प्रतिभा की कमी – वैश्विक चुनौती, भारत के लिए अवसर

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • वैश्विक श्रम बाजार एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन से गुजर रहा है, और यह स्पष्ट है कि 2030 में आवश्यक कौशल वर्तमान की आवश्यकता से काफी अलग होंगे। यह भारत के लिए एक चुनौती और अवसर दोनों प्रस्तुत करता है।

वैश्विक प्रतिभा की कमी

  • फिक्की-केपीएमजी द्वारा हाल ही में किए गए अध्ययन, जिसका शीर्षक है ‘भारतीय कार्यबल की वैश्विक गतिशीलता’, में अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक वैश्विक स्तर पर 85.2 मिलियन से अधिक प्रतिभाओं की कमी होगी।
    • इससे अनुमानित 8.45 ट्रिलियन डॉलर का अवास्तविक वार्षिक राजस्व प्राप्त हो सकता है, जो जर्मनी और जापान के संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद के बराबर है।
  • मैनपावरग्रुप के टैलेंट शॉर्टेज सर्वे 2023 के अनुसार, लगभग 77% वैश्विक नियोक्ता रोजगार रिक्तियों को भरने में कठिनाई की रिपोर्ट करते हैं, जो 17 वर्षों में सबसे अधिक है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी और जापान जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाएँ, बढ़ती उम्र की आबादी, घटती जन्म दर और विकसित कौशल माँगों के कारण गंभीर कार्यबल की कमी का सामना कर रही हैं।

वैश्विक प्रतिभा की कमी के प्रमुख कारण

  • तकनीकी व्यवधान: चौथी औद्योगिक क्रांति ने कार्यबल में आवश्यक कौशल को तीव्रता से बदल दिया है।
    • ऑटोमेशन, AI, डेटा एनालिटिक्स और साइबरसिक्यूरिटी ने विशेष कौशल की माँग उत्पन्न की है, जिसे कई देश तेज़ी से विकसित करने के लिए संघर्ष करते हैं।
    • डिजिटल अर्थव्यवस्था में बदलाव ने प्रतिभा की आपूर्ति और माँग के बीच के अंतर को बढ़ा दिया है।
  • शिक्षा-उद्योग असमरूपता: विश्व भर में कई शिक्षा प्रणालियाँ कार्य  की बदलती प्रकृति के अनुकूल होने में धीमी रही हैं। पारंपरिक शिक्षा प्रणालियाँ प्रायः तेज़ी से बदलती उद्योग माँगों को पूरा करने में विफल रहती हैं।
    • पारंपरिक डिग्री प्रायः उभरते उद्योगों के लिए आवश्यक व्यावहारिक कौशल प्रदान करने में विफल रहती हैं, जिससे रोजगार चाहने वालों और नियोक्ता की अपेक्षाओं के बीच असमरूपता उत्पन्न होता है।
  • वृद्ध कार्यबल और जनसांख्यिकीय बदलाव (कार्यबल की भागीदारी में गिरावट): जापान, जर्मनी और यहाँ तक कि भारत जैसे देशों में वृद्ध कार्यबल का सामना करना पड़ रहा है, जिससे अनुभवी पेशेवरों की कमी हो रही है।
    • स्वास्थ्य सेवा, साइबरसिक्यूरिटी और इंजीनियरिंग जैसे उच्च माँग वाले क्षेत्रों में कम युवा पेशेवर प्रवेश कर रहे हैं।
    • गिग इकॉनमी और दूरस्थ/लचीले कार्य को प्राथमिकता देने के कारण कुशल कर्मचारी पारंपरिक रोज़गार छोड़ रहे हैं।
  • भू-राजनीतिक और आव्रजन प्रतिबंध: प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में वीज़ा प्रतिबंध और सख्त आव्रजन नीतियाँ कुशल श्रमिकों की वैश्विक गतिशीलता को सीमित करती हैं।
    • देश शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करने और उन्हें बनाए रखने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, जिससे कुछ क्षेत्रों में कमी हो रही है।
  • उद्योग-विशिष्ट कमी: स्वास्थ्य सेवा, साइबर सुरक्षा, IT और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों की उच्च माँग एवं कम आपूर्ति के कारण तीव्र कमी का सामना करना पड़ रहा है।
  • प्रतिभा पलायन: भारत में महत्त्वपूर्ण प्रतिभा पलायन का सामना करना पड़ रहा है, जहाँ शीर्ष प्रतिभाएँ बेहतर अवसरों के लिए अमेरिका, कनाडा और यूरोप की ओर पलायन कर रही हैं।
  • कार्यबल गतिशीलता में बाधाएँ:
    • विनियामक और आव्रजन बाधाएँ: जटिल वीज़ा प्रक्रियाएँ और कठोर कार्य परमिट विनियम कुशल प्रवास को प्रतिबंधित करते हैं।
    • भर्ती कदाचार और तस्करी: शोषणकारी भर्ती प्रथाएँ और मानव तस्करी प्रवासी श्रमिकों के लिए जोखिम उत्पन्न करती हैं।
    • नीतिगत बाधाएँ और कौशल बेमेल: कई भारतीय डिग्रियाँ, विशेष रूप से चिकित्सा में, सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त नहीं हैं, जिससे कुशल पेशेवरों की कमी या बेरोजगारी होती है।
    • भाषा और सांस्कृतिक बाधाएँ: भाषा दक्षता और सांस्कृतिक अनुकूलन जैसी एकीकरण चुनौतियाँ कार्यबल उत्पादकता को प्रभावित करती हैं।
  • बुनियादी ढांचा और डिजिटल विभाजन: शिक्षा और डिजिटल पहुँच में भारत का ग्रामीण-शहरी विभाजन एक और बाधा है। यद्यपि शहरी क्षेत्र तकनीकी शिक्षा में आगे बढ़ते हैं, ग्रामीण भारत में प्रायः गुणवत्तापूर्ण संस्थानों, इंटरनेट पहुँच और कुशल संकाय की कमी होती है।

