गुटनिरपेक्ष आंदोलन को वैश्विक दक्षिण के लक्ष्यों को आगे बढ़ाना चाहिए

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संदर्भ

  • विदेश राज्य मंत्री ने कहा कि गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) के सदस्य देशों को इस पहल का उपयोग वैश्विक दक्षिण की आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिए करना चाहिए।
    • उन्होंने यह वक्तव्य 19वीं NAM मध्यावधि मंत्रिस्तरीय बैठक में दिया और कहा कि NAM के सदस्यों को इस आंदोलन को “पुनः उद्देश्यपूर्ण” बनाना चाहिए।

गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM)

  • बांडुंग सम्मेलन (1955): गुट निरपेक्षता की अवधारणा का निर्माण बांडुंग सम्मेलन के दौरान हुआ था, जहाँ नव स्वतंत्र राष्ट्रों ने शीत युद्ध की वैचारिक अंतर में उलझने से बचने की कोशिश की।
    • यह विचार भारत के नेहरू, यूगोस्लाविया के टीटो और मिस्र के नासेर जैसे तीन विश्व नेताओं से प्रेरित था।
  • बेलग्रेड शिखर सम्मेलन (1961): बेलग्रेड में प्रथम NAM शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसने इस आंदोलन को औपचारिक रूप दिया। इसका उद्देश्य आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय स्वतंत्रता, उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का विरोध करना था।
  • बांडुंग के दस सिद्धांत
    • मौलिक मानवाधिकारों और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का सम्मान।
    • सभी राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान।
    • सभी नस्लों और राष्ट्रों की समानता की मान्यता।
    • किसी अन्य देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
    • प्रत्येक राष्ट्र के आत्मरक्षा के अधिकार का सम्मान, चाहे अकेले या सामूहिक रूप से।
    • सामूहिक रक्षा व्यवस्था का उपयोग किसी बड़ी शक्ति के विशेष हितों की पूर्ति के लिए न करना।
    • पारस्परिक अनाक्रमण।
    • शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और विवादों का शांतिपूर्ण समाधान।
    • पारस्परिक हितों और सहयोग को बढ़ावा देना।
    • न्याय और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का सम्मान।
  • शासन व्यवस्था
    • NAM की शासन व्यवस्था अनौपचारिक है — इसका कोई स्थायी सचिवालय, संविधान या बजट नहीं है।
    • इसका संचालन रोटेशन आधारित नेतृत्व और सर्वसम्मति से निर्णय लेने पर आधारित है।
  • विस्तार और संरचनात्मक परिवर्तन
    • सदस्यता में वृद्धि: 1961 में 25 सदस्यों के साथ शुरू हुआ NAM अब 120 से अधिक सदस्य देशों तक विस्तृत हो चुका है, जो संयुक्त राष्ट्र के लगभग दो-तिहाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • जकार्ता घोषणा (1992): 10वें NAM शिखर सम्मेलन में जकार्ता घोषणा को अपनाया गया, जिसमें दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ाने और गरीबी, विदेशी ऋण एवं जनसंख्या वृद्धि जैसे सामान्य मुद्दों को संबोधित करने की प्राथमिकताएँ तय की गईं।

