ट्रांसजेंडर अधिकार और समाज में परिवर्तन

पाठ्यक्रम: GS1/सामाजिक मुद्दे

संदर्भ

  • संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार अब केवल दो लिंग — पुरुष और महिला — को मान्यता देती है और ट्रांसजेंडर को इसमें शामिल नहीं किया गया है।

हालिया वैश्विक घटनाक्रम

  • यूके सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (2024) – 
    • जेंडर और समानता अधिनियम: यूके की सर्वोच्च अदालत ने निर्णय दिया कि Equality Act 2010 के अंतर्गत कुछ कानूनी और खेल संबंधी संदर्भों में केवल दो जैविक लिंग — पुरुष और महिला — को मान्यता दी जाती है।
      • परिणाम: ट्रांसवुमन एथलीट्स (जो जैविक रूप से पुरुष हैं) को केवल महिलाओं के लिए आरक्षित खेल वर्गों से बाहर किया जा सकता है — निष्पक्षता और सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु।
  • हंगरी –
    •  प्राइड परेड पर प्रतिबंध: हंगरी सरकार ने सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता का हवाला देते हुए LGBTQ+ प्राइड आयोजनों पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • रूस – 
    • कानूनी लिंग परिवर्तन पर प्रतिबंध: रूस ने कानूनी लिंग परिवर्तन पर प्रतिबंध लगा दिया है, अर्थात अब व्यक्ति आधिकारिक दस्तावेज़ों में अपना लिंग बदल नहीं सकते।
      • यह प्रतिबंध लिंग-पुनःनिर्धारण सर्जरी पर भी लागू है।
  • ये घटनाक्रम दुनियाभर के कुछ हिस्सों में ट्रांसजेंडर और LGBTQ+ अधिकारों के विरुद्ध रूढ़िवादी प्रतिक्रिया को दर्शाते हैं।

LGBTQIA+ क्या है?

  • यह एक व्यापक शब्द है जिसमें लेस्बियन, गे, बायसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, इंटरसेक्स, और एसेक्शुअल व्यक्ति शामिल हैं; ‘+’ उन पहचानों को दर्शाता है जो इन अक्षरों में विशिष्ट रूप से शामिल नहीं हैं।
  • यह समुदाय पारंपरिक लिंग भूमिकाओं और अपेक्षाओं के अनुसार जीवन नहीं जीता, इनकी शारीरिक विशेषताएँ पारंपरिक पुरुष-महिला वर्गीकरण में फिट नहीं होतीं, और इनकी लिंग पहचान उस लिंग से भिन्न होती है जो जन्म के समय असाइन किया गया था।

भारत में LGBTQIA+ अधिकारों की स्थिति

  • अपराधमुक्ति: नवतेज सिंह जोहर बनाम भारत संघ (2018) के निर्णय में धारा 377 को आंशिक रूप से रद्द करते हुए समलैंगिक सहमति वाले संबंधों को वैध घोषित किया गया।
  • ट्रांसजेंडर अधिकार: NALSA बनाम भारत संघ (2014) में व्यक्ति की आत्म-पहचान के अधिकार को मान्यता दी गई।
    • ट्रांसजेंडर को “तीसरे लिंग” के रूप में मान्यता दी गई और उनके मौलिक अधिकारों की पुष्टि की गई।
  • संविधानिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 14 – समानता का अधिकार
    • अनुच्छेद 15 – लिंग के आधार पर भेदभाव निषेध
    • अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
  • कानून: ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 ट्रांसजेंडर पहचान को कानूनी मान्यता प्रदान करता है।
  • विवाह और गोद लेना:
    • समलैंगिक विवाह अभी भी वैध नहीं है।
    • 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे वैध करने से मना करते हुए विधायिका को इस पर विचार करने की सलाह दी।
    • विभिन्न उच्च न्यायालयों ने कुछ प्रगतिशील निर्णय दिए हैं, जैसे:
      • केरल: माता-पिता के बजाय पेरेंट्स कहलाने का अधिकार
      • आंध्र प्रदेश: एक ट्रांसजेंडर महिला को अपने पति और ससुराल वालों के विरुद्ध क्रूरता की शिकायत दर्ज कराने का अधिकार
      • मद्रास: चुने हुए परिवार बनाने का अधिकार

