पाठ्यक्रम: GS3/बुनियादी ढांचा; आपदा प्रबंधन
संदर्भ
- हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न हितधारकों को नोटिस जारी किए, जिसमें 130 वर्ष प्राचीन मुल्लापेरियार बांध की जर्जर संरचना को सुदृढ़ करने के लिए त्वरित निर्देशों की मांग की गई।
मुल्लापेरियार बांध
- यह एक गुरुत्वाकर्षण आधारित बांध है, जो केरल के इडुक्की ज़िले में पेरियार नदी पर 1887 से 1895 के बीच बनाया गया था।
- इस बांध का संचालन और रखरखाव तमिलनाडु द्वारा किया जाता है, जो 1886 में त्रावणकोर के महाराजा एवं ब्रिटिश सरकार के बीच हस्ताक्षरित 999-वर्षीय पट्टे के अंतर्गत आता है।
- यह बांध तमिलनाडु के वैगई बेसिन की ओर जल मोड़ता है, जिससे 68,558 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होती है।
भारत में बांधों की स्थिति
- केंद्रीय जल आयोग (CWC) द्वारा संधारित राष्ट्रीय बड़े बांध रजिस्टर (NRLD) के अनुसार, भारत बड़े बांधों की संख्या में वैश्विक स्तर पर चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर है, जहां 6,000 से अधिक बांध चालू हैं तथा सैकड़ों निर्माणाधीन हैं।
- ये बांध सिंचाई (जो कृषि को व्यापक क्षेत्रों में समर्थन देते हैं), जलविद्युत उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण और पेयजल आपूर्ति जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में सहायक हैं।
- भारत में स्थलाकृति, भूविज्ञान और जलविज्ञान आवश्यकताओं के आधार पर विभिन्न प्रकार के बांध हैं: कंक्रीट गुरुत्व बांध (जैसे भाखड़ा बांध), मृदा के बांध (जैसे बाणासुरा सागर बांध), रॉक-फिल बांध, एवं आर्च बांध (जो भारत में दुर्लभ हैं)।
बांध सुरक्षा क्यों आवश्यक है?
- प्राचीन संरचनाएं: लगभग 80% बांध 25 वर्ष से अधिक पुराने हैं, 1,000 से अधिक बांध 50–100 वर्ष पुराने हैं, और 230 से अधिक बांध 100 वर्ष से भी अधिक प्राचीन हैं।
- इनमें से कई पुराने इंजीनियरिंग मानकों के अनुसार बनाए गए थे और अब संरचनात्मक थकान, गाद जमाव और जलवायु परिवर्तनजनित तनाव के प्रति संवेदनशील हैं।
- यह जीवन, संपत्ति और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करता है, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन एवं चरम मौसम की घटनाओं के संदर्भ में।
- असंगत सुरक्षा प्रथाएं: राज्यों और एजेंसियों के बीच बांध सुरक्षा प्रोटोकॉल में भिन्नता है, जिससे निगरानी, निरीक्षण और रखरखाव में खामियां आती हैं।
- केंद्र सरकार ने इन प्रथाओं को एकीकृत करने के लिए 2021 के बांध सुरक्षा अधिनियम और राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (NDSA) की स्थापना की है।
- विनाशकारी विफलता का जोखिम: हिमनदी झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) जैसी घटनाएं सुदृढ़ सुरक्षा प्रोटोकॉल की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार मुल्लापेरियार जैसे बांधों को लेकर चिंता व्यक्त की है, चेतावनी दी है कि यदि यह टूटता है तो लाखों लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है।
कानूनी और संस्थागत ढांचा
- बांध सुरक्षा अधिनियम, 2021: इस अधिनियम को बांधों की निगरानी, निरीक्षण, संचालन और रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया। इसमें अनिवार्य किया गया है:
- बांधों का खतरा वर्गीकरण;
- आपातकालीन कार्य योजनाएं;
- स्वतंत्र पैनलों द्वारा समय-समय पर सुरक्षा समीक्षा;
- राज्य समितियों और राष्ट्रीय प्राधिकरण का गठन जो बांध सुरक्षा की निगरानी करेंगे।
- राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (NDSA): यह राज्यों के बीच बांध सुरक्षा प्रयासों का समन्वय करता है।
- यह राष्ट्रीय बड़े बांध रजिस्टर का रखरखाव करता है और क्षमता निर्माण, तकनीकी मानकों एवं जन जागरूकता को बढ़ावा देता है।
- राज्य-स्तरीय कार्यान्वयन: राज्यों ने बांध सुरक्षा समीक्षा पैनल बनाए हैं और हजारों बांधों का मानसून पूर्व एवं पश्चात निरीक्षण किया है।
- बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (DRIP): इसे CWC द्वारा विश्व बैंक के सहयोग से शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य है:
- पुराने बांधों का पुनर्वास;
- बेहतर सुरक्षा निगरानी;
- बांध संचालकों और इंजीनियरों के लिए क्षमता निर्माण।
- DRIP चरण II और III वर्तमान में 19 राज्यों के 700 से अधिक बांधों को कवर करते हुए प्रगति पर हैं।
- डिजिटल निगरानी और जलाशय प्रबंधन: CWC के बांध सुरक्षा संगठन ने निम्नलिखित पहल की है:
- वेब-आधारित जलाशय भंडारण निगरानी प्रणाली;
- वास्तविक समय में बाढ़ चेतावनी और जलाशय डेटा के लिए फ्लडवॉच इंडिया ऐप।
सुदृढ़ीकरण उपाय
- पुनर्निर्माण और पुनर्वास: उच्च जोखिम वाले बांधों के लिए संरचनात्मक उन्नयन को प्राथमिकता दें।
- एआई और विश्लेषण का उपयोग: सेंसर और वास्तविक समय डेटा प्रणालियों के माध्यम से बांध की स्थिति की निगरानी करें।
- जलवायु लचीलापन: बदलते जलविज्ञान पैटर्न को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा मानकों को अद्यतन करें।
- जन जागरूकता और पारदर्शिता: सुरक्षा ऑडिट और आपातकालीन योजनाओं को सार्वजनिक समीक्षा के लिए प्रकाशित करें।
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