भारत के वस्त्र नेतृत्व के लिए स्थिरता के बीज

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था

संदर्भ 

  • विश्व के सबसे बड़े टेक्सटाइल विनिर्माण केंद्रों में से एक होने के बावजूद, भारत को भू-राजनीतिक तनाव, खंडित आपूर्ति शृंखला और मूल्य अस्थिरता जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • इसके अतिरिक्त, स्थिरता (Sustainability) सुनिश्चित करना दीर्घकालिक वैश्विक नेतृत्व के लिए अनिवार्य हो गया है।

भारत का वस्त्र उद्योग

  • भारत प्राचीन काल से ही प्रमुख वस्त्र निर्माता रहा है, और इसके सूती एवं रेशमी वस्त्रों की वैश्विक बाजारों में अत्यधिक माँग रही है।
    • मुगल काल में वस्त्र उद्योग फला-फूला, जहाँ जटिल बुनाई तकनीक और उज्ज्वल रंगों वाले वस्त्र भारतीय कपड़ों की पहचान बन गए।
  • औपनिवेशिक शासन के दौरान पारंपरिक उत्पादन बाधित हुआ, जिससे इस क्षेत्र में गिरावट आई।
  • स्वतंत्रता के पश्चात्, भारत ने अपने वस्त्र क्षेत्र को पुनर्जीवित करने पर ध्यान केंद्रित किया, मिलों की स्थापना की और स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा दिया।

वर्तमान आँकड़े और उद्योग अंतर्दृष्टि

  • यह भारत के GDP में 2.3% योगदान देता है, औद्योगिक उत्पादन में 13% और निर्यात में 12%
  • उद्योग में 45 मिलियन से अधिक लोग कार्यरत हैं (कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता)।
  • भारत वैश्विक स्तर पर छठा सबसे बड़ा वस्त्र और परिधान निर्यातक है, जिसमें FY 2023-24 में $34.4 बिलियन का निर्यात हुआ।
  • भारत 100+ देशों को वस्त्र निर्यात करता है, जिसका वैश्विक व्यापार में 4.5% हिस्सा है।
  • भारत का वस्त्र क्षेत्र 2030 तक $350 बिलियन के बाजार और 35 मिलियन नए रोजगार जोड़ने की क्षमता रखता है।

भारत के वस्त्र उद्योग में स्थिरता संबंधी चिंताएँ

  • वस्त्र अपशिष्ट: यह वैश्विक लैंडफिल कचरे का 5% से अधिक योगदान देता है। साथ ही अत्यधिक जल उपयोग एक प्रमुख समस्या बना हुआ है।
    • डाईंग और प्रोसेसिंग में उपयोग होने वाले नॉनाइलफेनोल एथॉक्सिलेट्स (NPEs) जैसे रसायन कर्मचारियों के स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।
  • कार्बन फुटप्रिंट और ऊर्जा उपयोग: उद्योग जीवाश्म ईंधनों पर अत्यधिक निर्भर है, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि होती है।
    • यद्यपि कुछ कंपनियां सौर छतों और बायोमास ऊर्जा को अपना रही हैं, स्वच्छ ऊर्जा समाधानों को व्यापक रूप से अपनाने में अभी भी कमी है।
  • अपशिष्ट उत्पादन और सर्कुलरिटी चुनौतियाँ: भारत पूर्व और पश्चात उपभोक्ता अपशिष्ट प्रबंधन में संघर्ष कर रहा है।
  • सतत् कच्चे माल की कमी: पारंपरिक कपास की खेती में कीटनाशकों और अत्यधिक जल उपयोग से मृदा की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