ट्रांसजेंडर समुदाय के सामने चुनौतियाँ

  • सामाजिक बहिष्कार: गहरे स्तर की सामाजिक पूर्वाग्रहों के कारण ट्रांस व्यक्ति प्रायः परिवार और समाज से वंचित रह जाते हैं।
  • सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव: परिवहन, स्वास्थ्य केंद्रों और सरकारी दफ्तरों में व्यापक भेदभाव का सामना।
  • शिक्षा से वंचित:
    • धमकियों, उत्पीड़न और लिंग आधारित हिंसा के कारण स्कूल छोड़ने की दर अधिक।
    • अधिकांश शैक्षणिक संस्थानों में ट्रांस समावेशन या लिंग-तटस्थ सुविधाओं की कमी।
  • रोज़गार में बाधाएं:
    • भर्ती और कार्यस्थल पर भेदभाव।
    • अवसरों की कमी के चलते अनौपचारिक, असुरक्षित और शोषणकारी क्षेत्रों में जाने को विवश — जैसे भीख मांगना या सेक्स वर्क।
  • स्वास्थ्य सेवाओं से बहिष्कार:
    • जेंडर-अनुकूल स्वास्थ्य सेवाओं की कमी
    • अस्पतालों में भेदभावपूर्ण रवैया
    • सार्वजनिक अस्पतालों में हार्मोनल या सर्जिकल सेवाओं की अनुपलब्धता
  •  मानसिक स्वास्थ्य संकट:
    • सामाजिक बहिष्कार और अकेलेपन के चलते मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ती हैं।
  • हिंसा और उत्पीड़न:
    • सार्वजनिक और निजी दोनों स्थानों पर शारीरिक, मौखिक और यौन उत्पीड़न की अधिक संभावना
    • पुलिस उत्पीड़न और हिरासत में हिंसा आम, लेकिन कानूनी समाधान दुर्लभ।
  • राजनीतिक अप्रस्तुति:
    • मुख्यधारा की पार्टियों और संस्थानों में राजनीतिक दृश्यता कम
    • नीति-निर्माण में भागीदारी न होने से उनकी ज़रूरतें अनसुनी रह जाती हैं

तीसरे लिंग को मान्यता देने के समर्थन में तर्क

  • मानव गरिमा और पहचान: तीसरे लिंग की मान्यता न देना व्यक्तिगत गरिमा और आत्मसम्मान का उल्लंघन है।
    • मान्यता व्यक्ति को भय और शर्म के बिना स्वाभाविक रूप से जीने का अधिकार देती है।
  • सामाजिक समावेशन: कानूनी मान्यता सामाजिक समावेशन की पहली सीढ़ी है — शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य सेवा, आवास और सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच संभव होती है।
  • ऐतिहासिक अन्याय का समापन: यह मान्यता समाज में ऐतिहासिक रूप से वंचित रहे समुदायों को उनका स्थान प्रदान करने का अवसर है।
  • अंतरराष्ट्रीय आदर्श: UN मानवाधिकार परिषद, योग्याकार्ता सिद्धांत और UNDP — सभी लिंग विविधता की कानूनी मान्यता को मानव अधिकार मानते हैं।
  • लैंगिक न्याय और समानता: यह सुनिश्चित करता है कि सभी लिंग पहचानें कानून के अंतर्गत समान मानी जाएँ।
  • नैतिक और नैसर्गिक ज़िम्मेदारी: नैतिक रूप से करुणा, सहानुभूति और न्याय की भावना से समाज को सभी पहचानों को मान्यता देनी चाहिए।
  • सामाजिक सुरक्षा और कल्याण तक पहुंच: प्रायः ये समुदाय आर्थिक रूप से वंचित होते हैं।
    • मान्यता मिलने से सरकारें सकारात्मक कार्रवाई की नीतियाँ और कल्याणकारी योजनाएँ तैयार कर सकती हैं — गरीबी और स्वास्थ्य असमानताओं को कम किया जा सकता है।

