पाठ्यक्रम: GS2/स्वास्थ्य
संदर्भ
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने दो नई रिपोर्टें प्रकाशित की हैं — ‘वर्ल्ड मेंटल हेल्थ टुडे’ और ‘मेंटल हेल्थ एटलस 2024’।
- ये रिपोर्टें 2025 में सितंबर में होने वाली संयुक्त राष्ट्र की उच्च स्तरीय बैठक से पूर्व वैश्विक संवाद को आकार देने के लिए महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करती हैं।
- यह बैठक गैर-संचारी रोगों और मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण को बढ़ावा देने पर केंद्रित होगी।
मुख्य बिंदु
- वैश्विक मानसिक स्वास्थ्य संकट: एक अरब से अधिक लोग मानसिक स्वास्थ्य विकारों के साथ जीवन जी रहे हैं।
- 2021 में सभी आयु वर्गों में अनुमानित 7,27,000 लोगों ने आत्महत्या के कारण जान गंवाई, जिसमें हर एक आत्महत्या के पीछे 20 से अधिक प्रयास होते हैं।
- आत्महत्या वैश्विक स्तर पर प्रत्येक 100 मृत्युओं में से एक का कारण है।

- सबसे सामान्य मानसिक स्वास्थ्य विकार: 2021 में चिंता और अवसादजनित विकारों ने सभी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों का दो-तिहाई से अधिक भाग लिया।
- 2011 से 2021 के बीच मानसिक विकारों से पीड़ित लोगों की संख्या वैश्विक जनसंख्या की वृद्धि दर से अधिक रही।
- संवेदनशील आयु वर्ग: 20–29 वर्ष के युवा वयस्कों में मानसिक विकारों की व्यापकता में सबसे अधिक वृद्धि (1.8%) देखी गई।
- पुरुषों में ADHD, ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार और बौद्धिक विकास का अज्ञात विकार अधिक सामान्य रूप से पाया गया।
- महिलाओं में चिंता, अवसाद और भोजन संबंधी विकार अधिक आम हैं।
- SDG के तहत प्रगति: आत्महत्या सभी देशों और सामाजिक-आर्थिक संदर्भों में युवाओं की मृत्यु का प्रमुख कारण है।
- फिर भी, आत्महत्या मृत्यु दर को कम करने की प्रगति इतनी धीमी है कि संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (SDG) — 2030 तक आत्महत्या दर में एक-तिहाई की कमी — को पूरा नहीं किया जा सकेगा।
- वर्तमान अनुमान के अनुसार, उस समय सीमा तक केवल 12% की कमी ही हासिल की जा सकेगी।
- आर्थिक और नीतिगत प्रभाव: हालाँकि स्वास्थ्य देखभाल की लागत काफी अधिक है, लेकिन अप्रत्यक्ष लागत — विशेष रूप से उत्पादकता की हानि — कहीं अधिक है।
- केवल अवसाद और चिंता ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रतिवर्ष अनुमानित US$1 ट्रिलियन की हानि पहुँचाते हैं।
- गुणवत्ता युक्त देखभाल की कमी: यह रिपोर्ट संसाधनों, कार्यबल की उपलब्धता एवं देखभाल की गुणवत्ता में लगातार कमी को दोहराती है, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में।
- गंभीर अवसादग्रस्तता विकार से पीड़ित केवल 9% लोगों को ही वैश्विक स्तर पर न्यूनतम पर्याप्त उपचार मिलने की संभावना है।
मानसिक स्वास्थ्य परिवर्तन में प्रमुख अंतराल

भारत में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NMHS) 2015-16 के अनुसार, भारत में 10.6% वयस्क मानसिक विकारों से पीड़ित थे, जबकि उपचार अंतराल 70% से 92% के बीच था।
- शहरी महानगर क्षेत्रों में मानसिक रोगग्रस्तता की व्यापकता (13.5%) ग्रामीण क्षेत्रों (6.9%) की तुलना में अधिक थी।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 ने मानसिक स्वास्थ्य और देश के आर्थिक भविष्य के बीच संबंध को रेखांकित किया। इसमें भारत के युवाओं में बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण बताए गए हैं:
- अत्यधिक इंटरनेट और सोशल मीडिया का उपयोग: चिंता, नींद संबंधी विकार और ध्यान की समस्याएँ उत्पन्न करता है।
