संसदीय पैनल फेक न्यूज़(Fake News) पर अंकुश लगाने की व्यवस्था की समीक्षा करेगा

पाठ्यक्रम: GS2/शासन व्यवस्था 

समाचार में 

  • संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय पैनल ने फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाने के लिए तंत्र की समीक्षा का आह्वान किया है।

परिचय 

  • फेक न्यूज़ या तो गलत सूचना होती हैं (जानबूझकर नुकसान पहुंचाने के लिए गलत सूचना) या भ्रामक सूचना(अनजाने में साझा की गई भ्रामक सूचना)। 
  • गलत सूचना का उद्देश्य समाज में भ्रम और संघर्ष उत्पन्न करना होता है।

भारत में स्थिति

  • विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक जोखिम 2024 रिपोर्ट में गलत सूचना को एक प्रमुख अल्पकालिक जोखिम के रूप में रेखांकित किया गया है और भारत को भ्रामक सूचना फैलाने वाले अग्रणी देश के रूप में पहचाना गया है। 
  • MIT द्वारा किए गए एक अध्ययन से पुष्टि होती है कि भ्रामक सूचना सच्चाई की तुलना में तेज़ी से और व्यापक रूप से फैलती है।

Key Drivers 

  • भारत अपनी विशाल जनसँख्या और उच्च इंटरनेट पहुंच के साथ, समाचार एवं सूचना के सबसे बड़े उपभोक्ताओं तथा उत्पादकों में से एक बन गया है।
    • भारतीय जनसँख्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा समाचार अपडेट के लिए फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर निर्भर करता है।
  • राजनीतिक एजेंडा, धार्मिक गलत सूचना, अफवाहें और सनसनीखेज दावे प्रायः तैयार दर्शक वर्ग को मिल जाते हैं, जिससे झूठे आख्यानों पर व्यापक विश्वास पैदा होता है।

प्रभाव

  • लोकतंत्र के लिए खतरा: आज के “पोस्ट-ट्रुथ(post-truth)” युग में, भावनात्मक अपील प्रायः वस्तुनिष्ठ तथ्यों पर भारी पड़ जाती है, जिससे लोग गलत सूचनाओं के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
    • इससे जनमत प्रभावित हो सकता है, विशेष तौर पर चुनावों के दौरान, और यहां तक ​​कि जानकार लोग भी झूठे दावों को स्वीकार कर सकते हैं।
    • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग सामान्यतः फर्जी खबरें फैलाने के लिए किया जाता है, कभी-कभी राजनीतिक दल विभाजन को भड़काने के लिए भी इसका प्रयोग करते हैं।
    • अति-राष्ट्रवाद ने भी भारत में गलत सूचना के प्रसार को खराब कर दिया है।
  • सामाजिक विभाजन और ध्रुवीकरण: फेक न्यूज़ जनमत को ध्रुवीकृत कर सकती हैं, चरमपंथी विचारों को फैला सकती हैं, हिंसा भड़का सकती हैं (जैसे बेंगलुरु एवं मुजफ्फर नगर में हुए हमले) और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक निर्णय ले सकती हैं, जैसा कि कोविड-19 महामारी के दौरान देखा गया।
  • मीडिया और संस्थाओं में विश्वास कम होता है: फेक न्यूज़ के लगातार संपर्क में रहने से वैध मीडिया आउटलेट्स और सरकारी संस्थाओं में जनता का विश्वास कम होता है, जिससे विश्वसनीय जानकारी प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • आर्थिक परिणाम: भ्रामक सूचना उत्पादों, स्टॉक या उद्योगों के बारे में झूठे दावे फैलाकर व्यवसायों और बाजारों को प्रभावित कर सकती है, जिससे आर्थिक नुकसान एवं प्रतिष्ठा को हानि हो सकती है।

फेक न्यूज़ को नियंत्रित करने में चुनौतियां

  • फर्जी खबरों को परिभाषित करना: स्पष्ट रूप से परिभाषित करना कठिन है, जिससे गलत सूचना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संतुलित करना: सेंसरशिप से बचने के लिए विनियमन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ संतुलित करना चाहिए।
  • उन्नत तकनीक: डीपफेक जैसे उपकरण फर्जी खबरों का पता लगाना कठिन बनाते हैं।
  • सोशल मीडिया जवाबदेही: प्लेटफ़ॉर्म में उपयोगकर्ता सामग्री के लिए पूर्ण जवाबदेही का अभाव है।
  • तेजी से प्रसार: फर्जी खबरें तथ्यात्मक सुधारों की तुलना में तेजी से फैलती हैं।
  • कम डिजिटल साक्षरता: कई लोग फर्जी खबरों की पहचान करने में संघर्ष करते हैं।

सरकार के प्रयास

  • इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने IT(मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023 (2023 नियम) जारी किए, जिससे सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में संशोधन किया गया।
    • IT नियम, 2021 के नियम 3(1)(b)(v) में संशोधन ने सामान्य शब्द “फेक न्यूज़” का विस्तार करके “सरकारी व्यवसाय” को भी इसमें शामिल कर दिया है। नियमों के तहत, अगर FCU को कोई ऐसी पोस्ट मिलती है या उसके बारे में जानकारी मिलती है जो “फेक(fake)”, “गलत(false)” है या जिसमें सरकार के व्यवसाय से संबंधित “भ्रामक(misleading)” तथ्य हैं, तो वह इसे सोशल मीडिया मध्यस्थों को सूचित करेगा।
    • हाल ही में, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने केंद्र की तथ्य जांच इकाई को आधिकारिक रूप से खारिज कर दिया, और संशोधित IT नियमों को ‘असंवैधानिक(unconstitutional)’ करार दिया, जिससे पारदर्शिता सुनिश्चित करने और डिजिटल शासन में शक्ति के संभावित दुरुपयोग से बचने के लिए ढांचे की आवश्यकता पर बल दिया गया।
  • तथ्य-जांच की वर्तमान स्थिति: प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) अभी भी एक तथ्य-जांच इकाई संचालित करता है, लेकिन इसमें “फेक न्यूज़(fake news)” मानी जाने वाली सामग्री को हटाने की शक्ति का अभाव है।
  • डिजिटल साक्षरता अभियान: प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA) जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता में सुधार करना है, ताकि नागरिक फेक न्यूज़  को बेहतर ढंग से पहचान सकें और उनसे बच सकें।

सुझाव और आगे की राह

  • सरकारों को स्कूलों में मीडिया साक्षरता और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देना चाहिए, छात्रों को जानकारी का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने में सहायता करने के लिए कार्यशालाओं को अनिवार्य बनाना चाहिए। 
  • सरकारों, तकनीकी प्लेटफ़ॉर्म और स्वतंत्र संगठनों को तथ्य-जांच नेटवर्क का विस्तार करने और गलत सूचना से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म में वास्तविक समय सत्यापन उपकरणों को एकीकृत करने के लिए सहयोग करना चाहिए। 
  • सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को नकली समाचारों का पता लगाने और भ्रामक सूचनाओं को लेबल करने के लिए AI का उपयोग करके अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए। 
  • शिक्षित समाज में अरस्तू की अंतर्दृष्टि आलोचनात्मक सोच की शक्ति को रेखांकित करती है: विचारों को स्वचालित रूप से अपनाने के बिना उनका मूल्यांकन करने की क्षमता।

Source: TH

 

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