भारत में समुद्र स्तर में वृद्धि

पाठ्यक्रम: GS3/पर्यावरण एवं संरक्षण

संदर्भ

  • पिछले तीन दशकों में केरल के समुद्र तट में नाटकीय रूप से बदलाव आया है, तटीय कटाव, बढ़ते समुद्री स्तर और मानवीय हस्तक्षेप की निरंतर शक्तियों के कारण यह सिकुड़ता जा रहा है।
    • केरल के 55% से अधिक समुद्र तट को अब असुरक्षित के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिससे नौ तटीय जिलों में 9.3 मिलियन से अधिक लोगों की आजीविका को खतरा है।

भारत भर में समुद्र स्तर में वृद्धि

  • इससे पहले, सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (CSTEP) द्वारा प्रकाशित “चयनित भारतीय तटीय शहरों के लिए समुद्र तल वृद्धि परिदृश्य और जलप्लावन मानचित्र” शीर्षक वाली रिपोर्ट, 15 भारतीय तटीय शहरों पर समुद्र तल वृद्धि (SLR) के अनुमानित प्रभावों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है। 
  • रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय तटीय शहरों में समुद्र का स्तर काफी बढ़ गया है, जिसमें मुंबई में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है, उसके बाद हल्दिया और विशाखापत्तनम का स्थान है। 
  • 2040 तक, मुंबई, यनम एवं थूथुकुडी में 10% से अधिक भूमि जलमग्न होने का अनुमान है, जबकि पणजी और चेन्नई में 5%-10% जलमग्नता देखी जा सकती है।
  •  कोच्चि, मंगलुरु और पुरी जैसे अन्य शहर 1%-5% जलमग्नता का सामना कर रहे हैं। 
  • यह बढ़ते समुद्र के स्तर के प्रभाव को कम करने के लिए स्थानीय अनुकूलन और लचीलापन रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता पर बल देता है।

समुद्र स्तर में वृद्धि के कारण

  • बढ़ता तापमान: जीवाश्म ईंधन के जलने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक तापमान में लगातार वृद्धि हुई है।
  •  पिघलते ग्लेशियर और बर्फ की टोपियाँ: जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ता है, बर्फ पिघलती है, जिससे महासागरों में अधिक जल जमा होता है। 
  • तापीय विस्तार: जैसे-जैसे समुद्री जल गर्म होता है, यह फैलता है, अधिक जगह घेरता है और समुद्र का स्तर बढ़ाता है।

समुद्र स्तर में वृद्धि से जुड़ी चुनौतियाँ

  • जिन प्रमुख क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ेगा उनमें जल, कृषि, वन और जैव विविधता तथा स्वास्थ्य शामिल हैं।
  • तटीय बाढ़: निचले तटीय क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति बढ़ेगी, जिससे समुदाय विस्थापित होंगे और बुनियादी ढाँचे को हानि पहुँचेगा।
  • कृषि प्रभाव: स्वच्छ जल के स्रोतों में लवणीय जल का प्रवेश, जिससे फसल उत्पादन प्रभावित होगा।
  • लोगों का विस्थापन: तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोगों के लिए खतरा, अंतर्देशीय क्षेत्रों पर प्रवास और दबाव में वृद्धि।
  • आर्थिक हानि: बंदरगाहों, पर्यटन एवं मछली पकड़ने के उद्योगों को हानी, जिससे आजीविका और अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी।

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत के प्रयास

  • नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार: भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के लिए महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं, जिसका उद्देश्य अपनी क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि करना है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: भारत पेरिस समझौते पर हस्ताक्षरकर्ता है और उसने 2030 तक अपनी बिजली की 50% माँग नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पूरी करने का लक्ष्य घोषित किया है।
  • वनीकरण और वन संरक्षण: वन क्षेत्र को बढ़ाने, बंजर भूमि को पुनर्स्थापित करने और स्थायी वन प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम हैं।
  • स्वच्छ परिवहन: भारत इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को अपनाने को बढ़ावा दे रहा है और उसने 2030 तक 30% EVs बाजार हिस्सेदारी का लक्ष्य रखा है।
  • जलवायु प्रतिरोधकता: इसमें जलवायु-प्रतिरोधकता फसल किस्मों, जल संरक्षण तकनीकों और आपदा तैयारी उपायों का विकास शामिल है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिए गठबंधन जैसी पहलों में शामिल होना।
भारत की तटरेखा
– हाल ही में गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की तटरेखा पाँच दशकों में लगभग आधी हो गई है – 1970 में 7,516 किमी से 2023-24 में 11,098 किमी तक – बंगाल, गुजरात और गोवा जैसे राज्यों ने अपनी तटरेखा में वृद्धि की है जबकि पुडुचेरी की तटरेखा में 10.4% की कमी आई है।
– यह पश्चिम में अरब सागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में हिंद महासागर से घिरा है।
राज्य: गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल।
1. गुजरात की तटरेखा भारत में सबसे लंबी है।
केंद्र शासित प्रदेश: दमन और दीव, लक्षद्वीप, पुडुचेरी और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह।केंद्र शासित प्रदेश

Source: TOI

 

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