हिमालय में प्लास्टिक अपशिष्ट

पाठ्यक्रम: GS3/ पर्यावरण

संदर्भ 

  • एक रिपोर्ट के अनुसार हिमालय क्षेत्र में एकत्रित 84% से अधिक प्लास्टिक अपशिष्ट गंभीर पर्यावरणीय और प्रणालीगत चुनौतियों को जन्म दे रहा है।

परिचय

  • हिमालयन क्लीनअप (THC) 2024 के दौरान नौ हिमालयी राज्यों में 1.2 लाख से अधिक अपशिष्ट टुकड़ों का ऑडिट किया गया, जिसमें 88% प्लास्टिक था।
  • प्लास्टिक अपशिष्टमें:
    • 84.2% खाद्य और पेय पदार्थ पैकेजिंग से संबंधित था।
    • 71% प्लास्टिक पुनर्नवीनीकरण योग्य नहीं था।
  • शीर्ष योगदानकर्ता:
    • सिक्किम और दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) सबसे अधिक योगदान देने वाले क्षेत्र रहे।
    • इनके बाद लद्दाख, नागालैंड और उत्तराखंड का स्थान रहा।

प्लास्टिक अपशिष्ट का प्रभाव

  • पर्यटन पर प्रभाव:
    • सबसे अधिक प्लास्टिक संचय पर्यटन स्थलों, नदियों और संरक्षित क्षेत्रों में पाया गया।
    • यह अनियंत्रित पर्यटन और कमजोर बुनियादी ढाँचे की भूमिका को दर्शाता है।
  • जलवायु और जैव विविधता पर प्रभाव:
    • हिमालय में प्लास्टिक अपशिष्ट मृदा और जल प्रदूषण में योगदान देता है।
    • इससे स्थानीय खाद्य प्रणाली और जैव विविधता प्रभावित होती है।
  • स्वास्थ्य जोखिम:
    • मानव बस्तियों के पास संचित प्लास्टिक अपशिष्ट के कारण संक्रमण जनित रोग, जल प्रदूषण और खुले में जलाने से श्वसन संबंधी समस्याएँ बढ़ती हैं।

हिमालय में अपशिष्ट शासन की चुनौतियाँ

  • स्थानीयकृत अपशिष्ट अवसंरचना का अभाव: अधिकांश पहाड़ी नगरों और गाँवों में मूलभूत अपशिष्ट संग्रह, पृथक्करण और उपचार सुविधाएँ नहीं हैं।
  • प्लास्टिक प्रतिबंध नीतियाँ: कई हिमालयी राज्यों ने कुछ प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध लगाया है। लेकिन कमजोर प्रवर्तन, असंगत निगरानी और स्थानीय समुदायों एवं विक्रेताओं के लिए व्यवहार्य विकल्पों की कमी चुनौती बनी हुई है।
  • कम जागरूकता: निर्माताओं को विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी (EPR) के अंतर्गत अपनी जिम्मेदारियों के बारे में अपर्याप्त जागरूकता है। साथ ही पर्यटकों में स्थायी प्रथाओं को लेकर शिक्षा और संवेदनशीलता का अभाव देखा जाता है।
  • बिखरी हुई बस्तियाँ: दुर्गम स्थलाकृति, बिखरी हुई जनसंख्या और मौसमी मौसम की स्थिति के कारण पूरे हिमालयी क्षेत्र में प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली स्थापित और बनाए रखना लॉजिस्टिक रूप से कठिन है।

भारत की प्लास्टिक अपशिष्ट से निपटने की पहल

  • विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी (EPR): भारतीय सरकार ने EPR लागू किया है, जिससे प्लास्टिक निर्माताओं को उनके उत्पादों से उत्पन्न कचरे के प्रबंधन और निपटान की जिम्मेदारी दी गई है।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022: 120 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक कैरी बैग के निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध।
  • स्वच्छ भारत अभियान: यह एक राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान है, जो प्लास्टिक अपशिष्ट के संग्रह और निपटान को भी शामिल करता है।
  • प्लास्टिक पार्क: भारत ने प्लास्टिक पार्कों की स्थापना की है, जो प्लास्टिक अपशिष्ट के पुनर्चक्रण और प्रसंस्करण के लिए विशेष औद्योगिक क्षेत्र हैं।

आगे की राह

  • पहाड़ों के अनुकूल अपशिष्ट नीतियाँ: ऐसी अपशिष्ट प्रबंधन नीतियाँ, जो भौगोलिक दुर्गमता, पारंपरिक प्रथाओं और पारिस्थितिक संवेदनशीलता को ध्यान में रखें, आवश्यक हैं।
  • विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रणाली: सामुदायिक-आधारित, कम-प्रभाव वाली अपशिष्ट समाधान जो पारंपरिक ज्ञान और स्थानीय प्रशासन पर आधारित हों, लागू करने पर बल देना चाहिए।
  • स्थायी पर्यटन प्रथाएँ: पर्यटन स्थलों, विशेषकर जल निकायों और तीर्थस्थलों के पास अनिवार्य अपशिष्ट ऑडिट और प्रबंधन प्रोटोकॉल स्थापित किए जाएँ।

Source: TH

 

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