महाराष्ट्र का ‘शहरी माओवाद’ विधेयक

पाठ्यक्रम: GS3/ सुरक्षा

समाचार में 

  • महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा (MSPS) विधेयक, 2024 — जिसे सामान्यतः ‘अर्बन माओवाद’ विधेयक कहा जा रहा है — हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा द्वारा पारित किया गया।

पृष्ठभूमि और उद्देश्य 

  • इस विधेयक को वर्तमान कानूनों (जैसे कि यूएपीए) की अपर्याप्तता के जवाब में प्रस्तुत किया गया है, जो माओवादी संगठनों की बदलती रणनीतियों से निपटने में असमर्थ माने गए।
    • ये संगठन शहरी मोर्चों — जैसे कि एनजीओ, बौद्धिक मंडल, छात्र और मीडिया — का उपयोग ग्रामीण सशस्त्र संघर्ष के समर्थन और राज्य संस्थानों को कमजोर करने के लिए कर रहे हैं। 
    • महाराष्ट्र ने तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों की कतार में विशेष सार्वजनिक सुरक्षा कानूनों को अपनाया है।

मुख्य विशेषताएं

  •  उद्देश्य: यह विधेयक शहरी नक्सलवाद का मुकाबला करने के लिए प्रतिबंधित संगठनों और उनकी गतिविधियों को शहरी क्षेत्रों में समर्थन देने — चाहे वह लिखित, मौखिक, प्रतीकात्मक या हिंसक हो — को अपराध घोषित करता है।
  • अवैध गतिविधि की परिभाषा: इसमें ऐसी गतिविधियाँ शामिल हैं जो सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करती हैं, कानून की अवहेलना को प्रोत्साहित करती हैं, या उग्रवादी संगठनों की सहायता करती हैं।
    • इसमें बौद्धिक, वित्तीय या रसद समर्थन शामिल हैं, जिनमें मीडिया अभियान और कानूनी रक्षा भी शामिल हैं।
  • राज्य का अधिकार: सरकार संगठनों को “अवैध” घोषित कर सकती है और व्यक्तियों को सदस्यता, धन संग्रह, सहायता देने या अवैध कार्य करने के लिए दंडित कर सकती है।
  • दंड: अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती माना जाएगा, जिनमें 2 से 7 वर्षों की कारावास और ₹2 लाख से ₹5 लाख तक के जुर्माने शामिल हैं।
  • संपत्ति की जब्ती: राज्य अवैध संगठनों से जुड़ी संपत्तियों को दोष सिद्ध होने से पहले ही जब्त कर सकता है, जिसमें 15 दिन की नोटिस अवधि होगी; प्रभावित पक्ष उच्च न्यायालय में 30 दिनों के अंदर चुनौती दे सकते हैं।
  • संरक्षण उपाय: केवल वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ही जांच का नेतृत्व कर सकते हैं, और संगठनों की अवैध स्थिति की पुष्टि एक तीन सदस्यीय सलाहकार मंडल द्वारा की जाएगी, जिसमें उच्च न्यायालय की योग्यता वाले व्यक्ति शामिल होंगे।

Source: TH

 

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