पाठ्यक्रम: GS3/नवीकरणीय ऊर्जा
संदर्भ
- भारत का नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र तीव्र विस्तार से आगे बढ़ते हुए अब एक सशक्त, स्थिर और लचीली प्रणाली के निर्माण की दिशा में अग्रसर है, ताकि 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म क्षमता लक्ष्य को समर्थन मिल सके।
परिचय
- विगत दशक में भारत की स्थापित नवीकरणीय क्षमता (बड़े जलविद्युत को छोड़कर) ~35 GW (2014) से बढ़कर आज ~197 GW से अधिक हो गई है।
- भारत प्रत्येक वर्ष 15–25 GW नई नवीकरणीय क्षमता जोड़ता है — यह दर विश्व में सबसे तीव्र दरों में से एक है।
- वर्तमान में ध्यान “क्षमता वृद्धि” से हटकर “क्षमता समावेशन” पर है — अर्थात् यह सुनिश्चित करना कि नवीकरणीय ऊर्जा को ग्रिड, बाजार और प्रणाली संरचना में सहजता से एकीकृत किया जा सके।
नवीकरणीय ऊर्जा में क्षमता निर्माण
- नवीकरणीय ऊर्जा में क्षमता निर्माण का तात्पर्य उन कौशलों, ज्ञान, अवसंरचना, संस्थानों और प्रणालियों के विकास से है जो नवीकरणीय ऊर्जा तकनीकों की योजना, तैनाती, संचालन एवं रखरखाव को प्रभावी ढंग से सक्षम बनाते हैं।
- यह सुनिश्चित करता है कि मानव संसाधन, तकनीकी क्षमताएं और संस्थागत ढांचे स्वच्छ ऊर्जा की तीव्र परिवर्तन प्रक्रिया को समर्थन देने के लिए तैयार हों।
क्षमता निर्माण की आवश्यकता
- ग्रिड समावेशन: जैसे-जैसे नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ती है, ग्रिड ऑपरेटरों को सौर एवं पवन स्रोतों की अनियमितता और विविधता को प्रबंधित करने के लिए कौशल तथा प्रणाली की आवश्यकता होती है।
- तकनीकी विशेषज्ञता: बैटरी भंडारण, अपतटीय पवन और हाइब्रिड परियोजनाओं जैसी उन्नत तकनीकों के डिज़ाइन, स्थापना और रखरखाव के लिए कुशल जनशक्ति आवश्यक है।
- संस्थागत सुदृढ़ीकरण: राज्य और केंद्रीय एजेंसियों को बड़े पैमाने की नवीकरणीय और ट्रांसमिशन परियोजनाओं की योजना, विनियमन एवं क्रियान्वयन की क्षमता चाहिए।
- स्थानीय विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र: तकनीकी और प्रबंधकीय क्षमता निर्माण घरेलू उत्पादन को समर्थन देता है तथा आयात पर निर्भरता को कम करता है।
- नीति और नियामक क्षमता: निरंतर कौशल उन्नयन से नीति निर्माताओं और नियामकों को बदलते बाजारों के अनुसार अनुकूलन में सहायता मिलती है।
- समुदाय और कार्यबल की भागीदारी: स्थानीय स्तर पर क्षमता निर्माण से रोजगार सृजन, सामाजिक स्वीकृति और ऊर्जा परिवर्तन में प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित होती है।
चुनौतियाँ
- कौशल अंतराल: अपतटीय पवन, बैटरी भंडारण और हाइब्रिड परियोजनाओं जैसी उन्नत तकनीकों के लिए प्रशिक्षित इंजीनियरों, तकनीशियनों एवं परियोजना प्रबंधकों की कमी।
- सीमित प्रशिक्षण अवसंरचना: कुछ संस्थान ही विशेषीकृत पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं; मौजूदा तकनीकी संस्थानों में आधुनिक प्रयोगशालाओं, उपकरणों और संकाय विशेषज्ञता की कमी है।
- तेज़ तकनीकी परिवर्तन: भंडारण, स्मार्ट ग्रिड और ग्रीन हाइड्रोजन जैसी तीव्रता से विकसित होती तकनीकों के कारण निरंतर कौशल उन्नयन आवश्यक है, जिससे प्रशिक्षण कार्यक्रम शीघ्र अप्रचलित हो जाते हैं।
- एजेंसियों के बीच समन्वय: क्षमता निर्माण के लिए केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य एजेंसियों, निजी क्षेत्र और अकादमिक संस्थानों के बीच समन्वय आवश्यक है, जो प्रायः विखंडित होता है।
