वैश्विक पर्यावरण आउटलुक

पाठ्यक्रम: GS3/पर्यावरण

संदर्भ

  • वैश्विक पर्यावरण आउटलुक, सातवाँ संस्करण: ए फ्यूचर वी चूज़ (GEO-7) को नैरोबी में आयोजित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा के सातवें सत्र के दौरान जारी किया गया।

परिचय

  • GEO-7, UNEP का प्रमुख आकलन है जिसे सर्वप्रथम 1997 में प्रकाशित किया गया था।
  • यह एक प्रमुख वैज्ञानिक रिपोर्ट है जो ग्रह के पर्यावरणीय स्वास्थ्य, नीतियों की प्रभावशीलता और भविष्य की प्रवृत्तियों की समीक्षा करती है।
  • यह वैश्विक पर्यावरणीय कार्रवाई और नीति को दिशा देने के लिए महत्वपूर्ण, सहभागी एवं विज्ञान-आधारित डेटा प्रदान करती है।

रिपोर्ट की प्रमुख विशेषताएँ

  • टिपिंग पॉइंट्स: आगामी कुछ वर्षों से दशकों में कई टिपिंग पॉइंट्स हो सकते हैं:
    • मानसून की तीव्रता और समय में परिवर्तन।
    • आर्कटिक समुद्री बर्फ का नुकसान, जो जेट स्ट्रीम को बदल सकता है।
    • चरम मौसम घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में बदलाव।
    • पर्माफ्रॉस्ट का अचानक पिघलना, जिससे कुछ वर्षों में मीथेन का भारी उत्सर्जन हो सकता है।
    • प्रवाल (Coral) का मरना पहले से ही शुरू हो चुका है और अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (AMOC) का पतन यूरोप और अफ्रीका में जलवायु में तीव्र बदलाव ला सकता है।
  • चिंताजनक प्रवृत्तियाँ:
    • वैश्विक तापन पहले के अनुमानों से अधिक तीव्रता से बढ़ रहा है।
    • 10 लाख प्रजातियाँ विलुप्त होने के खतरे में हैं।
    • 20–40% भूमि क्षतिग्रस्त है।
    • ठोस अपशिष्ट पहले से ही प्रति वर्ष 2 अरब टन से अधिक है और आगे बढ़ेगा।
    • 2060 तक यदि नीतियों में बदलाव नहीं हुआ तो प्लास्टिक उत्पादन तीन गुना हो सकता है।
    • प्रदूषण से प्रति वर्ष 90 लाख लोगों की मृत्यु होती है।
    • जलवायु परिवर्तन 2050 तक वैश्विक GDP को 4% और सदी के अंत तक 20% तक घटा सकता है।
  • वैश्विक तापन:
    • विश्व पहले ही 1.3°C गर्म हो चुकी है।
    • अनुमान बताते हैं कि 2100 तक तापमान 2.4°C से 3.9°C तक बढ़ सकता है, जो IPCC मॉडलों की तुलना में तीव्र है।
  • परस्पर जुड़े कारक: जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, संसाधन-गहन जीवनशैली और शासन की विफलताएँ पर्यावरणीय दबावों को बढ़ाती हैं।
  • वर्तमान नीतियों की विफलताएँ:
    • वर्तमान नीतियाँ अपर्याप्त हैं।
    • यदि परिवर्तन नहीं हुआ तो कोई भी पर्यावरणीय SDG हासिल नहीं होगा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत पर्यावरणीय लक्ष्य (जैसे पेरिस समझौता, कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क और आइची लक्ष्य) पूरे नहीं होंगे।
  • भारत-विशेष:
    • मानसून प्रणाली में बदलाव दक्षिण एशिया सहित भारत को प्रभावित कर सकता है, जिससे जल, कृषि और खाद्य प्रणालियों पर प्रभाव पड़ेगा।
    • मानसून परिसंचरण में बदलाव भारत में सूखा, बाढ़ और जल संकट को बढ़ा सकता है।
    • भारत भूमि क्षरण का सामना कर रहा है जो इसके लगभग 33% भौगोलिक क्षेत्र (115-120 मिलियन हेक्टेयर) को प्रभावित करता है, जिससे कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।
    • आकलन बताते हैं कि भारत के वर्तमान लक्ष्य 1.5°C मार्ग के लिए “अत्यधिक अपर्याप्त” हैं और इन्हें मजबूत महत्वाकांक्षा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।

नीति सिफारिशें

  • रिपोर्ट लक्ष्य-उन्मुख परिदृश्यों को रेखांकित करती है, जो दिखाती हैं कि यदि परिवर्तनकारी प्रयास किए जाएँ तो विश्व पर्यावरणीय लक्ष्यों तक पहुँच सकती है।
  • परिवर्तन के लिए आवश्यकताएँ:
    • महत्वाकांक्षी नीतियाँ।
    • समावेशी शासन।
    • निर्णय-निर्माण में पर्यावरणीय लक्ष्यों का व्यवस्थित एकीकरण।
    • सरकारों, नागरिक समाज, व्यवसायों और आदिवासी समुदायों की व्यापक भागीदारी।
  • चार प्रमुख प्रणालियाँ जहाँ परिवर्तन आवश्यक है:
    • आर्थिक और वित्तीय प्रणाली: पर्यावरणीय लागतों को शामिल करने और वित्त को स्थिरता लक्ष्यों के साथ संरेखित करने के लिए सुधार।
    • सामग्री और अपशिष्ट प्रणाली: चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव जो अपशिष्ट को न्यूनतम करे और पुन: उपयोग व पुनर्चक्रण को अधिकतम करे।
    • ऊर्जा प्रणाली: नवीकरणीय ऊर्जा की तैनाती को तेज करना और जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना, साथ ही ऊर्जा तक पहुँच सुनिश्चित करना।
    • खाद्य प्रणाली: सतत आहार को बढ़ावा देना, खाद्य हानि/अपशिष्ट को कम करना और लचीला खाद्य उत्पादन बढ़ाना।
  • तत्काल परिवर्तन सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ प्रदान करेगा, जो निष्क्रियता की लागत से कहीं अधिक होगा — और संभावित रूप से खरबों डॉलर के आर्थिक लाभ उत्पन्न कर सकता है।

Source: IE

 

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