पाठ्यक्रम: GS3/रक्षा
संदर्भ
- उच्च अपेक्षाओं के बावजूद, रूसी राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान रक्षा संबंधी घोषणाएँ साकार नहीं हो सकीं क्योंकि भारत रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है।
भारत का रक्षा क्षेत्र में बदलाव
- रक्षा बजट: रक्षा बजट में लगातार वृद्धि हुई है, जो 2013–14 में ₹2.53 लाख करोड़ से बढ़कर 2025–26 में ₹6.81 लाख करोड़ हो गया है।
- उत्पादन: भारत, जो कभी हथियारों के आयात पर अत्यधिक निर्भर था, अब ₹1.51 लाख करोड़ का रक्षा उत्पादन मूल्य रखता है, जो 2014 में ₹46,000 करोड़ था।
- अब 65% रक्षा उपकरण घरेलू रूप से निर्मित होते हैं, जो पहले की 65–70% आयात निर्भरता से एक बड़ा बदलाव है।
- निर्यात: भारत के रक्षा निर्यात 2013–14 में ₹686 करोड़ से बढ़कर 2024–25 में ₹23,622 करोड़ हो गए हैं, यानी 34 गुना वृद्धि।
- भारत का विविध निर्यात पोर्टफोलियो बुलेटप्रूफ जैकेट, डॉर्नियर (Do-228) विमान, चेतक हेलीकॉप्टर, तीव्र अवरोधक नौकाएँ और हल्के टॉरपीडो शामिल करता है।
- शीर्ष तीन गंतव्य अमेरिका, फ्रांस और आर्मेनिया रहे।
- विशेष रूप से, ‘मेड इन बिहार’ जूते अब रूसी सेना के उपकरण का हिस्सा हैं, जो भारत के उच्च विनिर्माण मानकों को दर्शाता है।
- रक्षा औद्योगिक आधार में 16 DPSUs, 430 से अधिक लाइसेंस प्राप्त कंपनियाँ और लगभग 16,000 MSMEs शामिल हैं, जो स्वदेशी उत्पादन क्षमताओं को सुदृढ़ करते हैं।
- भारत का लक्ष्य 2029 तक ₹3 लाख करोड़ का रक्षा उत्पादन करना है, जिससे वह वैश्विक रक्षा विनिर्माण केंद्र के रूप में अपनी स्थिति को सुदृढ़ करेगा।
रक्षा अधिग्रहण और स्वदेशीकरण सुधारों की आवश्यकता
- रणनीतिक स्वायत्तता और राष्ट्रीय सुरक्षा: विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करता है, विशेषकर संकट और भू-राजनीतिक तनाव के समय।
- क्षमता अंतर को संबोधित करना: भारत को सीमाओं और हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में जटिल सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- सेना, नौसेना और वायुसेना में पुराने प्लेटफार्मों को बदलने के लिए आधुनिकीकरण आवश्यक है।
- आयात बिल कम करना और आर्थिक दक्षता को बढ़ावा देना: भारत विश्व के सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक है।
- स्वदेशी उत्पादन लंबे समय में लागत कम करता है, विदेशी मुद्रा बहिर्वाह घटाता है और घरेलू रक्षा अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करता है।
- घरेलू रक्षा औद्योगिक आधार को बढ़ावा देना: स्वदेशीकरण DPSUs, MSMEs और निजी उद्योग में नवाचार और विकास को प्रोत्साहित करता है।
- तीव्र अधिग्रहण और परिचालन तत्परता: घरेलू निर्माण अधिग्रहण चक्र को छोटा करता है और समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
- बेहतर अनुकूलन और लचीलापन: स्वदेशी प्लेटफार्मों को भारतीय भू-भाग (हिमालयी ऊँचाई, रेगिस्तान, समुद्री क्षेत्र) के अनुसार अनुकूलित किया जा सकता है, जिससे विकसित होते खतरे के वातावरण के अनुसार निरंतर उन्नयन संभव होता है।
- प्रौद्योगिकी संप्रभुता: स्वदेशी तकनीकों का विकास डिजाइन, उत्पादन और भविष्य के उन्नयन में स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।
- यह प्रतिबंधों, आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों या तकनीकी अस्वीकृति के कारण होने वाली कमजोरियों को भी रोकता है।
रक्षा अधिग्रहण और स्वदेशीकरण सुधार
- DAP 2020 भारतीय-IDDM पर केंद्रित: यह ‘Buy (भारतीय-स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किया गया, विकसित और निर्मित)’ श्रेणी को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है ताकि प्रमुख रक्षा खरीद भारतीय स्रोतों से की जाए।