प्रमुख भौगोलिक क्षेत्र और क्षेत्रीय माँगें: भारत की कार्यबल क्षमता

  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) और ऑस्ट्रेलिया: इन क्षेत्रों में विनिर्माण और निर्माण में श्रमिकों की मजबूत माँग है, ऐसे क्षेत्र जिनमें बड़े पैमाने पर श्रम गतिशीलता की आवश्यकता होती है। 
  • यूरोप: सबसे पुराने उत्तर-औद्योगिक समाजों में से एक के रूप में, यूरोप में सेवा-क्षेत्र के श्रमिकों की बढ़ती आवश्यकता है, विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा में, इसकी वृद्ध जनसंख्या के कारण। 
  • उभरते क्षेत्र: सभी क्षेत्रों में, स्वचालन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), बड़ा डेटा, भविष्य कहनेवाला विश्लेषण, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), ब्लॉकचेन और स्थिरता में विशेषज्ञता की माँग बढ़ रही है।

भारत का जनसांख्यिकी और कार्यबल लाभ

  • युवा और बढ़ता हुआ कार्यबल: भारत उन कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जिनके पास जनसांख्यिकीय लाभांश है, जिसका अर्थ है कि इसकी 65% से अधिक जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है।
    • 2030 तक कार्यशील आयु की जनसंख्या 1 बिलियन से अधिक होने की संभावना के साथ, भारत में विश्व का प्रतिभा आपूर्तिकर्त्ता बनने की क्षमता है।
  • कुशल कार्यबल में वृद्धि: भारत में STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) क्षेत्रों में स्नातकों की संख्या बढ़ रही है, जो वार्षिक लगभग 2.5 मिलियन STEM स्नातक तैयार करता है।
    • भारत IT और सॉफ्टवेयर पेशेवरों का एक अग्रणी प्रदाता है, जिसमें बेंगलुरु, हैदराबाद एवं पुणे जैसे शहर वैश्विक तकनीकी केंद्र के रूप में काम कर रहे हैं।
  • IT और सेवा बूम: भारत का IT और सेवा उद्योग, जिसमें बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO), नॉलेज प्रोसेस आउटसोर्सिंग (KPO) और सॉफ्टवेयर निर्यात शामिल हैं, वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख योगदानकर्ता है।
    • विश्व भर की कंपनियाँ आईटी सहायता, सॉफ्टवेयर विकास और वित्तीय सेवाओं के लिए भारतीय पेशेवरों पर निर्भर हैं।
  • सरकारी पहल:
    • कौशल भारत मिशन: 2025 तक 400 मिलियन से अधिक लोगों को विभिन्न कौशलों में प्रशिक्षित करने का लक्ष्य।
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: व्यावसायिक शिक्षा, लचीली शिक्षा और उद्योग सहयोग पर ध्यान केंद्रित करती है।
    • मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत: अधिक रोजगार अवसर सृजित करने के लिए स्थानीय विनिर्माण और उद्यमिता को प्रोत्साहित करता है।
    • डिजिटल इंडिया: डिजिटल साक्षरता और प्रौद्योगिकी-आधारित शिक्षा को बढ़ावा देता है।

आगे की राह: भारत को वैश्विक प्रतिभा केंद्र में बदलना

