भारत का IBC ढाँचा: समाधान और पुनर्प्राप्ति के बीच संतुलन

पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • भारत के दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016 को लागू हुए आठ वर्षों से अधिक समय हो चुका है, और इसने देश के ऋण परिदृश्य को महत्त्वपूर्ण रूप से बदल दिया है।

दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) 2016

  • IBC को 2016 में भारत में बढ़ती गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) और अप्रभावी ऋण वसूली तंत्र को दूर करने के लिए पेश किया गया था। 
  • इसका उद्देश्य कॉर्पोरेट संकट समाधान प्रणाली को पुनर्गठित करना है, जहाँ ऋणकर्ता-नियंत्रित व्यवस्थाओं को हटाकर ऋणदाता-नियंत्रित तंत्र के माध्यम से समयबद्ध समाधान प्रदान किए जाते हैं।
  • IBC संकल्प के उद्देश्य
    • व्यवसाय पुनर्जीवन: पुनर्गठन, स्वामित्व परिवर्तन, या विलय के माध्यम से व्यवसायों को बचाना।
    • परिसंपत्ति मूल्य का अधिकतमकरण: ऋणग्रस्त संस्थाओं की परिसंपत्तियों को संरक्षित और अधिकतम करना।
    • उद्यमिता और ऋण को बढ़ावा देना: उद्यमिता को प्रोत्साहित करना, ऋण उपलब्धता में सुधार करना, और हितधारकों (ऋणदाता एवं ऋणी) के हितों को संतुलित करना।
  • वर्तमान में, किसी कंपनी को दिवाला समाधान प्रक्रिया में प्रवेश करने के बाद अधिकतम 330 दिनों में समाधान निकालना आवश्यक है।
    •  अन्यथा, कंपनी को विलुप्ति (Liquidation) प्रक्रिया में डाल दिया जाता है।

दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) के अंतर्गत संकल्प प्रक्रिया

  • प्रक्रिया की शुरुआत: कोई भी ऋणदाता या ऋणी राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) में आवेदन देकर कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) प्रारंभ कर सकता है।
    • अंतरिम समाधान पेशेवर (IRP) की नियुक्ति: NCLT, कंपनी के मामलों को संभालने के लिए IRP नियुक्त करता है।
  • स्थगन (Moratorium) की घोषणा: सभी वसूली कार्यवाही, नीलामी आदि पर कानूनी रोक लगाई जाती है और सार्वजनिक घोषणा के माध्यम से ऋणदाताओं से दावे आमंत्रित किए जाते हैं।
  • आर्थिक ऋणदाताओं की पहचान और ऋणदाताओं की समिति (CoC) का गठन: इसमें मुख्यतः वित्तीय ऋणदाता शामिल होते हैं।
    • CoC द्वारा समाधान पेशेवर (RP) की नियुक्ति: CoC, RP की पुष्टि कर सकता है या नया RP नियुक्त कर सकता है।
  • संकल्प योजना आमंत्रण: RP, इच्छुक संकल्प आवेदकों से संकल्प योजनाएँ आमंत्रित करता है।
  • CoC द्वारा मूल्यांकन और संभावित संशोधन: संकल्प योजना में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं—
    • ऋण पुनर्गठन
    • प्रबंधन परिवर्तन
    • विलय या अधिग्रहण
    • ब्याज दरों में कमी, ऋण अवधि का विस्तार आदि
  • CoC की मंजूरी: संकल्प योजना को कम से कम 66% वोटिंग शेयर द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।
    • CoC द्वारा मंजूरी मिलने के बाद, समाधान योजना को अंतिम मंजूरी के लिए NCLT के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। NCLT द्वारा मंजूरी मिलने के बाद, योजना सभी हितधारकों के लिए बाध्यकारी होती है।
  • विलुप्ति (Liquidation): यदि 330 दिनों के अन्दर कोई योजना स्वीकृत नहीं होती है या CoC विलुप्ति का निर्णय करता है, तो कंपनी का परिसमापन प्रारंभ हो जाता है।
दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता

IBC के प्रभाव

  • व्यवसाय करने में आसानी में सुधार: IBC के लागू होने से विश्व बैंक रिपोर्ट 2020 के अनुसार ‘दिवालियापन का समाधान’ रैंकिंग में सुधार हुआ—2016 में 136वें स्थान से 2020 में 52वें स्थान पर पहुँच गया।
  • बैंकों की वसूली दर में सुधार: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की रिपोर्ट—भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति 2024 के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023–24 में IBC के माध्यम से बैंकों द्वारा कुल वसूली का 48% किया गया।

चुनौतियाँ

  • NCLT में विलंब: 31 मार्च 2025 तक, चल रहे CIRP मामलों में से 78% से अधिक मामलों ने 270-दिन की समय-सीमा पार कर ली थी, जो कि 330 दिनों की वैधानिक सीमा से अधिक है।
  • न्यायिक हस्तक्षेप: भूषण पावर एंड स्टील मामले जैसे मामलों में संकल्प की स्वीकृति के बाद न्यायिक हस्तक्षेप से संकल्प आवेदकों का आत्मविश्वास कम हो सकता है।
  • ऋणदाताओं के लिए उच्च कटौती (Haircuts): औसतन, ऋणदाता केवल 33% दावों की वसूली कर पाते हैं और 67% तक की कटौती सहन करते हैं।
  • आधुनिक कंपनियों से जुड़े मुद्दों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देशों की कमी: IBC में बौद्धिक संपदा मूल्यांकन, कर्मचारियों के दावे, और तकनीकी निरंतरता से संबंधित स्पष्ट प्रावधानों की कमी है।
  • संसाधन की सीमाएँ: NCLT और NCLAT में अब भी कर्मचारियों की कमी और सीमित बुनियादी ढाँचा बना हुआ है।

Source: TH

 

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