पाठ्यक्रम: GS3/कृषि
संदर्भ
- जैसे-जैसे व्यापार वार्ता की समयसीमा पास आ रही है, अमेरिका भारत पर अपने कृषि बाज़ार को आनुवंशिक रूप से परिवर्तित (GM) फसलों के लिए खोलने का दबाव बढ़ा रहा है।
- हालाँकि, भारत ने किसानों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा को “गैर-परक्राम्य” बताते हुए स्पष्ट सीमाएँ खींच दी हैं।
| भारत की अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता में “रेड लाइन” – डेयरी क्षेत्र: भारत अमेरिकी डेयरी उत्पादों के लिए अपना बाज़ार खोलने को तैयार नहीं है, क्योंकि इससे करोड़ों छोटे डेयरी किसानों की आजीविका प्रभावित हो सकती है। – GM फसलें: भारत GM मक्का और सोयाबीन के आयात पर प्रतिबंध लगाता है, जो अमेरिकी कृषि का प्रमुख हिस्सा हैं। अमेरिका की इन बाज़ारों तक पहुँच की मांग को भारत ने खारिज किया है। – एथेनॉल आयात: एथेनॉल उत्पादन के लिए GM मक्का के आयात के प्रस्तावों ने घरेलू चीनी मिलों और मक्का उत्पादकों के बीच चिंता उत्पन्न कर दी है। – शुल्क संरक्षण: भारत संवेदनशील कृषि उत्पादों पर उच्च शुल्क बनाए रखता है और विशेष रूप से मक्का, सोयाबीन एवं डेयरी उत्पादों पर अमेरिकी दबाव का विरोध कर रहा है। |
भारत में कृषि और आनुवंशिक नवाचार
- आनुवंशिक नवाचार में CRISPR जीन संपादन, जीनोमिक चयन और ट्रांसजेनिक तकनीकों का उपयोग शामिल है ताकि फसलों में निम्नलिखित सुधार किए जा सकें:
- उपज और पोषण गुणवत्ता में वृद्धि
- कीट, रोग, सूखा और गर्मी के प्रति प्रतिरोध
- रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों पर निर्भरता में कमी
- फसल चक्र को छोटा करना और जलवायु-लचीली कृषि को बढ़ावा देना
वैश्विक स्तर पर GM फसलों का विस्तार
- 1996 में शुरुआत के बाद से GM फसलों को विश्व स्तर पर बड़े पैमाने पर अपनाया गया है।
- 2023 तक, 76 देशों में 200 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में GM सोयाबीन, मक्का, कैनोला आदि की खेती की गई।
- अमेरिका, ब्राज़ील और चीन जैसे भारत के कई व्यापारिक साझेदार GM कृषि को पूरी तरह अपना चुके हैं।
Bt कपास: भारत की एकमात्र स्वीकृत GM फसल
- Bt कपास को भारत में 2002 में मंजूरी मिली थी।
- 2013–14 तक इसका उत्पादन 193% और उत्पादकता 87% बढ़ी।
- भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक और निर्यातक बन गया, 2011–12 में $4.1 बिलियन का शुद्ध निर्यात हुआ।
- आज 90% से अधिक कपास क्षेत्र में Bt बीजों का उपयोग होता है।
- कपास बीज से प्राप्त तेल मानव खाद्य श्रृंखला में जाता है और कपास खली मवेशियों के चारे में प्रयुक्त होती है।
भारत द्वारा किए गए संबंधित प्रयास
- प्रयोगशाला से खेत तक:
- दिल्ली स्थित ICAR वैज्ञानिकों द्वारा विकसित CRISPR-संपादित चावल की किस्में, जो नाइट्रोजन उपयोग दक्षता और उपज में सुधार करती हैं।
- सूखा प्रतिरोधी चने की जीनोम-संपादित किस्म ‘सात्विक (NC9)’।
- केले और खीरे जैसी फसलों को वायरस से बचाने के लिए RNA-आधारित कीटनाशक-मुक्त समाधान।
- ICAR द्वारा विकसित लघु जीनोम संपादक TnpB, जो पौधों की कोशिकाओं में प्रभावी ढंग से कार्य कर सकते हैं।
- जीन बैंक से वैश्विक साझेदारी तक:
- ICAR-NBPGR द्वारा स्थापित भारत का पहला राष्ट्रीय जीन बैंक, जो भविष्य की प्रजनन आवश्यकताओं के लिए आनुवंशिक विविधता को संरक्षित करता है।
- आगरा में अंतरराष्ट्रीय आलू केंद्र (CIP) का क्षेत्रीय केंद्र, जो जलवायु-लचीली और उच्च उपज वाली आलू किस्मों का विकास करेगा।
- अमरंथ जीनोमिक संसाधन डेटाबेस, जो मोटापा और कुपोषण से लड़ने वाली किस्मों की पहचान में सहायता करता है।
चिंताएँ और चुनौतियाँ
- ठहराव और नीति विफलता:
- भारत की कपास उत्पादकता 2013–14 में 566 किग्रा/हेक्टेयर से घटकर 2023–24 में 436 किग्रा/हेक्टेयर हो गई — जो वैश्विक औसत (770 किग्रा/हेक्टेयर) से काफी कम है।
- चीन (1,945 किग्रा/हेक्टेयर) और ब्राज़ील (1,839 किग्रा/हेक्टेयर) की तुलना में भारत काफी पीछे है।
