पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- हाल ही में ‘को-ऑप कुंभ 2025’ में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने शहरी सहकारी बैंकों (UCBs) से भारत के युवाओं और वंचित समुदायों को सशक्त बनाने में परिवर्तनकारी भूमिका निभाने का आह्वान किया।
को-ऑप कुंभ 2025 की मुख्य विशेषताएँ
- ‘दिल्ली घोषणा 2025’: इसे नेशनल फेडरेशन ऑफ अर्बन कोऑपरेटिव बैंक्स एंड क्रेडिट सोसाइटीज (NAFCUB) द्वारा अपनाया गया, जो सहकारी बैंकिंग नेटवर्क में वित्तीय स्थिरता, सुशासन और डिजिटलीकरण को बढ़ाने पर केंद्रित है।
- डिजिटल पहल: दो नई डिजिटल पहलों सहकार डिजी-पे और सहकार डिजी-लोन की शुरुआत की गई, ताकि सबसे छोटे सहकारी बैंकों को भी सशक्त बनाया जा सके।
- ये डिजिटल भुगतान और ऋण वितरण सेवाएँ सक्षम करती हैं, जिससे UCBs भारत की व्यापक डिजिटल क्रांति में शामिल हो सकें।
- सहकारी ऋण पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने की प्रतिबद्धता: सरकार का लक्ष्य आगमी पाँच वर्षों में उन सभी भारतीय शहरों में UCB स्थापित करना है जिनकी जनसंख्या दो लाख से अधिक है।
- इसका उद्देश्य शहरी सहकारी ऋण पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार करना और शहरी भारत में वित्तीय समावेशन को अधिक सुलभ बनाना है।
शहरी सहकारी बैंक (UCBs) के बारे में
- ये वित्तीय संस्थाएँ सहकारी आंदोलन में निहित हैं, जो मुख्यतः शहरी और अर्ध-शहरी जनसंख्या की सेवा करती हैं।
- सहकारी समितियाँ सहयोग के सिद्धांतों पर आधारित होती हैं जैसे परस्पर सहायता, लोकतांत्रिक निर्णय-निर्माण और खुली सदस्यता, जो वाणिज्यिक बैंकों से भिन्न हैं।
- ये छोटे व्यवसायों, वेतनभोगी व्यक्तियों और निम्न-आय वर्गों को जमा, ऋण एवं क्रेडिट सुविधाएँ प्रदान करती हैं।
- ये समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, छोटे व्यापारियों, उद्यमियों और समाज के कमजोर वर्गों का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- RBI और NABARD के अनुसार, वर्तमान में 1,457 शहरी सहकारी बैंक, 34 राज्य सहकारी बैंक (StCBs), 351 जिला केंद्रीय सहकारी बैंक (DCCBs) और एक औद्योगिक सहकारी बैंक हैं, जो RBI और NABARD के पर्यवेक्षण में हैं।
सहकारी बैंकों को मान्यता देने के पूर्व प्रयास
- भारत सरकार अधिनियम (1919): इसने ‘सहकारिता’ विषय को भारत सरकार से प्रांतीय सरकारों को हस्तांतरित किया।
- बॉम्बे सरकार का प्रथम राज्य सहकारी समितियों अधिनियम (1925):
- इसने सहकारी आंदोलन को आकार दिया और विस्तारित किया।
- बचत, आत्म-सहायता और परस्पर सहायता पर जोर दिया।
- अन्य राज्यों ने भी इसका अनुसरण किया, जिससे सहकारी ऋण संस्थानों के इतिहास का दूसरा चरण शुरू हुआ।
- भारतीय केंद्रीय बैंकिंग जाँच समिति (1931): शहरी बैंकों के छोटे व्यवसायों और मध्यम वर्ग की सहायता करने के कर्तव्य पर बल दिया।
- मेहता-भंसाली समिति (1939): अनुशंसा की कि जो सहकारी समितियाँ कुछ बैंकिंग मानदंडों को पूरा करती हैं, उन्हें बैंक के रूप में कार्य करने की अनुमति दी जाए।
- शहरी सहकारी बैंकों के लिए एक संघ बनाने का सुझाव दिया।
- सहकारी योजना समिति (1946): स्वीकार किया कि शहरी बैंक छोटे लोगों के लिए सर्वोत्तम वित्तीय एजेंसियाँ हैं, जिन्हें संयुक्त स्टॉक बैंकों द्वारा प्रायः नज़रअंदाज़ किया जाता है।
- ग्रामीण बैंकिंग जाँच समिति (1950): अनुशंसा की कि कम परिचालन लागत को देखते हुए छोटे शहरों में भी ऐसे बैंक स्थापित किए जाएँ।
- RBI अध्ययन और रिपोर्ट (1958–1961):
- RBI ने 1958–59 में UCBs का प्रथम अध्ययन किया और 1961 में प्रकाशित किया।
- UCBs की वित्तीय सुदृढ़ता को मान्यता दी।
- नए केंद्रों में विस्तार का सुझाव दिया।
- राज्य सरकारों से उनके विकास का सक्रिय समर्थन करने का आग्रह किया।
- वार्डे समिति (1963): अनुशंसा की कि 1 लाख से अधिक जनसंख्या वाले सभी शहरी केंद्रों में UCBs स्थापित किए जाएँ।
