पाठ्यक्रम: GS3/अवसंरचना
संदर्भ
- लोकसभा ने भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2025 पारित कर दिया है। यह 1908 के भारतीय बंदरगाह अधिनियम को निरस्त कर उसे प्रतिस्थापित करने का प्रस्ताव करता है।
प्रमुख विशेषताएँ
- राज्य समुद्री बोर्ड: विधेयक सभी तटीय राज्यों द्वारा स्थापित राज्य समुद्री बोर्डों को वैधानिक मान्यता प्रदान करता है।
- राज्य समुद्री बोर्ड अपने-अपने राज्यों में गैर-प्रमुख बंदरगाहों के प्रशासन और विनियमन के लिए उत्तरदायी होंगे।
- समुद्री राज्य विकास परिषद: यह समुद्री राज्य विकास परिषद को वैधानिक मान्यता प्रदान करता है।
- परिषद की अध्यक्षता बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग के केंद्रीय मंत्री करेंगे।
- यह केंद्र एवं राज्य सरकारों से परामर्श कर दिशा-निर्देश जारी करेगी और राष्ट्रीय दृष्टिकोण योजना के निर्माण में केंद्र सरकार को परामर्श देगी।
- विवाद समाधान समिति (DRC): विधेयक राज्य सरकारों को DRC गठित करने का निर्देश देता है, जो राज्य के अंदर गैर-प्रमुख बंदरगाहों, रियायतधारकों, उपयोगकर्ताओं और सेवा प्रदाताओं के बीच विवादों का निपटारा करेगी।
- DRC के आदेशों के विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय में की जा सकेगी।
- DRC को सौंपे गए मामलों में दीवानी न्यायालयों की भूमिका समाप्त कर दी गई है।
- शुल्क निर्धारण: प्रमुख बंदरगाहों के लिए शुल्क का निर्धारण: प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण के बोर्ड या कंपनी के रूप में पंजीकृत बंदरगाह के निदेशक मंडल द्वारा किया जाएगा।
- गैर-प्रमुख बंदरगाहों के लिए शुल्क का निर्धारण: राज्य समुद्री बोर्ड या उसके द्वारा अधिकृत रियायतधारक द्वारा किया जाएगा।
- बंदरगाह अधिकारी: अधिनियम के अनुसार, राज्य सरकार द्वारा नियुक्त संरक्षक को मुख्य बंदरगाह अधिकारी नामित किया गया है।
- विधेयक में अन्य सभी बंदरगाह अधिकारियों (जैसे हार्बर मास्टर, स्वास्थ्य अधिकारी) को संरक्षक के अधीनस्थ माना गया है, जो जहाजों की आवाजाही, अवरोध हटाने और शुल्क वसूली पर अधिकार रखते हैं।
- सुरक्षा और संरक्षण: अधिनियम में सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कार्यों को दंडनीय माना गया है; विधेयक इन प्रावधानों को बनाए रखता है।
- विधेयक MARPOL (जहाजों से प्रदूषण की रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन) और बलास्ट जल प्रबंधन सम्मेलन का अनुपालन अनिवार्य करता है।
- यह प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण, आपातकालीन तैयारी और आपदा प्रबंधन से संबंधित नए दायित्व भी जोड़ता है।
- दंड: अधिनियम के अंतर्गत अपराधों के लिए कारावास, जुर्माना या दोनों का प्रावधान है; विधेयक इन अपराधों को बनाए रखता है।
- यह कुछ अपराधों को अपराध की श्रेणी से हटाकर केवल मौद्रिक दंड योग्य बनाता है।
- यह सभी प्रथम बार के उल्लंघनों के लिए समझौता (compounding) की व्यवस्था भी करता है।

चिंताएँ
- अपील तंत्र की कमी: विधेयक संरक्षक द्वारा लगाए गए दंड के विरुद्ध अपील की कोई व्यवस्था नहीं करता है।
- पर्यवेक्षण प्राधिकरण के विरुद्ध दंड: विधेयक संरक्षक को बंदरगाह प्राधिकरण या रियायतधारकों को ऑनलाइन शुल्क प्रकाशित न करने पर दंडित करने की अनुमति देता है।
- चूंकि संरक्षक बंदरगाह प्राधिकरण के अधीन कार्य करता है, यह व्यवस्था पर्यवेक्षण निकाय को ही दंडित करने की स्थिति उत्पन्न कर सकती है, जिससे इसकी उपयुक्तता पर प्रश्न उठते हैं।
- निरीक्षण के अधिकारों पर सुरक्षा उपायों की कमी: संरक्षक और स्वास्थ्य अधिकारी जैसे बंदरगाह अधिकारियों को प्रवेश एवं निरीक्षण के अधिकार दिए गए हैं।
- हालांकि, विधेयक इन अधिकारों पर कोई सुरक्षा उपाय प्रदान नहीं करता है।
- ‘मेगा बंदरगाह’ पर अस्पष्टता: विधेयक केंद्र सरकार को किसी बंदरगाह को ‘मेगा बंदरगाह’ घोषित करने की अनुमति देता है, जबकि उसका प्रमुख या गैर-प्रमुख दर्जा बना रहता है।
- चूंकि इस अतिरिक्त वर्गीकरण के उद्देश्य पर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, यह अस्पष्टता उत्पन्न करता है।
Source: AIR
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