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इस घटना पर संसद में बोलते हुए लाल बहादुर शास्त्री की ईमानदारी और उच्च आदर्शों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि वे इस्तीफ़ा इसलिए स्वीकार कर रहे हैं क्योंकि इससे संवैधानिक मर्यादा का एक उदाहरण स्थापित होगा, न कि इसलिए कि वे किसी भी तरह से जो कुछ हुआ उसके लिए ज़िम्मेदार थे।
- रेल दुर्घटना पर लंबी बहस का जवाब देते हुए, लाल बहादुर शास्त्री ने कहा; “शायद मेरे छोटे कद और ज़ुबान की नरमी की वजह से लोग यह मान लेते हैं कि मैं ज़्यादा दृढ़ नहीं रह पाता। हालाँकि मैं शारीरिक रूप से मज़बूत नहीं हूँ, लेकिन मुझे लगता है कि मैं अंदर से उतना कमज़ोर नहीं हूँ।”
भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शास्त्री
- प्रधानमंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री का कार्यकाल 9 जून, 1964 से 11 जनवरी, 1966 तक रहा।
- शास्त्री ने नेहरू की समाजवादी आर्थिक नीतियों और केंद्रीय योजना को जारी रखा। उन्होंने श्वेत क्रांति का समर्थन किया — यह एक राष्ट्रीय अभियान था, जिसका उद्देश्य गुजरात के आनंद में अमूल दूध सहकारी का समर्थन और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की स्थापना के माध्यम से दूध उत्पादन और आपूर्ति बढ़ाना था।
- देश भर में खाद्यान्न की लगातार बढ़ती कमी से निपटने के दौरान, शास्त्री जी ने लोगों से स्वेच्छा से एक समय का भोजन त्यागने का आग्रह किया ताकि बचा हुआ भोजन प्रभावित लोगों में वितरित किया जा सके। इसके अलावा, खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता के उनके दृष्टिकोण ने हरित क्रांति के बीज बोए। इसके अलावा, शास्त्री जी ने “जय जवान, जय किसान” का अमर नारा दिया, जो आज भी हर भारतीय नागरिक को प्रेरित करता है।
- 1965 के भारत–पाक युद्ध में शास्त्री की भूमिका और ताशकंद घोषणा लाने में उनका योगदान आधुनिक भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। हालांकि युद्ध में भारत विजयी रहा, परन्तु शास्त्री चाहते थे कि दोनों देशों के बीच संघर्ष सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाया जाए। उनका मानना था कि शांति आवश्यक है ताकि दोनों देश अपने लोगों के लिए खाद्य, वस्त्र और आवास जैसी प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित कर सकें, न कि युद्ध पर।
“ताशकंद घोषणा”
ताशकंद घोषणा, जिसे ताशकंद समझौता भी कहा जाता है, एक समझौता था जिस पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 10 जनवरी, 1966 को हस्ताक्षर किए थे। इसके अगले ही दिन शास्त्री जी का निधन हो गया। 22 सितंबर, 1965 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सफलतापूर्वक युद्धविराम पर बातचीत की।

आगे की राह
लाल बहादुर शास्त्री का मार्ग आत्मनिर्भरता की दृष्टि को साकार करने, गाँवों को सशक्त बनाने और कृषि को आधुनिक बनाने की दिशा में होगा। उन्होंने विकेंद्रीकरण, लघु उद्योगों को बढ़ावा देने और हरित एवं श्वेत क्रांतियों के माध्यम से खाद्य सुरक्षा के बारे में जो चिंताएँ उठाईं, वे राष्ट्र के सतत विकास के किसी भी परिदृश्य में चिरस्थायी रहेंगी।
निष्कर्ष
संक्षेप में कहा जा सकता है कि समकालीन दुनिया में हर व्यक्ति को भारत के दूसरे प्रधानमंत्री द्वारा प्रदर्शित संयम, सादगी, नम्रता, मानवता, कठोर परिश्रम, समर्पण और राष्ट्रभक्ति से प्रेरणा लेनी चाहिए। उनकी जयंती पर उन्हें सम्मानित करने का सर्वोत्तम तरीका यही है कि उनके सिद्धांतों का पालन किया जाए। देश को उन महान व्यक्तियों की उपलब्धियों कभी नहीं भूलनी चाहिए, जिन्होंने मानवता और सार्वजनिक सेवा में नैतिक मार्ग प्रशस्त किया।
सामान्य प्रश्न:
भारत में शांति पुरुष के नाम से किसे जाना जाता है?
भारत में लोग लाल बहादुर शास्त्री को शांति पुरुष मानते हैं क्योंकि उन्होंने सादगी, ईमानदारी और शांत सह-अस्तित्व के विश्वास के माध्यम से सामंजस्य स्थापित किया। 1965 के भारत–पाक युद्ध के बाद उन्होंने ताशकंद घोषणा पर पहुँचाकर यह सिद्ध किया कि शांति किसी भी राष्ट्रीय या वैश्विक उन्नति की पूर्व शर्त है।
‘जय जवान जय किसान’ का नारा किसने दिया?
1965 के भारत–पाक युद्ध के दौरान यह नारा लाल बहादुर शास्त्री ने दिया। इसका उद्देश्य सैनिकों और उन किसानों को प्रेरित करना था जो कठिन परिस्थितियों में देश के लिए भोजन उत्पादन कर रहे थे। यह नारा देश की ताकत को सैनिकों और किसानों के रूप में महिमामंडित करता है।
लाल बहादुर शास्त्री कौन थे ?
लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री (1964-1966) थे, जिन्हें 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनकी ईमानदारी, सादगी और नेतृत्व क्षमता के लिए जाना जाता है। उन्होंने सैनिकों और किसानों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया। एक राष्ट्रवादी और राजनेता के रूप में, उन्होंने शांति, आत्मनिर्भरता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया।
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म कब हुआ था?
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। वे महात्मा गांधी से प्रभावित होकर बड़े हुए और बाद में भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने। उन्हें 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनके नेतृत्व और “जय जवान, जय किसान” के नारे के लिए जाना जाता है।
लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु कैसे हुई?
लाल बहादुर शास्त्री का 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में कथित तौर पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया, जो 1965 के भारत-पाक युद्ध को समाप्त करने वाले शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद हुआ था। उनकी अचानक मृत्यु के बाद षड्यंत्र के सिद्धांत सामने आए, लेकिन आधिकारिक कारण मायोकार्डियल इन्फार्क्शन (हृदयाघात) ही रहा।
Read this article in English: 121st Lal Bahadur Shastri Jayanti (2 October 2025)