NAM की प्रासंगिकता

  • वैश्विक दक्षिण के लिए मंच: NAM विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व करता है और उन्हें संयुक्त राष्ट्र, WTO एवं जलवायु वार्ताओं जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सामूहिक आवाज़ प्रदान करता है।
  • उत्तर-दक्षिण विभाजन को संबोधित करना: NAM आर्थिक असमानता, विदेशी ऋण, गरीबी और प्रौद्योगिकी तक पहुँच जैसे मुद्दों को उजागर करता है।
    • यह विकसित देशों पर निर्भरता कम करने के लिए दक्षिण-दक्षिण सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
  • रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना: बहुध्रुवीय विश्व में भी NAM सदस्य देशों को सैन्य या रणनीतिक गुटों में शामिल होने से बचने की स्वतंत्रता देता है।
    • यह स्वतंत्र विदेश नीति और प्रमुख शक्तियों की प्रतिद्वंद्विता से दूरी बनाए रखने का समर्थन करता है।
  • शांति और संघर्ष समाधान को बढ़ावा देना: NAM निरस्त्रीकरण, संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान और उपनिवेशवाद के अंत का समर्थन करता है।
  • आर्थिक और विकास सहयोग: NAM का ध्यान अब केवल राजनीतिक मुद्दों से हटकर आर्थिक विकास, व्यापार और प्रौद्योगिकी साझाकरण की ओर केंद्रित हो गया है।

चुनौतियाँ और सीमाएँ

  • शीत युद्ध के बाद प्रासंगिकता में गिरावट: सोवियत संघ के विघटन के बाद द्विध्रुवीय वैश्विक संरचना समाप्त हो गई, जिससे NAM का मूल रणनीतिक उद्देश्य कमजोर हुआ।
  • विविध सदस्यता: NAM में 120 से अधिक सदस्य देश हैं जिनके राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक हित भिन्न हैं।
    • यह विविधता आम सहमति बनाना कठिन बना देती है, विशेष रूप से संघर्षों या वैश्विक नीतियों जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर।
  • सीमित प्रवर्तन क्षमता: NAM के निर्णय बाध्यकारी नहीं होते, बल्कि नैतिक अधिकार और सर्वसम्मति पर आधारित होते हैं।
  • बहुध्रुवीय विश्व में प्रासंगिकता: आज के बहुध्रुवीय वैश्विक परिदृश्य में BRICS, G20 और क्षेत्रीय समूहों जैसे नए गठबंधन अधिक प्रभावशाली भूमिका निभा रहे हैं।
    • सुरक्षा और रक्षा मामलों में NAM का पारंपरिक राजनीतिक प्रभाव कम हो गया है।

भारत के लिए NAM का महत्व

  • रणनीतिक स्वायत्तता: NAM भारत को किसी भी प्रमुख शक्ति गुट से बंधे बिना स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रखने की अनुमति देता है।
  • वैश्विक दक्षिण के लिए मंच: यह भारत को UN और WTO जैसे वैश्विक मंचों पर विकासशील देशों की चिंताओं को उठाने का अवसर देता है।
  • शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना: NAM भारत को निरस्त्रीकरण, संघर्ष समाधान और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का समर्थन करने में सहायता करता है।
  • वैश्विक शासन सुधारों का समर्थन: भारत NAM का उपयोग संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में विकासशील देशों के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए करता है।
  • वैश्विक शक्ति संतुलन बनाए रखना: NAM भारत को प्रमुख शक्तियों के साथ बिना औपचारिक गठबंधन के लचीलापन प्रदान करता है।
  • ऐतिहासिक और कूटनीतिक विश्वसनीयता: NAM में भारत की संस्थापक भूमिका उसकी कूटनीतिक प्रभावशीलता को मजबूत करती है और उसे वैश्विक दक्षिण का जिम्मेदार नेता सिद्ध करती है।

निष्कर्ष 

  • गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) ने अपनी स्थापना के बाद से संरचना और उद्देश्य में परिवर्तन किया है, लेकिन उभरते वैश्विक गठबंधनों और तीव्र तकनीकी परिवर्तनों के कारण अब यह एक अस्तित्वगत संकट का सामना कर रहा है। 
  • हालाँकि NAM की शीत युद्ध कालीन भूमिका बदल चुकी है, फिर भी यह वैश्विक दक्षिण के लिए एक प्रासंगिक मंच बना हुआ है, जो आर्थिक सहयोग, रणनीतिक स्वतंत्रता एवं वैश्विक राजनीति में असमानता को संबोधित करने को बढ़ावा देता है।

Source: TH

 

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