पाठ्यक्रम: GS2/IR
संदर्भ
- IAEA के प्रस्ताव में ईरान पर परमाणु अनुपालन न करने का आरोप लगाया गया (दो दशकों में प्रथम बार)। इसके बाद, इज़राइल ने ऑपरेशन राइजिंग लायन शुरू किया, जो ईरान के परमाणु और मिसाइल बुनियादी ढांचे को निशाना बनाने के लिए एक समन्वित सैन्य हमला है।
परिचय
- इज़राइली अधिकारियों ने इस अभियान को “अस्तित्व की लड़ाई” बताया है, जिसका उद्देश्य ईरान की दीर्घकालिक खतरा उत्पन्न करने की क्षमता को समाप्त करना है।
- 1979 में इस्लामी गणराज्य की स्थापना के पश्चात्, ईरान और इज़राइल संघर्ष में रहे हैं, लेकिन इज़राइल का हमला इस संघर्ष की एक महत्वपूर्ण वृद्धि दर्शाता है।

ईरान की प्रॉक्सी युद्ध रणनीति
- ईरान ने वर्षों से सशस्त्र गैर-राज्य समूहों का एक नेटवर्क विकसित किया है, जो उसे बिना सीधे युद्ध में उतरे प्रभाव बढ़ाने और इज़राइल को चुनौती देने में सहायता करता है। इनमें शामिल हैं:
- हमास (फ़िलिस्तीन), हिज़्बुल्लाह (लेबनान), हौती (यमन), और पॉपुलर मोबिलाइज़ेशन फ़ोर्सेस (PMF) (इराक)।
- इस प्रॉक्सी मॉडल ने ईरान को सक्षम बनाया है:
- अपने जोखिम और लागत को कम करने में।
- इज़राइल विरोधी कार्रवाइयों का समर्थन करते हुए इनकार की स्थिति बनाए रखने में।
- इज़राइली सैन्य क्षमताओं को कई मोर्चों पर उलझाए रखने में।
ईरान के प्रॉक्सी नेटवर्क का रणनीतिक प्रभाव
- इस रणनीति के माध्यम से ईरान ने अपनी सीमाओं से परे प्रभाव फैलाया है, जो भूमध्य सागर, लाल सागर और उत्तरी अरब सागर तक पहुंचता है।
- इस अप्रत्यक्ष युद्ध ने ईरान को अपनी भू-राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने में सहायता की, बिना बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई को आमंत्रित किए—अब तक।
इज़राइल की प्रॉक्सी समूहों के साथ निरंतर समस्या
- बार-बार ईरान समर्थित समूहों पर सैन्य हमले के बावजूद, इज़राइल उन्हें पूरी तरह समाप्त या निष्प्रभावी करने में असमर्थ रहा है। उदाहरण के लिए:
- हमास गाजा में इज़राइली सैन्य कार्रवाई के बावजूद सक्रिय बना हुआ है।
- हिज़्बुल्लाह अब भी लेबनान से खतरा उत्पन्न कर रहा है।
- हौती गुट सैन्य हमलों के बावजूद यमन में मजबूती बनाए हुए हैं।
- इन गुटों में हमास को छोड़कर अधिकांश ईरान से हथियार और प्रशिक्षण के मामले में भारी समर्थन प्राप्त करते हैं।
इज़राइल की सैन्य रणनीति में बदलाव
- इज़राइल ने निष्कर्ष निकाला है कि इन प्रॉक्सी गुटों को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाना पर्याप्त नहीं है।
- नई रणनीति का लक्ष्य मूल समस्या—ईरान है, जो “प्रतिरोध की धुरी” को समर्थन और पोषण देता है।
- 2024 में दोनों देशों के बीच विगत प्रत्यक्ष संघर्षों से सामरिक संतुलन नहीं बदला, लेकिन यह स्पष्ट हुआ कि कई क्षेत्रीय देश ईरान विरोधी इज़राइली दृष्टिकोण का मौन समर्थन करते हैं।
ईरान-इज़राइल संघर्ष के प्रभाव
- प्रॉक्सी संघर्षों का विस्तार: ईरान के क्षेत्रीय प्रॉक्सी—हमास, हिज़्बुल्लाह, हौती और PMF—प्रतिशोध ले सकते हैं, जिससे मध्य पूर्व में एक व्यापक युद्ध छिड़ सकता है।
- अस्थिर राज्यों में हिंसा का उबाल: लेबनान, इराक, सीरिया एवं यमन आंतरिक राजनीतिक अराजकता और मानवीय संकट का सामना कर सकते हैं।
- समुद्री असुरक्षा: होर्मुज़ जलडमरूमध्य, बाब अल-मंडब एवं पूर्वी भूमध्यसागर खतरे में पड़ सकते हैं, जिससे वैश्विक व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति बाधित हो सकती है।
- तेल की कीमतों में उछाल: ईरान—एक प्रमुख तेल उत्पादक—के युद्ध में शामिल होने से वैश्विक तेल निर्यात बाधित हो सकता है, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
- ईरान परमाणु समझौते (JCPOA) का पतन: परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने के प्रयास विफल हो सकते हैं, जिससे शांतिपूर्ण समाधान की संभावना समाप्त हो सकती है।
- ईरान का दृढ़ संकल्प मजबूत होना: इज़राइली हमलों से ईरान को अपने परमाणु कार्यक्रम को तेजी से आगे बढ़ाने का अवसर मिल सकता है।
- क्षेत्रीय परमाणु प्रतिस्पर्धा: सऊदी अरब जैसे खाड़ी देश परमाणु हथियार क्षमता प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
- क्षेत्रीय गठबंधनों का पुनर्संयोजन: ईरानी आक्रामकता से भयभीत अरब देश इज़राइल के साथ सहयोग को गहरा कर सकते हैं।
- भारत की रणनीतिक और आर्थिक चिंताएँ:
- भारत के 60% से अधिक कच्चे तेल की आपूर्ति मध्य पूर्व से आती है; अस्थिरता से आपूर्ति बाधित और चालू खाता घाटा बढ़ सकता है।
- लाखों भारतीय नागरिक खाड़ी देशों में काम करते हैं; युद्ध बढ़ने पर आपातकालीन निकासी और प्रेषण संकट उत्पन्न हो सकता है।
- भारत को इज़राइल, ईरान और अरब देशों के बीच संतुलन बनाए रखते हुए अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करनी होगी।
Source: IE
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