पाठ्यक्रम: GS2/ राजव्यवस्था और शासन
संदर्भ
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 12 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के 1971 के चुनाव को चुनावी कदाचार के आधार पर अमान्य घोषित कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, 25 जून 1975 को राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की गई।
राष्ट्रीय आपातकाल के लिए संवैधानिक प्रावधान
- घोषणा के आधार: संविधान के अनुच्छेद 352 के अनुसार, यदि भारत की सुरक्षा या इसके किसी भाग को खतरा हो तो राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर सकते हैं:
- युद्ध और बाहरी आक्रमण (बाहरी आपातकाल)
- सशस्त्र विद्रोह (आंतरिक आपातकाल): 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा ‘आंतरिक अशांति’ को ‘सशस्त्र विद्रोह’ से प्रतिस्थापित किया गया।
प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय
- मंत्रिमंडल के परामर्शकी आवश्यकता: 44वें संशोधन अधिनियम के अंतर्गत राष्ट्रपति को आपातकाल घोषित करने से पहले मंत्रिपरिषद् की लिखित सिफारिश अनिवार्य है।
- संसदीय अनुमोदन: दोनों सदनों से एक महीने के अन्दर अनुमोदन आवश्यक।
- यदि लोकसभा भंग हो जाती है, तो राजसभा की स्वीकृति से आपातकाल पुनर्गठित लोकसभा के गठन के 30 दिनों तक जारी रह सकता है।
- यदि संसद के दोनों सदन इसे मंजूरी देते हैं, तो आपातकाल छह महीने तक जारी रह सकता है और प्रत्येक छह महीने के लिए संसद द्वारा मंजूरी से अनिश्चित काल तक बढ़ाया जा सकता है।
- विशेष बहुमत की आवश्यकता: आपातकाल की घोषणा या उसके निरंतर प्रभावी रहने को मंजूरी देने वाले प्रत्येक प्रस्ताव को संसद के किसी भी सदन में विशेष बहुमत से पारित किया जाना चाहिए:
- उस सदन की कुल सदस्यता का बहुमत, और
- उस सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों का बहुमत।
- रद्दीकरण: राष्ट्रपति एक नए घोषणा-पत्र द्वारा आपातकाल को निरस्त कर सकते हैं।
- यदि लोकसभा इसके निरंतर प्रभाव को अस्वीकार करने वाला प्रस्ताव पारित करती है, तो राष्ट्रपति को इसे वापस लेना आवश्यक होगा।
मौलिक अधिकारों पर प्रभाव
- अनुच्छेद 358: अनुच्छेद 19 का स्वचालित निलंबन;
- यह केवल युद्ध या बाहरी आक्रमण के कारण लागू होता है (सशस्त्र विद्रोह पर लागू नहीं)।
- अनुच्छेद 19 के अंतर्गत मौलिक अधिकार स्वतः समाप्त हो जाते हैं, अलग आदेश की आवश्यकता नहीं होती।
- अनुच्छेद 359: अन्य मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर) के प्रवर्तन का निलंबन;
- राष्ट्रपति अलग आदेश जारी कर सकते हैं और संसद को इन आदेशों को मंजूरी देनी होती है।
- मिनर्वा मिल्स केस (1980): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि आपातकाल की घोषणा की वैधता न्यायिक समीक्षा के अधीन है, यदि यह दुर्भावनापूर्ण, अप्रासंगिक तथ्यों पर आधारित, या अनुचित हो।
भारत में राष्ट्रीय आपातकाल के ऐतिहासिक उदाहरण
आधार | अवधि |
---|---|
बाह्य आक्रमण (चीन) | 1962-1968 |
बाह्य आक्रमण (पाकिस्तान) | 1971-1977 |
आंतरिक अशांति | 1975-1977 |
आपातकाल अवधि की आलोचना
- भारत में आपातकाल (25 जून 1975 – 21 मार्च 1977) को अक्सर भारतीय लोकतंत्र के “अंधकारमय युग” के रूप में जाना जाता है क्योंकि:
- कई मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, जिनमें बोलने, सभा करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता शामिल थी।
- प्रेस की स्वतंत्रता को पूर्व-सेंसरशिप और सरकारी नियंत्रण के माध्यम से बाधित किया गया।
- रक्षा कानून (MISA) के अंतर्गत हजारों राजनीतिक नेताओं, कार्यकर्ताओं और असहमति व्यक्त करने वालों को बिना मुकदमे के गिरफ्तार किया गया।
- न्यायिक स्वतंत्रता कमजोर हुई: 39वें संशोधन ने प्रधानमंत्री के चुनाव को न्यायिक समीक्षा से बाहर कर दिया, जिससे संतुलन तंत्र को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हुईं।
- निर्णय-निर्माण अत्यधिक केंद्रीकृत हो गया और कार्यपालिका की शक्ति का अधिकाधिक समावेश हुआ।
लोकतांत्रिक शासन के लिए सीख
- 1975 के बाद के संवैधानिक संशोधनों (44वें CAA) ने एकतरफा कार्रवाई से बचने के लिए महत्त्वपूर्ण सुरक्षा उपाय प्रस्तुत किए हैं – जैसे कि अनिवार्य मंत्रिमंडल परामर्श और समय-समय पर संसदीय अनुमोदन।
- मौलिक अधिकारों की रक्षा: अनुच्छेद 20 और 21 को संशोधनों द्वारा सुरक्षित किया गया, जिससे मौलिक मानवाधिकारों को मजबूती मिली।
- न्यायपालिका की भूमिका: सर्वोच्च न्यायालय ने बेसिक स्ट्रक्चर सिद्धांत को लागू कर आपातकाल की न्यायिक समीक्षा को संभव बनाया, जिससे कार्यपालिका की अतिरेकता पर संवैधानिक नियंत्रण सुनिश्चित किया गया।
Source: IE
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