2025 के लिए वैश्विक आर्द्रभूमि आउटलुक

पाठ्यक्रम: GS3/जैव विविधता और संरक्षण

संदर्भ

  • रैमसर कन्वेंशन ऑन वेटलैंड्स ने वर्ष 2025 के लिए वैश्विक आर्द्रभूमि आउटलुक जारी किया है।

आर्द्रभूमि आउटलुक 2025 के बारे में 

  • यह आर्द्रभूमियों की स्थिति, प्रवृत्तियों, महत्व और नीति प्रतिक्रियाओं का नवीनतम वैश्विक मूल्यांकन प्रदान करता है। 
  • प्रकाशनकर्ता: वेटलैंड्स कन्वेंशन के साइंटिफिक एंड टेक्निकल रिव्यू पैनल (STRP)। 
  • ग्यारह व्यापक आर्द्रभूमि प्रकारों का मूल्यांकन किया गया: सीग्रास, केल्प फॉरेस्ट्स, कोरल रीफ्स, एस्टुअरीन वॉटर, सॉल्ट मार्शेस, मैन्ग्रोव, टाइडल फ्लैट्स, झीलें, नदियाँ व जलधाराएँ, आंतरिक दलदली क्षेत्र और पीटलैंड्स (मायर्स)।

मुख्य निष्कर्ष

  • आर्द्रभूमि का ह्रास जारी है:: 1970 से अब तक अनुमानित 411 मिलियन हेक्टेयर आर्द्रभूमियां समाप्त हो चुकी हैं, जो वैश्विक क्षेत्रफल में 22% की गिरावट दर्शाता है।
    • औसतन आर्द्रभूमि हानि की दर -0.52% प्रति वर्ष रही (जो वेटलैंड प्रकार के अनुसार -1.80% से -0.01% के बीच रही)।
  • आर्द्रभूमि का क्षरण व्यापक है:: हाल के वर्षों में लैटिन अमेरिका, कैरिबियन एवं अफ्रीका में गिरावट स्पष्ट है; जबकि यूरोप, उत्तरी अमेरिका और ओशिनिया में क्षरण की तीव्रता बढ़ी है।
  • क्षरण के कारण: अफ्रीका, लैटिन अमेरिका व कैरिबियन में नगरीकरण, औद्योगीकरण और आधारभूत ढांचा विकास प्रमुख कारण हैं।
    • उत्तरी अमेरिका व ओशिनिया में आक्रामक प्रजातियाँ चिंता का विषय हैं, जबकि यूरोप में सूखा मुख्य कारण रहा।
  • उच्च मूल्य संसाधन: बचे हुए 1,425 मिलियन हेक्टेयर वेटलैंड्स प्रति वर्ष अनुमानित $7.98 ट्रिलियन से $39.01 ट्रिलियन मूल्य के लाभ प्रदान करती हैं। यदि इन्हें 2050 तक प्रभावी रूप से प्रबंधित किया जाए, तो यह $205.25 ट्रिलियन से अधिक का नेट प्रेजेंट वैल्यू (NPV) प्रदान करेंगी।
  • संरक्षण बनाम पुनर्स्थापन: स्वस्थ आर्द्रभूमियों का संरक्षण उनकी पुनर्स्थापना की तुलना में सस्ता होता है — पुनर्स्थापना की औसत लागत प्रति हेक्टेयर $1,000 से $70,000 तक हो सकती है।
  • वित्तीय अंतराल: वर्तमान में जैव विविधता संरक्षण के लिए वित्त पोषण वैश्विक GDP का मात्र 0.25% है, जो प्रकृति और आर्द्रभूमियों में निवेश की भारी कमी दर्शाता है।

