भारत में शैक्षिक परिदृश्य: इसका विचलित करने वाला बदलाव

पाठ्यक्रम: GS2/शिक्षा

संदर्भ

  • हालिया नीतिगत ढाँचे, संस्थागत स्वायत्तता और बाज़ार-आधारित शिक्षा मॉडल में हुए बदलावों ने शैक्षणिक स्वतंत्रता के क्षरण और शिक्षा के बढ़ते बाज़ारीकरण को लेकर चिंताओं को उत्पन्न किया है।

भारत में शिक्षा का परिदृश्य

  • भारत की शिक्षा प्रणाली लंबे समय से सामाजिक और आर्थिक प्रगति का आधार रही है, जिसने ज्ञान, कौशल विकास और बौद्धिक अन्वेषण के माध्यम से पीढ़ियों का निर्माण किया है।

शिक्षा: आर्थिक विकास का उत्प्रेरक  

  • मानव पूँजी विकास:  शिक्षा कौशल और उत्पादकता बढ़ाकर व्यक्तियों को अधिक रोजगार योग्य बनाती है।
    • उच्च साक्षरता दर वाले देश अधिक आर्थिक स्थिरता का अनुभव करते हैं।
  • नवाचार और उद्यमिता:  एक मजबूत शिक्षा प्रणालीआलोचनात्मक सोच और रचनात्मकता को बढ़ावा देती है, जिससे तकनीकी उन्नति होती है।
    • शिक्षित व्यक्ति व्यवसाय प्रारंभ करने की अधिक संभावना रखते हैं, जिससे आर्थिक विस्तार होता है।
  • कार्यबल प्रतिस्पर्धात्मकता:व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा कार्यकर्त्ताओं को उद्योग-संबंधित कौशल से सुसज्जित करती है।
    • STEM शिक्षा में निवेश करने वाले राष्ट्रों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़त मिलती है।

शिक्षा की सामाजिक प्रगति में भूमिका

  • असमानता को कम करना:गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच सामाजिक-आर्थिक अंतर को कम करती है, जिससे हाशिए पर खड़े समुदाय सशक्त होते हैं।
    •  लैंगिक-समावेशी शिक्षा सभी के लिए समान अवसरों को बढ़ावा देती है।
  • लोकतंत्र और नागरिक भागीदारी को सशक्त बनाना:शिक्षित नागरिक शासन में अधिक सक्रियता से भाग लेते हैं, जिससे जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित होती है।
    • साक्षरता अधिकारों और उत्तरदायित्वों के प्रति जागरूकता बढ़ाती है, जिससे लोकतांत्रिक संस्थान मजबूत होते हैं।
  • सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास:शिक्षा विरासत और परंपराओं को संरक्षित करती है, साथ ही वैश्विक दृष्टिकोण को भी प्रोत्साहित करती है।
    • बौद्धिक अन्वेषण वैज्ञानिक खोजों, कलात्मक उपलब्धियों और दार्शनिक प्रगति को जन्म देता है।

भारत की शिक्षा व्यवस्था के समक्ष चुनौतियाँ

  • शैक्षणिक स्वतंत्रता का क्षरण:  विश्वविद्यालय, जो कभी विचारों की स्वतंत्रता और नवाचार का केंद्र थे, अब केंद्रीय विनियमन के कारण बाधित हो रहे हैं।
    •  विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), जो अकादमिक मानकों को समन्वित करने के लिए बना था, अब नियुक्तियों, पाठ्यक्रम और प्रशासन को नियंत्रित कर रहा है।  
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), जो सुधार लाने का प्रयास कर रही है, लेकिन शैक्षणिक स्वायत्तता की तुलना में मानकीकरण पर अधिक ध्यान केंद्रित करने को लेकर चिंताएँ हैं।
  • बाज़ार-आधारित शिक्षा का उदय:उच्च शिक्षा का बाज़ारीकरण ने बौद्धिक ईमानदारी से अधिक प्रबंधकीय दक्षता को प्राथमिकता देना प्रारंभ कर दिया है।
    • विश्वविद्यालय आर्थिक एजेंडे के अनुसार पाठ्यक्रम तय कर रहे हैं, न कि शैक्षणिक योग्यता के आधार पर। 
    •  विचारधारा-आधारित शिक्षण और असहिष्णुता प्रमुख चिंताओं में शामिल हो रहे हैं, जिससे स्वतंत्र सोच और अकादमिक संवाद प्रभावित हो रहे हैं।
  • डिजिटल परिवर्तन और पहुँच के अंतर को समाप्त करना:  डिजिटल शिक्षा पहल ने सीखने के अवसरों का विस्तार किया है, लेकिन इंटरनेट और बुनियादी ढाँचे की असमानता ग्रामीण और हाशिए पर खड़े समुदायों को प्रभावित कर रही है।
    • यूनीफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (UDISE+) नामांकन प्रवृत्तियों को उजागर करता है, लेकिन माध्यमिक और उच्च शिक्षा में अंतर को समाप्त करना अभी भी चुनौती बना हुआ है।

सरकारी सुधार कार्यक्रम

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: बहु-विषयक शिक्षा, कौशल विकास और डिजिटल एकीकरण को बढ़ावा देती है।  
  • PM-उषा: उच्च शिक्षा के आधुनिकीकरण, अनुसंधान और नवाचार को सुधारने पर केंद्रित।  
  • PM श्री स्कूल्स: सार्वजनिक शिक्षा अवसंरचना को मजबूत करता है।  
  • समग्र शिक्षा अभियान: पूर्व-प्राथमिक से वरिष्ठ माध्यमिक स्तर तक समग्र विद्यालय शिक्षा सुनिश्चित करता है।
  • डिजिटल शिक्षा का विस्तार
    • दीक्षा और स्वयं जैसे प्लेटफॉर्म ऑनलाइन शिक्षण संसाधन प्रदान करते हैं, जिससे शिक्षा अधिक सुलभ हो रही है।  
    • राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) मानकीकृत आकलन प्रणाली को सुव्यवस्थित करती है, जिससे निष्पक्ष मूल्यांकन सुनिश्चित किया जाता है।

आगे की राह 

  • स्वायत्तता और विनियमन में संतुलन: संस्थानों को अकादमिक स्वतंत्रता बनाए रखते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।  
  • विविध दृष्टिकोणों को प्रोत्साहित करना: विश्वविद्यालयों को खुले संवाद और आलोचनात्मक अन्वेषण को बढ़ावा देना चाहिए, विचारधारा-आधारित शिक्षा से बचते हुए।  
  • अनुसंधान और नवाचार को मजबूत करना: नीतियाँ बौद्धिक स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने की बजाय, अकादमिक खोज का समर्थन करें।

निष्कर्ष

  • भारत की शिक्षा प्रणाली एक अहम बिंदु पर है, जो नौकरशाही बाधाओं, विचारधारा के प्रभाव और बाज़ारी दबावों का सामना कर रही है। शैक्षणिक सत्यनिष्ठा को बनाए रखने के लिए, संस्थानों को स्वतंत्र सोच का समर्थन करना चाहिए, बाहरी नियंत्रण का विरोध करना चाहिए, और बौद्धिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता देनी चाहिए।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] हाल के वर्षों में शैक्षिक परिदृश्य किस प्रकार विकसित हुआ है, तथा इसके विचलित करने वाले बदलाव के क्या निहितार्थ हैं, विशेष रूप से शैक्षणिक स्वतंत्रता, वैचारिक प्रभावों और बाजार-संचालित नीतियों के संदर्भ में?

Source: TH

 

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