पाठ्यक्रम: GS4/ एथिक्स
संदर्भ
- उपयोगकर्ताओं ने एआई को सहानुभूतिपूर्ण, सहायक बताया और ये प्रतिक्रियाएं एक गहरे सामाजिक मुद्दे को रेखांकित करती हैं: बढ़ता अकेलापन और मानवीय भावनात्मक अंतराल को भरने में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की बढ़ती भूमिका।
एआई साथीपन का विचार
- पैरासोशल संबंधों का पुनर्जन्म: पहले यह शब्द मशहूर हस्तियों के साथ एकतरफा संबंधों के लिए प्रयोग होता था।
- एआई चैटबॉट्स के साथ यह संबंध द्विपक्षीय प्रतीत होता है, हालांकि वास्तव में केवल एक पक्ष जीवित होता है।
- सहानुभूति का भ्रम: चैटबॉट्स को व्यक्तिगत विवरण याद रखने, पुष्टि देने और धैर्य का अनुकरण करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। यह गर्मजोशी स्वाभाविक नहीं बल्कि कृत्रिम रूप से निर्मित होती है।
वर्तमान प्रासंगिकता
- एक सामाजिक संकट के रूप में अकेलापन: अत्यधिक कनेक्टिविटी के बावजूद, लोगों के पास समय और सार्थक श्रोता की कमी है।
- एक लाभकारी प्लेसीबो के रूप में तकनीक: कंपनियाँ एआई साथी, मित्र या मार्गदर्शक के रूप में बाज़ार में उतारकर साथीपन का मुद्रीकरण करती हैं।
- मानव त्रुटियाँ—अधीरता, टकराव, पक्षपात—हटा दी जाती हैं, जिससे एआई एक “परिपूर्ण” विकल्प प्रतीत होता है।
- एक अरब डॉलर का बाज़ार: नास्टिआ जैसे ऐप्स अनसेंसर्ड रोमांटिक एआई विकल्प प्रदान करते हैं, जिनमें चेहरा, आवाज़ और व्यक्तित्व को अनुकूलित किया जा सकता है।
कानूनी और नैतिक आयाम
- वैश्विक समानताएँ: कुछ क्षेत्रों में निगमों को कानूनी व्यक्तित्व प्राप्त है; नदियों और जानवरों को भी।
- यदि यह अधिकार एआई को दिया जाए तो कानूनी ढांचे में मौलिक परिवर्तन होगा।
- जोखिम: भावनात्मक निर्भरता, वास्तविकता और भ्रम की सीमाओं का धुंधलापन, और संवेदनशील व्यक्तियों का शोषण।
भारत के लिए प्रभाव
- सामाजिक: भारत में बढ़ते शहरी अकेलेपन और मानसिक स्वास्थ्य संकट के चलते एआई साथियों की मांग तीव्रता से बढ़ सकती है।
- आर्थिक: स्वास्थ्य सेवा, वृद्ध देखभाल, शिक्षा और मनोरंजन में एआई-आधारित स्टार्टअप्स की संभावनाएँ हैं—लेकिन अत्यधिक निर्भरता का जोखिम भी है।
- नियामक: भारत में एआई अधिकार या व्यक्तित्व का स्पष्ट ढांचा नहीं है।
- वर्तमान नीति डेटा सुरक्षा, पक्षपात और जवाबदेही पर केंद्रित है, साथीपन पर नहीं।
- नैतिक: प्रश्न यह है—क्या एआई को मानव संबंधों की जगह लेने की अनुमति दी जानी चाहिए, विशेष रूप से उस समाज में जो पहले से ही सामाजिक विखंडन का सामना कर रहा है?
आगे की राह
- नियामक सुरक्षा: भारत को स्पष्ट रूप से यह परिभाषित करना चाहिए कि एआई को अधिकार या व्यक्तित्व नहीं दिया जा सकता, साथ ही एआई साथीपन ऐप्स में उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करना चाहिए।
- मानसिक स्वास्थ्य समर्थन: एआई उपकरण पूरक हो सकते हैं, लेकिन पेशेवर सहायता का विकल्प नहीं।
- जागरूकता अभियान अत्यधिक निर्भरता के प्रति सावधानी बरतने चाहिए।
- नैतिक डिज़ाइन: डेवलपर्स को ऐसे विशेषताओं से बचना चाहिए जो निर्भरता को गहरा करें।
- एआई की गैर-सजीवता की पारदर्शिता अनिवार्य होनी चाहिए।
- सामाजिक सुधार: अकेलेपन से निपटने के लिए सामुदायिक स्थानों को सुदृढ़ करना, कार्य-जीवन संतुलन और सामाजिक सुरक्षा तंत्र को सुदृढ़ करना आवश्यक है—केवल तकनीकी समाधान पर्याप्त नहीं हैं।
Source: IE
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