विरोध में दिए गए तर्क

  • पारंपरिक द्विआधारी मानदंडों के साथ संघर्ष: कई समाज द्विआधारी लिंग ढांचे (पुरुष/महिला) पर कार्य करते हैं, जो प्रायः धार्मिक, सांस्कृतिक या कानूनी परंपराओं में निहित होते हैं।
    • तीसरे लिंग की मान्यता को स्थापित सामाजिक संरचनाओं के लिए विघटनकारी माना जाता है।
  • दुरुपयोग या अस्पष्टता का जोखिम: कुछ विरोधियों का दावा है कि लाभ, आरक्षण या कोटा प्राप्त करने के लिए स्व-पहचान (चिकित्सा या मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन के बिना) का दुरुपयोग किया जा सकता है।
    • सैन्य सेवा जैसे लिंग-विशिष्ट दायित्वों से बचना।
  • परिभाषा पर सामान्य सहमति का अभाव: आलोचकों का तर्क है कि “तीसरे लिंग” की अवधारणा बहुत व्यापक या अस्पष्ट है, परिभाषा संबंधी स्पष्टता की कमी कानूनों या कल्याणकारी योजनाओं के लक्षित डिजाइन में बाधा डाल सकती है।
  • सांस्कृतिक और धार्मिक विरोध: रूढ़िवादी समाजों में, विशेष रूप से अफ्रीका और मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों में, तीसरे लिंग की मान्यता को धार्मिक मानदंडों और “प्राकृतिक” लिंग भूमिकाओं के उल्लंघन के रूप में देखा जाता है।
  • लिंग-विशिष्ट स्थानों और अधिकारों पर प्रभाव: आलोचकों ने चिंता व्यक्त की है कि तीसरे लिंग को शामिल करने से लिंग-पृथक स्थानों (जैसे जेल, शौचालय) में महिलाओं की सुरक्षा कमज़ोर हो सकती है।
    • यदि स्व-घोषित पहचान के आधार पर खेलों में प्रतिस्पर्धात्मक निष्पक्षता को विकृत किया जाता है।
  • प्राथमिकता का प्रश्न: विकासशील देशों में, गरीबी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी ज़रूरतों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। लिंग पहचान मान्यता को अभिजात वर्ग या पश्चिमी-संचालित माना जाता है, व्यापक समाज के लिए ज़रूरी नहीं है।

आगे की राह

  • जबकि तीसरे लिंग को मान्यता देना समावेशिता और मानवीय गरिमा की ओर एक कदम है, वैश्विक स्तर पर विरोधी सांस्कृतिक मानदंडों, प्रशासनिक व्यवहार्यता, सामाजिक नैतिकता और कानूनी सुसंगतता के आधार पर चिंताएँ व्यक्त करते हैं।
  • हालाँकि, इनमें से कई चिंताएँ वस्तुनिष्ठ हानि के बजाय जागरूकता की कमी, परिवर्तन के भी या संस्थागत जड़ता से उत्पन्न होती हैं।
  • तीसरे लिंग को मान्यता देना केवल पहचान के बारे में नहीं है – यह गरिमा, समावेश और न्याय के बारे में है।
  • यह समाजों को सार्वभौमिक मानवाधिकार मानकों और वैश्विक संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप समानता एवं विविधता के सम्मान की ओर विकसित होने में सहायता करता है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हाशिए पर होने की जांच करें। सकारात्मक कार्रवाई और कल्याणकारी नीतियां इस मुद्दे को कैसे संबोधित कर सकती हैं?

Source: HT

 

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