भारत अवैध घुसपैठ के समाधान के लिए जनसांख्यिकीय मिशन की शुरुआत

पाठ्यक्रम :GS2/शासन; GS3/आंतरिक सुरक्षा

समाचार में

  • भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अवैध प्रवासियों से उत्पन्न खतरों से देश की रक्षा के लिए एक उच्च-स्तरीय जनसांख्यिकी मिशन की घोषणा की।

भारत में अवैध प्रवासन

  • यह एक बहुआयामी मुद्दा है जिसमें बिना अनुमति प्रवेश, वीजा की अवधि समाप्त होने के बाद भी रुकना, और छिद्रयुक्त सीमाओं के पार बिना दस्तावेजों के प्रवासन सम्मिलित है। 
  • भारत को सीमावर्ती प्रवासन से चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों जैसे असम एवं पश्चिम बंगाल में, जिससे रोजगारों , सामाजिक स्थिरता और संस्कृति को लेकर चिंताएं उत्पन्न होती हैं।

अवैध प्रवासन के कारण

  • छिद्रयुक्त सीमाएं: भारत बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल और भूटान के साथ बिना बाड़ वाली सीमाएं साझा करता है, जिससे गुप्त प्रवेश आसान हो जाता है।
  • राजनीतिक अस्थिरता, जातीय और धार्मिक उत्पीड़न: म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिम और बांग्लादेश व पाकिस्तान के अल्पसंख्यक प्रायः उत्पीड़न से बचने के लिए भारत में शरण लेते हैं।
  • आर्थिक असमानताएं: पड़ोसी देशों के प्रवासी बेहतर रोजगार और जीवन स्तर की खोज में भारत आते हैं।
  • कानूनी ढांचे की कमी: भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है और राष्ट्रीय शरणार्थी कानून की अनुपस्थिति के कारण शरणार्थियों एवं अवैध प्रवासियों में अंतर करना कठिन हो जाता है।

अवैध प्रवासन के प्रभाव

  • जनसांख्यिकीय और सामाजिक प्रभाव: सीमावर्ती राज्यों जैसे असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल में जनसंख्या संरचना परिवर्तित हो जाती है।
    • जातीय तनाव को बढ़ावा दे सकता है (जैसे 1980 के दशक का असम आंदोलन)।
    • शहरी क्षेत्रों (दिल्ली, मुंबई) में शिक्षा, आवास, स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छता पर दबाव बढ़ता है।
  • आर्थिक प्रभाव:
    • प्रवासी प्रायः कम मजदूरी पर कार्य करते हैं, जिससे स्थानीय श्रमिक प्रभावित होते हैं।
    • अनियमित रोजगारों में वृद्धि होती है, जिससे कर राजस्व में कमी आती है।
    • कल्याणकारी योजनाओं पर बोझ बढ़ता है क्योंकि मुफ्त/सब्सिडी वाले राशन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा गैर-नागरिकों को भी मिलती है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएं:
    • चरमपंथी समूहों (ULFA, HuJI, ISI समर्थित संगठन) द्वारा सीमापार घुसपैठ की संभावना।
    • फर्जी दस्तावेज (आधार, राशन कार्ड, वोटर आईडी) का अवैध गतिविधियों में उपयोग।
    • तस्करी, मानव तस्करी और नार्को-आतंकवाद नेटवर्क छिद्रयुक्त सीमाओं का लाभ उठाते हैं।
  • राजनीतिक प्रभाव:
    • अवैध प्रवासी फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से वोट बैंक बन जाते हैं।
    • ध्रुवीकृत राजनीति को जन्म देता है (CAA–NRC परिचर्चा)।
    • प्रवासियों के पुनर्वास को लेकर राज्यों के बीच विवाद (जैसे पूर्वोत्तर बनाम केंद्र)।
  • राजनयिक और पड़ोसी संबंध:
    • बांग्लादेश और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में तनाव, जो प्रवासन की जिम्मेदारी से मना करते हैं।
    • भारत की वापसी नीति (जैसे रोहिंग्या निर्वासन) को अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा मानवीय आधार पर आलोचना मिलती है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव:
    • बढ़ती जनसंख्या घनत्व के कारण भूमि, जल और वन संसाधनों पर दबाव।
    • पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में अतिक्रमण (जैसे असम के वेटलैंड्स, पूर्वोत्तर के जंगल)।
    • शहरी झुग्गियों और अस्थायी संसाधन उपयोग में योगदान।

उठाए गए कदम

  • भारत ने सीमापार आपराधिक गतिविधियों, तस्करी, अपराधियों की आवाजाही और मानव तस्करी की चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटकर अपराध-मुक्त सीमा सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता दोहराई।
  • सीमा सुरक्षा के लिए कांटेदार तारों की बाड़, सीमा पर प्रकाश व्यवस्था, तकनीकी उपकरणों की स्थापना और पशु बाड़ जैसे उपाय किए गए हैं।
  • भारत ने म्यांमार सीमा को पूरी तरह से एंटी-कट, एंटी-क्लाइंब तकनीक से लैस करने की योजना बनाई है ताकि अवैध घुसपैठ को रोका जा सके।
  • कानूनी प्रावधान:
    • नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 कुछ धार्मिक अल्पसंख्यकों को अवैध प्रवासी की परिभाषा से बाहर करता है।
    • असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) का उपयोग बिना दस्तावेजों वाले प्रवासियों की पहचान के लिए किया गया।
अवैध प्रवासन के प्रभाव

Source :TH

 

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