वस्त्र उद्योग में अन्य चुनौतियाँ

  • उच्च कच्चे माल की लागत: कपास, जूट और सिंथेटिक फाइबर की कीमतों में उतार-चढ़ाव
  • पुरानी विनिर्माण अवसंरचना: स्वचालन और आधुनिक मशीनरी को अपनाने की गति धीमी।
  • वैश्विक बाजारों से प्रतिस्पर्धा: चीन, वियतनाम और बांग्लादेश से मजबूत प्रतिस्पर्धा
  • कुशल श्रम की कमी: उद्योग की माँगों को पूरा करने के लिए कार्यबल को अपस्किलिंग की आवश्यकता
  • आपूर्ति शृंखला समस्याएँ: लॉजिस्टिक्स अक्षमताएँ और निर्यात-आयात बाधाएँ
  • सीमित बाजार पहुँच: व्यापार अवरोध, उच्च शुल्क और FTA सीमाएँ

भारत के लिए रणनीतिक अवसर

  • पुनर्योजी खेती (Regenerative Farming): यह कच्चे माल की आपूर्ति, जलवायु परिवर्तन और मृदा ह्रास से जुड़े मुद्दों को संबोधित करता है।
    • महाराष्ट्र में 6,000+ किसान पुनर्योजी कपास कार्यक्रम में शामिल हुए हैं, जिससे उत्पादकता में वृद्धि, जलवायु प्रतिरोधकता और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम हुई है।
  • उत्पाद की ट्रेसबिलिटी: यह प्रामाणिकता, ब्रांड उत्तरदायित्व और वैश्विक बाजार प्रासंगिकता को दर्शाता है।
    • कस्तूरी कॉटन पहल भारत के वस्त्र ब्रांडिंग को वैश्विक स्तर पर बढ़ाती है।
    • भारत-यू.के. मुक्त व्यापार समझौता (FTA) और EU विनियम पारदर्शी उत्पादन प्रणालियों की माँग के कारण महत्त्वपूर्ण बाजार अवसर प्रदान करते हैं।
  • उत्पाद सर्कुलरिटी: भारत वैश्विक वस्त्र अपशिष्ट का 8.5% उत्पन्न करता है।
    • वस्त्र अपशिष्ट कम करने, उत्पाद जीवन चक्र बढ़ाने और नए कच्चे माल पर निर्भरता घटाने में सहायता कर सकता है।
    • सर्कुलर डिजाइन में सम्मिलित हैं:
      • फाइबर से पैकेजिंग तक स्थिरता एकीकृत करना
      • कारखाने के अपशिष्ट को नए डिजाइनों में पुनः संयोजित करना
      • प्लास्टिक मुक्त और बायोडिग्रेडेबल समाधान को बढ़ावा देना

स्थिरता की दिशा में प्रयास

  • पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासन (ESG) टास्क फोर्स: कपड़ा मंत्रालय द्वारा स्थापित, जो स्थिरता संबंधी चर्चाओं और पहलों को लागू करता है।
  • PM MITRA पार्क योजना: विश्व स्तरीय कपड़ा विनिर्माण अवसंरचना बनाने और स्थायी उत्पादन प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए।
  • प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (TUFS): ऊर्जा-कुशल और पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों को अपनाने में वस्त्र निर्माताओं की सहायता करता है।
  • कस्तूरी कॉटन पहल: उच्च गुणवत्ता वाले भारतीय कपास को वैश्विक पर्यावरणीय मानकों पर खरा उतारने के लिए।
  • राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन: इको-फ्रेंडली सामग्रियों और स्थायी उत्पादन तकनीकों में नवाचार पर केंद्रित।

आगे की राह 

  • भारत को ग्रीनवॉशिंग से आगे बढ़कर, पुनर्योजी खेती अपनाने, पारदर्शी आपूर्ति शृंखला बनाने और उत्पाद सर्कुलरिटी को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। आज लिए गए रणनीतिक निर्णय यह निर्धारित करेंगे कि भारत भविष्य में एक स्थायी वैश्विक वस्त्र नेता बनेगा या नहीं।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत का कपड़ा उद्योग दीर्घकालिक वैश्विक नेतृत्व सुनिश्चित करते हुए आर्थिक विकास के साथ स्थिरता को कैसे संतुलित कर सकता है?

Source: TH

 

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