भारत को यूरोपीय संघ के व्यापार साझेदारों में सबसे अधिक CBAM शुल्क का सामना

पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था, GS3/ पर्यावरण

संदर्भ

  • यूरोपीय थिंक-टैंक सैंडबर्ग के अनुसार, भारतीय लौह और इस्पात निर्यातकों को यूरोपीय संघ (EU) में सबसे अधिक कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) शुल्क का सामना करना पड़ रहा है, जिसकी अनुमानित राशि €301 मिलियन है।

कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM)

  • CBAM यूरोपीय संघ का एक उपकरण है जिसका उद्देश्य EU में प्रवेश करने वाले कार्बन-गहन उत्पादों के उत्पादन के दौरान उत्सर्जित कार्बन पर उचित मूल्य निर्धारण करना है, और गैर-EU देशों में स्वच्छ औद्योगिक उत्पादन को प्रोत्साहित करना है।
  • CBAM, EU ग्रीन डील का एक हिस्सा है, जिसका लक्ष्य 2030 तक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को 55% तक कम करना है।
  • इसका उद्देश्य EU उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETS) के अंतर्गत EU उत्पादों द्वारा चुकाए गए कार्बन मूल्य और आयातित वस्तुओं के बीच मूल्य समानता सुनिश्चित करना है।
    • यह उस प्रवृत्ति को संबोधित करता है जिसमें EU निर्माता कार्बन-गहन उत्पादन को उन देशों में स्थानांतरित कर देते हैं जहाँ जलवायु नीतियाँ कम सख्त होती हैं। इसका मुख्य उद्देश्य ‘कार्बन लीकेज’ को रोकना है।

CBAM का कार्यान्वयन

  • CBAM प्रणाली 1 जनवरी 2026 से प्रभाव में आने की संभावना है।
  • प्रारंभ में यह सीमेंट, लौह और इस्पात, एल्युमिनियम और विद्युत के आयात पर लागू होगा, क्योंकि ये क्षेत्र उच्च कार्बन उत्सर्जन एवं कार्बन लीकेज के उच्च जोखिम वाले माने जाते हैं।
  • EU आयातकों को कार्बन प्रमाणपत्र खरीदने होंगे, जो उस कार्बन मूल्य के अनुरूप होंगे जो EU में स्थानीय उत्पादन के दौरान चुकाया गया होता।
  • इन प्रमाणपत्रों की कीमत EU कार्बन क्रेडिट बाजार में नीलामी दरों के अनुसार तय की जाएगी।
  • यदि कोई गैर-EU उत्पादक यह दिखा सके कि उसने तीसरे देश में आयातित वस्तुओं के उत्पादन के दौरान उपयोग किए गए कार्बन के लिए पहले ही शुल्क अदा किया है, तो EU आयातक के लिए वह लागत पूरी तरह से घटाई जा सकती है।
  • CBAM का दायरा: सिद्धांततः, सभी गैर-EU देशों से आयातित वस्तुएँ CBAM के अंतर्गत आएँगी। कुछ तीसरे देश, जो ETS में भाग लेते हैं या जिनकी उत्सर्जन व्यापार प्रणाली EU से जुड़ी है, उन्हें इस व्यवस्था से बाहर रखा जाएगा। इसमें यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र के सदस्य और स्विट्ज़रलैंड शामिल हैं।
CBAM का कार्यान्वयन

भारत को सबसे अधिक शुल्क क्यों देना पड़ रहा है

  • EU को उच्च निर्यात मात्रा: 2024 में EU ने भारत से लगभग US$4.25 बिलियन मूल्य का लौह और इस्पात आयात किया।
    • अधिक निर्यात मात्रा के कारण कुल CBAM शुल्क अधिक हो जाता है, भले ही प्रति टन उत्सर्जन अन्य देशों के समान हो।
  • उच्च उत्सर्जन तीव्रता: भारतीय इस्पात उत्पादन प्रति टन लगभग 2.6 टन CO₂ उत्सर्जित करता है, जबकि वैश्विक औसत ~1.9–2.0 टन CO₂ प्रति टन है।
  • उत्पादन तकनीक और ईंधन मिश्रण: भारत में अधिकांश इस्पात ब्लास्ट फर्नेस–बेसिक ऑक्सीजन फर्नेस (BF-BOF) और कोयला-आधारित डायरेक्ट रिड्यूस्ड आयरन (DRI) विधियों से उत्पादित होता है।
    • कोयले और मेटलर्जिकल कोक पर अत्यधिक निर्भरता के कारण CO₂ उत्सर्जन की तीव्रता EU में प्रयुक्त EAF या ग्रीन-हाइड्रोजन आधारित विधियों की तुलना में अधिक है।

CBAM पर भारत का रुख

  • CBAM भारत के निर्यात, विशेष रूप से ऊर्जा-गहन उद्योगों को कमजोर करता है और EU के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) वार्ताओं को जटिल बनाता है।
  • भारत CBAM को एक “गैर-शुल्क बाधा” मानता है जो विकासशील देशों के साथ भेदभाव करती है।
  • भारत का तर्क है कि विकसित राष्ट्र, जो ऐतिहासिक रूप से अधिक उत्सर्जनकर्ता रहे हैं, उन्हें जलवायु परिवर्तन से निपटने की अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

भारत की तैयारी और शमन रणनीतियाँ

  • घरेलू कार्बन व्यापार: भारत एक कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग प्रणाली विकसित कर रहा है, जो घरेलू कार्बन मूल्य निर्धारण अनुपालन दिखाकर CBAM देनदारियों को संतुलित करने में सहायता कर सकती है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य: भारत का लक्ष्य 2030 तक नवीकरणीय क्षमता को तीन गुना करना और 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करना है।
  • प्रौद्योगिकीय संक्रमण: सैंडबर्ग विश्लेषण के अनुसार, यदि भारतीय कंपनियाँ स्वच्छ उत्पादन तकनीकों की ओर स्थानांतरित होती हैं, तो वे CBAM लागत को €180 मिलियन तक कम कर सकती हैं और संभावित रूप से €510 मिलियन की अतिरिक्त आय अर्जित कर सकती हैं।

निष्कर्ष 

  • EU का CBAM भारत के लिए एक चुनौती और अवसर दोनों प्रस्तुत करता है। जहाँ यह कार्बन-गहन निर्यात पर लागत बढ़ा सकता है, वहीं यह घरेलू डीकार्बोनाइजेशन और कार्बन बाजार सुधारों को तेज करने के लिए एक चेतावनी संकेत भी है। 
  • हरित नवाचार, रणनीतिक कूटनीति और घरेलू कार्बन मूल्य निर्धारण का संतुलित नीति संयोजन भारत को अपने व्यापारिक हितों की रक्षा करने एवं जलवायु प्रतिबद्धताओं को आगे बढ़ाने में सहायता कर सकता है।

Source: TH

 

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