- पारिवारिक सहभागिता की कमी: कमजोर सामाजिक समर्थन प्रणाली भावनात्मक कल्याण को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
- प्रतिकूल कार्यस्थल और लंबे कार्य घंटे: थकावट, तनाव और उत्पादकता में कमी का कारण बनते हैं।
- अस्वस्थ जीवनशैली विकल्प: अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और शारीरिक गतिविधि की कमी मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को और बिगाड़ते हैं।
भारत में मनोरोगीय स्वास्थ्य देखभाल की चुनौतियाँ
- मनोचिकित्सालयों की खराब स्थिति: प्रायः क्रूरता, उपेक्षा, दुर्व्यवहार और निम्न जीवन स्थितियों से जुड़ी होती है।
- यह प्रणालीगत उपेक्षा एवं अपर्याप्त जवाबदेही तंत्र को दर्शाता है।
- अल्प वित्त पोषण: मानसिक स्वास्थ्य को कुल स्वास्थ्य बजट का लगभग 1% ही आवंटित किया जाता है, जिसमें अधिकांश राशि संस्थागत देखभाल को जाती है, न कि सामुदायिक आधारित सेवाओं को।
- प्रशिक्षित कर्मियों की कमी: मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों, परामर्शदाताओं, नर्सों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की भारी कमी है।
- असमान वितरण: जिला मुख्यालयों पर कुछ मनोचिकित्सक हैं, जबकि कस्बों/गाँवों में लगभग नहीं के बराबर।
- इससे शहरी-ग्रामीण मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में विभाजन उत्पन्न होता है।
- सुलभता और आर्थिक बाधाएँ: ग्रामीण क्षेत्रों में दवाएँ उपलब्ध नहीं हैं।
- उपचार के लिए यात्रा करने से मजदूरी की हानि होती है, जो गरीब परिवारों के लिए असहनीय है।
- गंभीर मानसिक रोगों से पीड़ित व्यक्ति सामान्यतः आय अर्जित नहीं करते, जिससे उनका आर्थिक भार में वृद्धि होती है।
भारत सरकार की प्रमुख पहलें
- मेंटल हेल्थकेयर अधिनियम, 2017: इस अधिनियम ने भारत में आत्महत्या के प्रयासों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया और मानसिक बीमारियों के वर्गीकरण में WHO के दिशा-निर्देशों को सम्मिलत किया।
- अधिनियम का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान “पूर्व निर्देश” था, जो मानसिक रोगियों को अपने उपचार की दिशा तय करने का अधिकार देता है।
- इसने इलेक्ट्रो-कन्वल्सिव थेरेपी (ECT) के उपयोग को सीमित किया और नाबालिगों पर इसके प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया, साथ ही भारतीय समाज में कलंक से निपटने के उपाय भी प्रस्तुत किए।
- विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2017: यह अधिनियम मानसिक बीमारी को विकलांगता के रूप में मान्यता देता है और विकलांगों के अधिकारों और सुविधाओं को बढ़ाने का प्रयास करता है।
- किरण हेल्पलाइन: यह हेल्पलाइन आत्महत्या रोकथाम की दिशा में एक कदम है और समर्थन एवं संकट प्रबंधन में सहायता कर सकती है।
- जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (DMHP): 767 जिलों में संचालित, यह आत्महत्या रोकथाम, तनाव प्रबंधन और परामर्श जैसी सेवाएँ प्रदान करता है।
- राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NTMHP): 2022 में शुरू किया गया, यह 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 53 टेली MANAS सेल्स के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच प्रदान करता है।
- मानसिक स्वास्थ्य क्षमता का विस्तार: मेडिकल कॉलेजों एवं अस्पतालों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और शैक्षणिक संसाधनों को सुदृढ़ किया जा रहा है।
Source: IE
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