सिफारिशें

  • वित्तपोषण: आर्द्रभूमियों को केएम-जीबीएफ जैसे वित्तीय तंत्रों में शामिल किया जाना चाहिए, जो प्रत्येक वर्ष अरबों डॉलर जुटाने का लक्ष्य रखते हैं।
    • सार्वजनिक व निजी वित्तीय संसाधनों का समावेश कर आर्द्रभूमियों को प्रकृति-आधारित समाधान के रूप में विकसित किया जाए।
  • आउटलुक तत्काल कार्रवाई का आह्वान करता है — जिसमें नीति निर्माताओं, व्यवसायों और समाज की भागीदारी आवश्यक है।
    • इसके लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति, जन समर्थन एवं पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता होगी।
कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता ढाँचा (GBF)
– इसे जैव विविधता कन्वेंशन के COP15 द्वारा 2022 में अपनाया गया था।
– इसे “प्रकृति के लिए पेरिस समझौता” के रूप में प्रचारित किया गया है।
– इसमें 4 वैश्विक लक्ष्य और 23 लक्ष्य शामिल हैं — 
1. 2030 तक प्राप्त किए जाने वाले तेईस लक्ष्यों में आक्रामक प्रजातियों के प्रवेश को आधा करना और हानिकारक सब्सिडी में प्रति वर्ष 500 अरब डॉलर की कमी करना शामिल है।
2. “लक्ष्य 3” को विशेष रूप से “30X30” लक्ष्य कहा जाता है।
‘30X30’ लक्ष्य
– इसके अंतर्गत वर्ष 2030 तक 30% भूमि और 30% तटीय और समुद्री क्षेत्रों की रक्षा की प्रतिबद्धता है।
– साथ ही दशक के अंत तक 30% खराब हुई भूमि और जल क्षेत्रों को पुनः पुनार्श्तापित करने की आकांक्षा है (पहले यह लक्ष्य 20% था)।
– विश्व जैव विविधता वाले क्षेत्रों की क्षति को 2030 तक “लगभग शून्य” करने का प्रयास करेगी।

वेटलैंड क्या है? 

  • एक वेटलैंड वह पारिस्थितिक तंत्र होता है जहाँ भूमि — स्वच्छ या लवणीय जल द्वारा — आंशिक रूप से या पूर्णतः, मौसमी या स्थायी रूप से ढकी होती है। 
  • यह स्वयं में विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में कार्य करता है। 
  • इसमें झीलें, नदियाँ, भूमिगत जल स्रोत, दलदल, नम घासभूमियाँ, पीटलैंड्स, डेल्टा, टाइडल फ्लैट्स, मैन्ग्रोव, कोरल रीफ्स और अन्य तटीय क्षेत्र शामिल होते हैं। 
  • इन्हें तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है: आंतरिक आर्द्रभूमियां , तटीय आर्द्रभूमियां और मानव निर्मित आर्द्रभूमियां।

भारत में आर्द्रभूमियां

  • भारत में हिमालय की उच्च ऊंचाई वाले आर्द्रभूमियां, गंगा व ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों की बाढ़भूमियाँ, तटीय लैगून व मैन्ग्रोव दलदल और समुद्री रीफ्स शामिल हैं।
  • भारत के भू-भाग का लगभग 4.6% आर्द्रभूमियां हैं।
  • भारत के 91 वेटलैंड्स अंतरराष्ट्रीय महत्व की सूची में दर्ज हैं।
  • भारत दक्षिण एशिया में प्रथम और एशिया में तृतीय स्थान पर है।

आर्द्रभूमियां का महत्व

  • जैव विविधता केंद्र: पृथ्वी पर सर्वाधिक जैव विविध पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक।
  • जल शुद्धिकरण: जल से प्रदूषकों व अवसादों को हटाने का कार्य करते हैं।
  • बाढ़ नियंत्रण: अत्यधिक वर्षा के समय अतिरिक्त जल को अवशोषित कर प्राकृतिक बफर का कार्य करते हैं।
  • कार्बन संचित करना: गीले वातावरण के कारण जैव पदार्थों का विघटन धीमा होता है जिससे मृदा में कार्बन जमा होता है।
  • आर्थिक लाभ: मछलीपालन, कृषि, पर्यटन आदि गतिविधियों में सहायता कर स्थानीय समुदायों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं।
रामसर कन्वेंशन
– यह आर्द्रभूमियों को संरक्षित करने हेतु अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसे 1971 में रैमसर, ईरान में अपनाया गया और 1975 में लागू हुआ।
संधि से जुड़ी देशों को अपनी सीमाओं में अंतरराष्ट्रीय महत्व वाली आर्द्रभूमियों  को नामित करना होता है — जिन्हें रामसर साइट्स कहते हैं।
नामांकन के मानदंड
– यदि वह संवेदनशील, संकटग्रस्त या गंभीर संकटग्रस्त प्रजातियों अथवा
– संकटग्रस्त पारिस्थितिक समुदायों का समर्थन करता हो अथवा
– नियमित रूप से 20,000 से अधिक जल पक्षियों का समर्थन करता हो अथवा
– मछलियों के लिए भोजन स्रोत, प्रजनन स्थल और नर्सरी के रूप में कार्य करता हो। 
– भारत 1982 से इस कन्वेंशन का सदस्य है।

Source: DTE

 

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