पाठ्यक्रम: GS2/ सरकारी नीति और हस्तक्षेप
संदर्भ
- हाल ही में युवा कार्य और खेल मंत्रालय ने लोकसभा में “राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक, 2025” प्रस्तुत किया।
| विधेयक के पीछे का कारण – प्रशासनिक विफलताओं की विरासत: भारत का खेल प्रशासन लंबे समय से खेल संहिता (2011) पर निर्भर रहा है, जो एक गैर-वैधानिक ढांचा है और कानूनी सुदृढ़ता की कमी है। – यह विधेयक प्रशासन को कानूनी आधार देना चाहता है, न्यायिक हस्तक्षेप को कम करना चाहता है और प्रशासनिक समरसता लाना चाहता है। इसकी अनुपस्थिति में: 1. न्यायालय खेल प्रशासन में बार-बार हस्तक्षेप करते हैं। 2. कई महासंघों के चुनाव और निर्णय लंबे समय तक न्यायालयों में उलझे रहे। 3. अनेक महासंघ वर्तमान में तदर्थ समितियों द्वारा संचालित हो रहे हैं । – अतीत से सीख: यह विधेयक राष्ट्रीय खेल नीति 2007 का मसौदा और पिछले दशकों के राष्ट्रीय खेल विकास विधेयक के महत्वपूर्ण प्रावधानों से प्रेरणा लेता है — जो कानून का रूप नहीं ले पाए। |
विधेयक के प्रमुख उद्देश्य
- राष्ट्रीय खेल बोर्ड(NSB) की स्थापना ताकि वह राष्ट्रीय खेल महासंघों (NSFs) को विनियमित और मान्यता प्रदान कर सके।
- राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण की स्थापना, जिसमें सिविल न्यायालय जैसी शक्तियाँ होंगी, ताकि खिलाड़ियों और महासंघों से संबंधित विवादों का समाधान हो।
- सभी खेल संगठनों में पारदर्शिता, जवाबदेही और नैतिक प्रशासन सुनिश्चित करना।
- एथलीट-केंद्रित नीतियों को बढ़ावा देना, जिसमें निर्णय-प्रक्रिया में उनकी भागीदारी शामिल हो।
विधेयक के मुख्य प्रावधान
- RTI अनुपालन: सभी मान्यता प्राप्त खेल निकायों को, जिसमें BCCI भी शामिल है, सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत लाया जाएगा, ताकि सार्वजनिक जवाबदेही बढ़े।
- खिलाड़ियों की भागीदारी: NSFs में कम से कम 10% मतदान सदस्य “उत्कृष्ट योग्यता वाले खिलाड़ी” होने चाहिए, और कार्यकारिणी समितियों में लिंग संतुलन अनिवार्य होगा।
- महासंघों की कार्यकारिणी में कम से कम 25% सदस्य पूर्व खिलाड़ी होने चाहिए।
- सुरक्षित खेल नीति: POSH अधिनियम, 2013 के अनुरूप, महिलाओं और नाबालिगों के लिए उत्पीड़न व शोषण से सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
- कार्यकाल की सीमा: महासंघों के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिकारियों के कार्यकाल पर सीमा लगाई जाएगी, ताकि सत्ता का केंद्रीकरण रोका जा सके।
- चुनाव निगरानी: राष्ट्रीय खेल चुनाव पैनल की स्थापना की जाएगी ताकि महासंघों में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किए जा सके।
- खिलाड़ी अधिकार और विवाद समाधान: बहु-स्तरीय विवाद समाधान प्रक्रिया का विधिक रूप दिया जाएगा — पहले, महासंघों के आंतरिक विवाद समाधान कक्ष; फिर, राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण; और अंततः सर्वोच्च न्यायालय अंतिम अपील का मंच होगा
- यह मॉडल FIFA की विवाद समाधान चैंबर और खेल पंचाट न्यायालय(CAS) से प्रेरित है।
वैश्विक समन्वय और ओलंपिक आकांक्षाएँ
- राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक, 2025 ओलंपिक चार्टर, पैरालंपिक चार्टर जैसे अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों से प्रेरणा लेता है, और IOC व FIFA जैसे निकायों के इनपुट शामिल करता है।
- यह भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) और अन्य NSFs में अव्यवस्था, निगरानी की कमी और सुधार की आवश्यकता की लंबे समय से चली आ रही चिंताओं का जवाब है।
- 2036 ओलंपिक की मेज़बानी हेतु भारत की दावेदारी की दिशा में यह बिल एक तैयारी का कदम माना जा रहा है।
विधेयक से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ
- आयु और कार्यकाल: विधेयक प्रशासनिक अधिकारियों की अधिकतम आयु सीमा 75 वर्ष करता है और कार्यकाल संबंधी प्रतिबंध हटाता है — उद्देश्य यह है कि भारतीय अधिकारी अंतरराष्ट्रीय खेल निकायों में वरिष्ठता प्राप्त करें और नेतृत्व की निरंतरता बनी रहे।
- इससे सत्ता के केंद्रीकरण और संस्थागत नियंत्रण की संभावनाएँ बढ़ सकती हैं — इसलिए सतर्क क्रियान्वयन आवश्यक है।
- खेल निकायों की स्वायत्तता: प्रस्तावित खेल नियामक बोर्ड से IOA और NSFs की स्वायत्तता खतरे में पड़ सकती है — जिससे IOC द्वारा सरकार के हस्तक्षेप का आरोप लगाकर भारत को निलंबित किया जा सकता है।
- विधेयक राज्य ओलंपिक संघों की भूमिका स्पष्ट नहीं करता — जिससे विकेंद्रीकरण प्रयास कमजोर हो सकते हैं।
- सरकारी अतिरेक: विधेयक खेल विवादों के मामलों में निम्न न्यायालयों को प्रतिस्थापित करता है, और अपील का अंतिम मंच सर्वोच्च न्यायालय को बनाता है।
BCCI पर विधेयक के प्रभाव
- BCCI ने ऐतिहासिक रूप से सरकारी नियंत्रण से बाहर रहकर कार्य किया है।
- यह विधेयक इसे कानून के दायरे में लाने का प्रयास करता है, भले ही BCCI NSF नहीं है।
- इससे BCCI के वर्तमान नियमों में बदलाव आएगा — विशेष रूप से आयु और कार्यकाल से जुड़े प्रावधानों में।
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