- जोर दिया कि बैंक समुदाय या जाति-आधारित नहीं होने चाहिए।
- न्यूनतम पूंजी आवश्यकता की अवधारणा प्रस्तुत की।
- UCB स्थापना के लिए उपयुक्त शहरी केंद्रों की पहचान हेतु जनसंख्या मानदंड परिभाषित किए।
- माधवदास समिति (1979): UCBs की भूमिका और प्रदर्शन का विस्तृत मूल्यांकन किया। अनुशंसा की:
- पिछड़े क्षेत्रों में UCBs स्थापित करने के लिए RBI और सरकार का समर्थन।
- सतत विकास के लिए व्यवहार्यता मानक।
- हाते कार्य समूह (1981): सुझाव दिया:
- अधिशेष निधियों का बेहतर उपयोग।
- चरणबद्ध दृष्टिकोण से UCBs के नकद आरक्षित अनुपात (CRR) और वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) को वाणिज्यिक बैंकों के अनुरूप करना।
- मराठे समिति (1992):
- UCBs के लिए व्यवहार्यता मानदंडों को पुनर्परिभाषित किया।
- सहकारी बैंकिंग क्षेत्र में उदारीकरण का युग शुरू किया।
- माधवराव समिति (1999): केंद्रित किया:
- बीमार बैंकों का एकीकरण और नियंत्रण।
- पेशेवरता और प्रबंधन मानकों में सुधार।
- UCBs का व्यापक वाणिज्यिक बैंकिंग प्रणाली के साथ एकीकरण।
UCBs द्वारा सामना की जाने वाली वर्तमान चुनौतियाँ
- संख्या में गिरावट: 2004 में 1,926 से घटकर 2024 में लगभग 1,500 रह गए हैं, नियामक और वित्तीय दबावों के कारण।
- नियामक प्रतिबंध: शाखा विस्तार और लाइसेंसिंग पर प्रतिबंध। 2004 से नए लाइसेंस जारी नहीं हुए।
- शासन और अनुपालन मुद्दे: कई UCBs पुराने शासन ढाँचे, बैंकिंग विनियमन अधिनियम के अनुपालन की कमी और सीमित तकनीकी को अपनाने में समस्या का सामना कर रहे हैं।
- वित्तीय कमजोरियाँ: सीमित पूंजी आधार और जोखिमपूर्ण ऋण प्रथाओं के कारण स्थिरता प्रभावित हुई है।
संबंधित पहल और सुधार
- NUCFDC गठन: UCBs के लिए एक छत्र संगठन के रूप में स्थापित, जो वित्तीय समर्थन, नियामक मार्गदर्शन और क्षमता निर्माण प्रदान करता है।
- सशक्तिकरण उपाय: RBI ने UCBs को नई शाखाएँ खोलने की अनुमति दी और उनके बोर्डों को वाणिज्यिक बैंकों के समान निपटान नीतियाँ बनाने का अधिकार दिया, सहकारिता मंत्रालय के निर्देशन में।
- विशेषज्ञ समिति की अनुशंसाएँ: श्री एन.एस. विश्वनाथन की अध्यक्षता वाली समिति ने 2021 में एक मजबूत शीर्ष इकाई और बेहतर नियामक तंत्र बनाने की अनुशंसा की।
- सहकारी क्षेत्र में आधुनिकीकरण और सुधार: सहकारिता मंत्रालय के गठन के बाद से महत्वपूर्ण नीतिगत सुधारों ने सहकारी संस्थाओं का आधुनिकीकरण किया तथा लंबे समय से लंबित चुनौतियों का समाधान किया।
- कई राज्य सरकारों ने प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) के लिए मॉडल उपनियम अपनाए हैं, जिससे एकरूपता और पारदर्शिता सुनिश्चित हुई है।
- वित्तीय अनुशासन और NPAs में कमी: सहकारिता क्षेत्र में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPAs) पिछले दो वर्षों में 2.8% से घटकर 0.6% हो गई हैं।
- सहकारिता मंत्रालय के चार प्रमुख उद्देश्य:
- युवाओं को त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय जैसी नई शैक्षिक पहलों के माध्यम से जोड़ना।
- बहु-क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
- वित्तीय अनुशासन और दक्षता सुनिश्चित करना।
- शहरी और ग्रामीण भारत में सहकारी संस्थाओं की पहुँच का विस्तार करना।
- संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने वर्ष 2025 को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष (आईवाईसी 2025) के रूप में नामित किया है, जिसका विषय है ‘सहकारिताएं एक बेहतर विश्व का निर्माण करती हैं’, जिसका उद्देश्य सहकारी बैंकिंग प्रणाली को आधुनिक बनाने और बढ़ाने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करना है।
Previous article
प्रधानमंत्री की भूटान यात्रा
Next article
सेबी ने डिजिटल सोने के जोखिमों के प्रति आगाह किया