  • उच्च शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण को मजबूत करना: स्नातकों के पास रोजगार-संबंधित कौशल सुनिश्चित करने के लिए उद्योग-अकादमिक सहयोग को बढ़ाना।
    • उभरते क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों और प्रशिक्षुता का विस्तार करना। 
  • कौशल-आधारित शिक्षा को प्रोत्साहित करना: स्कूल स्तर से ही AI, मशीन लर्निंग और कोडिंग को बढ़ावा देना।
    • प्रौद्योगिकी और नवाचार में अनुसंधान और विकास के लिए धन बढ़ाना। 
    • व्यापक प्रशिक्षण और शिक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से श्रमिकों के कौशल को वैश्विक माँगों के साथ जोड़ना। 
  • प्रतिभा को बनाए रखना और आकर्षित करना: भारत में बेहतर वेतन, अनुसंधान के अवसर और कार्य-जीवन संतुलन प्रदान करना।
    • प्रोत्साहन कार्यक्रमों के माध्यम से विदेश से भारतीय पेशेवरों की वापसी को प्रोत्साहित करना। 
  • दूरस्थ कार्य और वैश्विक प्लेसमेंट को बढ़ावा देना: भारतीय प्रतिभाओं को अंतर्राष्ट्रीय फर्मों के साथ दूरस्थ रोजगार लेने के लिए प्रोत्साहित करना।
    • कुशल पेशेवरों के आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को मजबूत करना। 
  • द्विपक्षीय समझौते और मुक्त व्यापार समझौते (FTAs): भारतीय श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और उनकी गतिशीलता को सुविधाजनक बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना। 
  • डिजिटल अवसंरचना को बढ़ाना: कौशल अंतराल को समाप्त करने और वैश्विक रोजगार बाजारों तक पहुँच में सुधार करने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना।
  • नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देना: नए रोजगार के अवसर सृजित करने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए नवाचार और उद्यमिता को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष

  • वैश्विक प्रतिभा की कमी एक बड़ी चुनौती पेश करती है, लेकिन यह भारत के लिए अपनी कार्यबल क्षमता का लाभ उठाने का एक अद्वितीय अवसर भी प्रदान करती है। 
  • कार्यबल की गतिशीलता में आने वाली बाधाओं को दूर करके और रणनीतिक हस्तक्षेपों को लागू करके, भारत कुशल श्रमिकों की वैश्विक माँग को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि और विकास में योगदान दे सकता है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] वैश्विक प्रतिभा की कमी और भारत के युवा एवं कुशल श्रमिकों के विशाल पूल को ध्यान में रखते हुए, भारत को इस चुनौती का प्रभावी ढंग से समाधान करने तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रमुख अभिकर्त्ता बनने के लिए अपनी कार्यबल क्षमता का लाभ उठाने के लिए क्या रणनीति अपनानी चाहिए?

Source: TH

 

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