- सरलीकृत ‘मेक’ प्रक्रिया: भारतीय उद्योग को रक्षा उत्पादों को डिजाइन, विकसित और निर्मित करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे आयात निर्भरता घटती है।
- मेक-I के तहत सरकार विकास लागत का 70% तक वित्तपोषण करती है और कुछ परियोजनाएँ MSMEs के लिए आरक्षित करती है।
- मेक-II श्रेणी (उद्योग-वित्तपोषित) में पात्रता शर्तें सरल हैं, न्यूनतम कागजी कार्रवाई होती है और उद्योग या व्यक्तियों से प्रस्ताव स्वीकार किए जाते हैं।
- अब तक सेना, नौसेना और वायुसेना के लिए 62 परियोजनाओं को ‘सैद्धांतिक रूप से अनुमोदन’ मिला है।
- रक्षा में उदार FDI: नए रक्षा औद्योगिक लाइसेंसों के लिए स्वचालित मार्ग से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सीमा 74% तक बढ़ाई गई है, और उन्नत तकनीक तक पहुँच वाले मामलों में सरकारी अनुमोदन द्वारा 100% तक।
- रक्षा परीक्षण अवसंरचना योजना (DTIS): DTIS का उद्देश्य एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र में आठ ग्रीनफील्ड परीक्षण और प्रमाणन सुविधाएँ स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके स्वदेशीकरण को बढ़ावा देना है।
- सात परीक्षण सुविधाएँ पहले ही अनुमोदित हो चुकी हैं, जिनमें मानव रहित हवाई प्रणाली, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स और संचार शामिल हैं।
- नवाचार को बढ़ावा देना: iDEX और TDF
- रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (iDEX), 2018 में शुरू किया गया, स्टार्टअप्स, MSMEs, अकादमिक जगत और नवप्रवर्तकों को रक्षा और एयरोस्पेस के लिए तकनीक विकसित करने हेतु अनुदान और वित्तपोषण प्रदान करता है।
- प्रौद्योगिकी विकास कोष (TDF) योजना उद्योगों, विशेषकर स्टार्टअप्स और MSMEs को रक्षा तकनीकों के नवाचार, अनुसंधान एवं विकास के लिए ₹10 करोड़ तक की राशि प्रदान करती है।
- रणनीतिक साझेदारी (SP) मॉडल: 2017 में पेश किया गया ताकि भारतीय कंपनियों और वैश्विक मूल उपकरण निर्माताओं (OEMs) के बीच दीर्घकालिक साझेदारी बनाई जा सके।
- ये साझेदारियाँ तकनीकी हस्तांतरण और भारत में विनिर्माण अवसंरचना स्थापित करने पर केंद्रित हैं।
- अंतरराष्ट्रीय रक्षा सहयोग: 2019 में भारत ने रूस के साथ एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए ताकि भारत में रूसी-उत्पत्ति वाले रक्षा उपकरणों के स्पेयर और घटकों का संयुक्त निर्माण किया जा सके।
- स्वदेशीकरण पोर्टल्स: SRIJAN पोर्टल (2020 में लॉन्च) उन रक्षा वस्तुओं की सूची देता है जो पहले आयात की जाती थीं, और उद्योग को उन्हें स्थानीय रूप से विकसित करने के लिए आमंत्रित करता है। अब तक 46798 वस्तुएँ सूचीबद्ध की गई हैं।
- रक्षा क्षेत्र में व्यापार सुगमता: रक्षा उत्पादों के लिए औद्योगिक लाइसेंस की आवश्यकता को सरल बनाया गया है, और अधिकांश पुर्जों/घटकों के लिए अब लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है।
- औद्योगिक लाइसेंस की वैधता 3 वर्ष से बढ़ाकर 15 वर्ष कर दी गई है, और 3 वर्ष का अतिरिक्त विस्तार संभव है, जिससे निवेश योजना आसान हो जाती है।
निष्कर्ष
- रणनीतिक नीतिगत हस्तक्षेपों, घरेलू भागीदारी में वृद्धि और स्वदेशी नवाचार पर ध्यान केंद्रित करने के संयोजन ने देश की रक्षा क्षमताओं को उल्लेखनीय रूप से सुदृढ़ किया है।
- 2029 के लिए निर्धारित महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ, राष्ट्र अपनी वैश्विक उपस्थिति को और विस्तारित करने के लिए तैयार है, अंतरराष्ट्रीय रक्षा बाजार में एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में अपनी स्थिति को बेहतर करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा को भी सुदृढ़ करेगा।
Source: TH