पाठ्यक्रम: GS2/ राजव्यवस्था और शासन; GS3/ आंतरिक सुरक्षा
संदर्भ
- महाराष्ट्र विधानमंडल ने वामपंथी उग्रवादी संगठनों या इसी तरह के संगठनों की कुछ गैरकानूनी गतिविधियों की प्रभावी रोकथाम के लिए महाराष्ट्र विशेष जन सुरक्षा विधेयक पारित किया है।
- छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और ओडिशा के पश्चात महाराष्ट्र पाँचवाँ राज्य है जिसने “ऐसे संगठनों की गैरकानूनी गतिविधियों की अधिक प्रभावी रोकथाम के लिए” जन सुरक्षा अधिनियम लागू किया है।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान
- संगठनों को ‘गैरकानूनी’ घोषित करना: राज्य सरकार बिना किसी सार्वजनिक सूचना या उचित प्रक्रिया सुरक्षा उपायों के उन संगठनों पर प्रतिबंध लगा सकती है जिन्हें वह गैरकानूनी मानती है।
- अभिव्यक्ति का अपराधीकरण: धारा 2(f) ऐसे भाषण, हाव-भाव या संकेतों को अपराध घोषित करती है जो “सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा डालते हैं या चिंता का कारण बनते हैं।”
- प्रतिबंध का बिना सीमा के विस्तार: एक बार प्रतिबंधित होने के पश्चात, किसी संगठन पर स्थायी रूप से प्रतिबंध लगाया जा सकता है क्योंकि समीक्षा के लिए कोई समय सीमा नहीं है।
- निचली अदालत का अधिकार क्षेत्र नहीं: निचली अदालतें इस अधिनियम के अंतर्गत मामलों की सुनवाई नहीं कर सकतीं, जिससे कानूनी चुनौतियाँ और कठिन हो जाती हैं।
- अधिकारियों को उन्मुक्ति: ‘सद्भावना’ से कार्य करने वाले सरकारी अधिकारियों को पूर्ण कानूनी संरक्षण प्रदान किया जाता है।
चिंताएँ और आलोचना
- अस्पष्ट परिभाषाएँ: ‘गैरकानूनी गतिविधि’ एवं ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ जैसे शब्दों का प्रयोग अस्पष्ट है, और श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) में निर्धारित सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, जिससे संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 को कमजोर किया जाता है।
- उचित प्रक्रिया में कमियां: गिरफ्तारी एवं जब्ती की शक्तियों का प्रयोग केवल संदेह के आधार पर किया जा सकता है, सीमित प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों और उच्च न्यायालय के माध्यम से अपील के विलंबित मार्गों के साथ।
- संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन: धारा 9-10 संपत्ति की बलपूर्वक जब्ती की अनुमति देती हैं। बिना किसी पूर्व न्यायिक निगरानी या मुआवज़े के, अनुच्छेद 300A को कमज़ोर करते हुए।
- असहमति का दमन: शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों, किसान समूहों, छात्र संघों और नागरिक अधिकार संगठनों को निशाना बनाया जा सकता है।
| नक्सलवादी आंदोलन क्या है? – उत्पत्ति: नक्सलवादी आंदोलन 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में आदिवासी और भूमिहीन समुदायों के अधिकारों के लिए एक उग्र वामपंथी विद्रोह के रूप में शुरू हुआ। – भौगोलिक विस्तार: यह विद्रोह तथाकथित रेड कॉरिडोर में फैला, जिसमें छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और केरल के कुछ हिस्से शामिल थे। – अपनाया गया दृष्टिकोण: नक्सली गुरिल्ला युद्ध का प्रयोग करते हैं, सरकारी संस्थाओं को निशाना बनाते हैं, स्थानीय आबादी से जबरन वसूली करते हैं और प्रायः बच्चों की भर्ती करते हैं। – वे हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए लड़ने का दावा करते हैं, लेकिन हिंसक तरीकों का सहारा लेते हैं। ![]() सरकारी पहल – सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) योजना: यह योजना ‘पुलिस बलों के आधुनिकीकरण’ की व्यापक योजना की एक उप-योजना के रूप में कार्यान्वित की जा रही है। – केंद्र सरकार वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों और निगरानी के लिए निर्धारित जिलों के सुरक्षा संबंधी व्यय की प्रतिपूर्ति करती है। – समाधान रणनीति: एक व्यापक दृष्टिकोण जिसमें स्मार्ट नेतृत्व, आक्रामक रणनीति, प्रेरणा और प्रशिक्षण, कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी, डैशबोर्ड-आधारित केपीआई और केआरए, प्रौद्योगिकी का उपयोग, प्रत्येक क्षेत्र के लिए कार्य योजनाएँ और वित्तपोषण तकgʻ पहुँच की कमी शामिल है। – किलेबंद पुलिस थानों की योजना: विगत 10 वर्षों में वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में 612 किलेबंद पुलिस थानों का निर्माण किया गया है। – आकांक्षी जिले: गृह मंत्रालय को 35 वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में आकांक्षी जिला कार्यक्रम की निगरानी का कार्य सौंपा गया है। – केंद्रित विकास सहायता: सर्वाधिक प्रभावित जिलों के लिए 30 करोड़ रुपये और चिंताजनक जिलों के लिए 10 करोड़ रुपये की विशेष केंद्रीय सहायता (एससीए) बुनियादी ढांचे की कमियों को पूरा कर रही है। |
Source: TH
Previous article
नीति आयोग द्वारा भारत की तृतीय स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा प्रस्तुत
Next article
संक्षिप्त समाचार 30-07-2025