- वित्तीय बाधाएँ: प्रशिक्षण कार्यक्रमों, अनुसंधान और कौशल विकास पहलों के लिए वित्त पोषण सीमित है, विशेष रूप से छोटे राज्यों में।
- कुशल कार्यबल का पलायन: प्रशिक्षित कर्मियों का अन्य क्षेत्रों या विदेशों में जाना क्षमता निर्माण प्रयासों के प्रभाव को कम करता है।
सरकारी पहलें
- ग्रिड समावेशन योजना: भारत का ग्रिड ₹2.4 लाख करोड़ के ट्रांसमिशन प्लान के माध्यम से पुनः परिकल्पित किया जा रहा है, जो नवीकरणीय-समृद्ध राज्यों को मांग केंद्रों से जोड़ता है।
- सरकार राजस्थान, गुजरात और लद्दाख से नई उच्च क्षमता ट्रांसमिशन लाइनों और ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर में निवेश को प्राथमिकता दे रही है।
- ये परियोजनाएं बहुवर्षीय प्रयास हैं, लेकिन एक बार चालू होने पर ये 200 GW से अधिक नई नवीकरणीय क्षमता को सक्षम करेंगी।
- 2032 तक की दृष्टि: सरकार ने पहले ही उच्च-वोल्टेज डायरेक्ट करंट (HVDC) कॉरिडोर के निर्माण और अंतर-क्षेत्रीय ट्रांसमिशन क्षमता को 120 GW (वर्तमान) से बढ़ाकर 143 GW (2027) और 168 GW (2032) तक करने की योजना बनाई है।
- प्रोत्साहन: घरेलू विनिर्माण को उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना, घरेलू सामग्री आवश्यकता, शुल्कों की अधिरोपण और पूंजी उपकरणों पर शुल्क छूट के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे आयात निर्भरता कम हो रही है।
- राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान (NISE): सौर पीवी, सौर तापीय और हाइब्रिड तकनीकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशालाएं एवं अनुसंधान समर्थन प्रदान करता है।
- राज्य नोडल एजेंसियों (SNAs) के लिए क्षमता निर्माण: परियोजना क्रियान्वयन, निगरानी और नीति प्रवर्तन के लिए राज्य नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसियों को प्रशिक्षण त्तथा तकनीकी सहायता।
- अनुसंधान और नवाचार समर्थन: बैटरी भंडारण, हाइब्रिड परियोजनाओं, अपतटीय पवन और ग्रीन हाइड्रोजन में अनुसंधान एवं विकास के लिए वित्त पोषण।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग और प्रशिक्षण कार्यक्रम: ज्ञान विनिमय के लिए IRENA, GIZ और अन्य वैश्विक एजेंसियों के साथ सहयोग।
आगे की राह
- राजस्थान, गुजरात और कर्नाटक में बड़े हाइब्रिड और ReNew की राउंड-द-क्लॉक (RTC) परियोजनाएं क्रियान्वयन की दिशा में बढ़ रही हैं।
- अपतटीय पवन और पंप्ड हाइड्रो स्टोरेज को गति मिल रही है।
- PM सूर्यघर और PM कुसुम के अंतर्गत वितरित सौर और एग्रोवोल्टिक पहलों से ग्रामीण भागीदारी गहराई ले रही है।
- राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन नवीकरणीय ऊर्जा को औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन से जोड़ रहा है।
- ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर चरण III के सुदृढ़ीकरण के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा का समावेशन।
निष्कर्ष
- विगत दो वर्षों में नीति का ध्यान केवल क्षमता वृद्धि से हटकर प्रणाली डिज़ाइन की ओर सचेत रूप से स्थानांतरित हुआ है।
- ये सुधार ट्रांसमिशन उपयोग को अनुकूलित करने और विलंबित नवीकरणीय परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाने की दिशा में निर्णायक कदम हैं, जो इस क्षेत्र की प्रमुख क्रियान्वयन चुनौतियों को सीधे संबोधित करते हैं।
Source: PIB
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