- कीट प्रकोप और नीतिगत बाधाओं के कारण वार्षिक कपास उत्पादन में लगभग 2% की गिरावट आई है।
- अवैध HT-Bt कपास:
- हर्बीसाइड-टॉलरेंट (HT) Bt कपास, जिसे ग्लाइफोसेट छिड़काव की अनुमति मिलती है, को आधिकारिक मंजूरी नहीं मिली है।
- फिर भी, ये बीज गुजरात, महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे राज्यों में अवैध रूप से फैल चुके हैं।
- अनुमान है कि अब 15–25% कपास क्षेत्र में अनधिकृत HT-Bt बीजों का उपयोग हो रहा है।
- नियामक बाधाएँ:
- 2015 से सरकारी हस्तक्षेपों ने अनुसंधान और विकास (R&D) को हतोत्साहित किया:
- बीज मूल्य नियंत्रण आदेश (SPCO) ने रॉयल्टी और ट्रेट शुल्क को सीमित कर 2018 तक ₹39 प्रति पैकेट कर दिया।
- 2020 तक, और सख्त सीमाओं और अनिवार्य तकनीकी हस्तांतरण ने वैश्विक बायोटेक निवेशकों को हतोत्साहित किया।
- 2024–25 में भारत $0.4 बिलियन का शुद्ध कपास आयातक बन गया।
- 2015 से सरकारी हस्तक्षेपों ने अनुसंधान और विकास (R&D) को हतोत्साहित किया:
- अन्य GM नवाचारों पर प्रभाव:
- Bt बैंगन, जिसे GEAC ने मंजूरी दी थी, 2009 से स्थगन (moratorium) में है।
- GM सरसों (DMH-11) को 2022 में पर्यावरणीय मंजूरी मिली, लेकिन वाणिज्यिक उपयोग अभी भी लंबित है।
- GM सोया और मक्का, जो अन्य देशों में व्यापक रूप से उपयोग होते हैं, भारत में अभी भी प्रतिबंधित हैं।
नीति पक्षाघात और अन्य चिंताएँ
- फसल विविधता की हानि:
- उच्च प्रदर्शन वाली GM किस्मों को अपनाने से पारंपरिक और स्थानीय फसलें उपेक्षित हो सकती हैं, जिससे जैव विविधता घटती है।
- बीज पर निर्भरता:
- कुछ GM बीज पेटेंट होते हैं, जिससे किसानों को प्रत्येक मौसम में नए बीज खरीदने पड़ सकते हैं, और बायोटेक कंपनियों पर निर्भरता बढ़ती है।
- सुलभता में असमानता:
- सीमांत और छोटे किसान उच्च लागत, जागरूकता की कमी और बुनियादी ढाँचे के अभाव के कारण इन तकनीकों तक पहुँच नहीं बना पाते।
- नियामक और नैतिक मुद्दे:
- जैव सुरक्षा, लेबलिंग और दीर्घकालिक पारिस्थितिक प्रभावों को लेकर चिंताएँ किसानों और उपभोक्ताओं में असमंजस एवं विरोध उत्पन्न करती हैं।
भारत का संतुलनकारी दृष्टिकोण
- GEAC (जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति) आनुवंशिक रूप से परिवर्तित जीवों को मंजूरी देने और विनियमित करने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
- GEAC ने GM सरसों जैसी कुछ फसलों को फील्ड ट्रायल के लिए मंजूरी दी है, लेकिन वाणिज्यिक उपयोग की गति धीमी है।
- RCGM (आनुवंशिक हेरफेर पर समीक्षा समिति) जैसे नियामक निकाय जैव सुरक्षा और नैतिक उपयोग सुनिश्चित करने में सहायक हैं।
- सार्वजनिक और निजी सहयोग:
- ICAR जैसे सार्वजनिक अनुसंधान संस्थान
- निजी बायोटेक कंपनियाँ जो अत्याधुनिक तकनीक ला रही हैं
- किसान, जिन्हें नई तकनीकों को अपनाने के लिए शिक्षित और सशक्त बनाना आवश्यक है
आगे की राह: विज्ञान आधारित कृषि सुधार की आवश्यकता
- भारत के प्रधानमंत्री का ‘जय अनुसंधान’ और 1 लाख करोड़ रुपये का आरडीआई फंड स्वागत योग्य कदम हैं – लेकिन नवाचार को प्रयोगशाला से ज़मीन पर आना चाहिए।
- जैसा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कल्पना की थी, ‘जो आईटी भारत के लिए है, वही बीटी भारत के लिए हो सकता है’। ग्रामीण समृद्धि को बदलने के लिए जैव प्रौद्योगिकी की क्षमता बहुत अधिक है।
- मुख्य कदमों में शामिल हैं:
- एचटी-बीटी कपास, बीटी बैंगन और जीएम सरसों का अनुमोदन और विनियमन;
- नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए बीज मूल्य निर्धारण और लाइसेंसिंग नीतियों में सुधार;
- जीएम सुरक्षा और लाभों में विश्वास बनाने के लिए सार्वजनिक भागीदारी।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] आनुवंशिक प्रौद्योगिकी का एकीकरण भारतीय कृषि के भविष्य को किस सीमा तक बदल सकता है, और इसके व्यापक रूप से अपनाए जाने से कौन सी सामाजिक-आर्थिक चिंताएं उत्पन्न हो सकती हैं? |
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