महासागर अम्लीकरण

पाठ्यक्रम: GS3/ पर्यावरण

संदर्भ

  • एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि महासागर अम्लीकरण ने अपनी ग्रहीय सीमा को पार कर लिया है, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और वैश्विक जलवायु स्थिरता को गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।

महासागर अम्लीकरण क्या है?

  • महासागर अम्लीकरण पृथ्वी के महासागरों में pH स्तर में लगातार गिरावट को संदर्भित करता है, जो वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) के अवशोषण के कारण होता है। 
  • जब CO₂ समुद्री जल में घुलता है, तो यह कार्बनिक अम्ल (Carbonic Acid) बनाता है, जिससे महासागर का pH कम होता है और कैल्शियम कार्बोनेट का स्तर घट जाता है—जो कई समुद्री जीवों के लिए आवश्यक है।
महासागर अम्लीकरण

ग्रहीय सीमा का उल्लंघन

  • ग्रहीय सीमाएँ (Planetary Boundaries) वे सीमारेखा हैं, जिनसे परे पृथ्वी की आवश्यक प्रणालियाँ स्थिर वातावरण बनाए रखने में सक्षम नहीं हो सकतीं।
  • अध्ययन में पाया गया कि वर्ष 2020 तक, वैश्विक महासागर की औसत स्थितियाँ पहले से ही औद्योगिक-पूर्व कैल्शियम कार्बोनेट संतृप्ति स्तर से 20% नीचे गिर चुकी थीं, जिससे अम्लीकरण के लिए सुरक्षित सीमा पार हो गई।
  • समुद्र की सतह से 200 मीटर नीचे, वैश्विक जल का 60% सुरक्षित सीमा से आगे निकल चुका था

महासागर अम्लीकरण के प्रभाव

  • संवहनीय प्रजातियाँ प्रभावित: प्रवाल (Corals), सीप (Oysters), मसल्स (Mussels) और प्टेरोपॉड्स (Sea Butterflies) सबसे अधिक संवेदनशील हैं।
  • अम्लीकरण से बाह्य आवरण और कंकाल कमजोर होते हैं, प्रजनन दर घटती है, विकास धीमा पड़ता है, और मृत्यु दर बढ़ती है
  • मछली पालन और आजीविका: मछली प्रजनन स्थलों में गिरावट खाद्य सुरक्षा और तटीय समुदायों की आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करती है।
  • पर्यटन क्षेत्र: प्रवाल भित्ति (Coral Reef) का ह्रास पर्यटन और डाइविंग उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
  • जलवायु प्रतिक्रिया (Climate Feedbacks): महासागर पारिस्थितिकी तंत्र, जैसे प्लवक (Plankton) को हानि, महासागरों की कार्बन पृथक्करण क्षमता को प्रभावित कर सकता है, जिससे वैश्विक तापमान वृद्धि तेज हो सकती है।
  • सामाजिक प्रभाव: जलवायु-संबंधित प्रवासन और आजीविका हानि से भू-राजनीतिक तनाव बढ़ सकता है। तटीय क्षेत्रों में बेरोजगारी बढ़ने से सामाजिक अशांति उत्पन्न हो सकती है।

महासागर अम्लीकरण से निपटने के लिए पहलें

  • ग्लोबल ओशन अम्लीकरण ऑब्जर्विंग नेटवर्क (GOA-ON):
    • 66 देशों के 367 सदस्य इस अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क का भाग हैं।
    • इसका उद्देश्य नदी, तटीय और खुली महासागर प्रणालियों में महासागर अम्लीकरण की निगरानी और समझ बढ़ाना है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासागर विज्ञान दशक (2021–2030):
    • 2017 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा घोषित, यह पहल महासागर स्वास्थ्य में गिरावट को उलटने का लक्ष्य रखती है।
    • यह वैज्ञानिक अनुसंधान, तकनीकी नवाचार और नीति-सम्बंधित ज्ञान को बढ़ावा देता है।
    • SDG-14 (“जल के नीचे जीवन”) और व्यापक जलवायु प्रतिरोधकता प्राप्त करने में देशों की सहायता करता है।
  • यूनेस्को का अंतरसरकारी समुद्र विज्ञान आयोग (IOC):
    • ग्लोबल ओशन ऑब्जर्विंग सिस्टम (GOOS) के तहत pH और CO₂ स्तर की निगरानी को समर्थन देता है।
  • ब्लू कार्बन पहल:
    • इसमें शोध, नीति सलाह और वित्त पोषण तंत्र शामिल हैं।
    • मैन्ग्रोव, सॉल्ट मार्श और सीग्रास जैसे तटीय और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा संग्रहीत कार्बन को बढ़ावा देता है।

आगे की राह

  • नीति और शासन:
    • महासागर अम्लीकरण को राष्ट्रीय जलवायु और महासागर नीतियों में मुख्यधारा में लाएं
    • मरीन स्पेशल प्लानिंग और समेकित तटीय क्षेत्र प्रबंधन (ICZM) को प्राथमिकता दें।
  • स्थानीय अनुकूलन और संरक्षण:
    • मैन्ग्रोव और सीग्रास जैसे सहनशील पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण और पुनर्स्थापन करना।
    • उच्च संवेदनशीलता वाले क्षेत्रों में समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPAs) को लागू करना

निष्कर्ष

  • महासागर अम्लीकरण केवल एक समुद्री समस्या नहीं है, बल्कि यह जैव विविधता, अर्थव्यवस्था, खाद्य प्रणाली और जलवायु प्रतिरोधकता को प्रभावित करने वाला बहुआयामी संकट है। 
  • इसकी निष्क्रिय लेकिन तीव्र गति वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर तत्काल और समन्वित नीति प्रतिक्रियाओं की मांग करती है।

Source: Guardian 

 

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