पाठ्यक्रम: GS1/ सामाजिक मुद्दा
सन्दर्भ
- नौ वर्षीय वेंकटेश की हाल ही में हुई मृत्यु, जिसे उसकी माँ के बकाया ऋण के लिए ‘बंधक’ के रूप में ले लिया गया था, भारत में बंधुआ मजदूरी की कठोर वास्तविकताओं और निरंतर बनी रहने वाली चुनौतियों को उजागर करता है, भले ही यह कानूनी रूप से निषिद्ध हो।
बंधुआ मजदूरी क्या है?
- बंधुआ मजदूरी, जिसे ऋण बंधन भी कहा जाता है, उस स्थिति को संदर्भित करता है जहाँ कोई व्यक्ति ऋण, अग्रिम भुगतान, या विरासत में मिले सामाजिक दायित्वों के कारण जबरन कार्य करने के लिए मजबूर होता है, अक्सर बिना निश्चित सीमा या उचित वेतन के। यह सिर्फ एक आर्थिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह मानव गरिमा का संरचनात्मक उल्लंघन भी है।
वर्तमान परिदृश्य और सांख्यिकी
- प्रसार: 2021 तक, भारत में अनुमानित रूप से 1.1 करोड़ लोग आधुनिक गुलामी में रह रहे थे, जो वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक संख्या थी।
- बचाव और पुनर्वास प्रयास: अप्रैल 2024 से जनवरी 2025 के बीच भारत में लगभग 250 बंधुआ मजदूरों को बचाया गया। हालांकि, वित्तीय वर्ष 2023-24 में केवल 468 बंधुआ मजदूरों का पुनर्वास किया गया, जबकि वार्षिक लक्ष्य 13 लाख था, जिससे कार्यान्वयन की बड़ी खामियाँ उजागर होती हैं।
- प्रभावित सामाजिक समूह: अध्ययनों से लगातार पता चलता है कि 80% से अधिक बंधुआ मजदूर ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर पड़े अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) समुदायों से आते हैं, जिससे गहरी सामाजिक भेदभाव की जड़ें स्पष्ट होती हैं।
संवैधानिक और कानूनी ढाँचा
- अनुच्छेद 23 – बलात् श्रम और बेगार को प्रतिबंधित करता है।
- अनुच्छेद 21 – जीवन जीने का अधिकार सुनिश्चित करता है, जिसे बंधुआ मजदूरी मूल रूप से उल्लंघन करती है।
- बंधुआ श्रमिक प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 – सभी प्रकार की बंधुआ मजदूरी को अपराध घोषित करता है, ऋण दायित्वों को समाप्त करता है और जिले स्तर पर सतर्कता समितियों (DVCs) को प्रवर्तन की शक्ति देता है।
- पुनर्वास योजना (2016) – 2030 तक 1.84 करोड़ (18.4 मिलियन) बंधुआ मजदूरों को बचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया।
भारत में बंधुआ मजदूरी की स्थिरता
- गरीबी और ऋणग्रस्तता: अत्यधिक गरीबी के कारण परिवारों को जीवित रहने के लिए छोटे अग्रिम लेने पड़ते हैं, जिससे वे दीर्घकालिक ऋण बंधन में फँस जाते हैं।
- जाति आधारित भेदभाव: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की कमजोर आबादी इस समस्या से असमान रूप से प्रभावित होती है।
- क्रियान्वयन और डेटा की कमी: 1976 अधिनियम का कमजोर प्रवर्तन एवं अपर्याप्त निगरानी प्रभावी बचाव और पुनर्वास प्रयासों को बाधित करता है।
- असंगठित क्षेत्र का अनियंत्रण: भारत की 90% कार्यबल अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में कार्यरत है, जहाँ कानूनी या सामाजिक सुरक्षा न्यूनतम है।
- नीति में खामियाँ: कुछ राज्य सरकारें बंधुआ मजदूरी के अस्तित्व को नकारती हैं, जिससे पुनर्वास और कानूनी कार्रवाई में विलंब होती है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र ने आपातकाल के बाद अपने 40-बिंदु कार्यक्रम से इसे हटा दिया।
समाप्ति में चुनौतियाँ
- कम रिपोर्टिंग: भय, जागरूकता की कमी, या सामाजिक कलंक के कारण कई मामले दर्ज नहीं किए जाते।
- अपर्याप्त पुनर्वास: बचाए गए पीड़ितों को प्रायः अपने पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं होते, जिससे उनके समाज में पुनर्वास में कठिनाई होती है।
- अंतर-पीढ़ीगत बंधन: ऋण और दायित्व कभी-कभी पीढ़ियों तक चलते हैं, जिससे परिवार सेवा के चक्र में फँस जाते हैं।
आगे की राह
- मजबूत कानूनी प्रवर्तन:
- जिला स्तर पर विशेष कार्यबलों की स्थापना।
- 1976 अधिनियम का सख्ती से पालन, अनिवार्य एफआईआर, समयबद्ध परीक्षण और वास्तविक दंड।
- बंधुआ मजदूरी को संगठित अपराध के रूप में मान्यता दी जाए और आवश्यकता अनुसार नियोक्ताओं को मानव तस्करी अपराधी माना जाए।
- मानक संचालन प्रक्रियाएँ (SOP) और राज्य कार्य योजनाएँ:
- प्रत्येक राज्य को बचाव, पुनर्वास और बचाव पश्चात सहायता के लिए व्यापक SOP अपनाने का अनिवार्य किया जाए।
- बंधुआ मजदूरी की पहचान के लिए नियमित सर्वेक्षण को लागू किया जाए।
- मजबूत पुनर्वास ढांचा:
- बचाव के 30 दिनों के अन्दर तत्काल वित्तीय राहत।
- लाभार्थियों को रोजगार योजनाओं और आवास अधिकारों से जोड़ना।
- मृतक पीड़ितों के लिए भी रिहाई प्रमाण पत्र जारी करना।
- कमजोर समुदायों को सशक्त बनाना:
- अनुसूचित जाति/जनजाति समूहों के लिए विशेष सामाजिक संरक्षण योजनाओं का विकास।
- संस्थागत समन्वय में सुधार:
- प्रत्येक राज्य में बंधुआ मजदूरी के लिए एक नोडल विभाग की स्थापना।
- तकनीक और निगरानी उपकरण:
- बचाए गए श्रमिकों के लिए केंद्रीकृत डिजिटल डेटाबेस।
- 24×7 टोल-फ्री हेल्पलाइन और मोबाइल ऐप लॉन्च करना।
Source: TH
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