मानसून की तीव्रता के बीच उर्वरक की कमी

पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • 2025 में दक्षिण-पश्चिम मानसून का संतुलित वितरण खरीफ बुवाई को बढ़ावा देने के साथ-साथ उर्वरकों की मांग में अभूतपूर्व वृद्धि का कारण बना है।

उर्वरक बिक्री पर प्रभाव  

  • अच्छा मानसून मृदा की आर्द्रता, जलाशयों की भराई और भूजल पुनर्भरण सुनिश्चित करता है, जिससे अधिक बुवाई होती है और उसी अनुपात में उर्वरकों का उपयोग भी बढ़ता है।  
  • उर्वरक फसलों की वृद्धि के लिए अनिवार्य पोषक तत्व प्रदान करते हैं — जैसे नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), पोटैशियम (K) और सल्फर (S)।  
  • भारत वैश्विक स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा उर्वरक उपभोक्ता और तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • आपूर्ति-पक्ष की बाधाएँ  
    • मांग में तीव्र वृद्धि हुई, लेकिन आपूर्ति उसकी बराबरी नहीं कर सकी।  
    • घरेलू यूरिया उत्पादन अप्रैल–जुलाई 2024 में 102.1 लाख टन से घटकर अप्रैल–जुलाई 2025 में 93.6 लाख टन रह गया, जबकि DAP उत्पादन 13.7 लाख टन पर स्थिर रहा।  
    • आयात में भी गिरावट आई है, मुख्यतः चीन से आपूर्ति प्रतिबंधों के कारण, जो भारत को उर्वरक निर्यात करने वाला प्रमुख देश रहा है।

उर्वरकों की सब्सिडी संरचना और मूल्य निर्धारण की गतिशीलता  

  • यूरिया सब्सिडी योजना: इस योजना के अंतर्गत किसानों को यूरिया एक निर्धारित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उपलब्ध कराया जाता है। 45 किलोग्राम यूरिया की थैली का MRP ₹242 है (नीम कोटिंग और लागू करों को छोड़कर), जबकि वास्तविक लागत लगभग ₹3,000 प्रति थैली है।
  • पोषक तत्व आधारित सब्सिडी नीति: इसका उद्देश्य उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना है, जिसमें सब्सिडी को अंतिम उत्पाद के बजाय पोषक तत्वों (N, P, K, S) की मात्रा से जोड़ा जाता है।
    • इस योजना के अंतर्गत सरकार प्रत्येक पोषक तत्व के लिए प्रति किलोग्राम एक निश्चित सब्सिडी राशि निर्धारित करती है।
  • वित्तीय वर्ष 2025–26 के बजट में:
    • यूरिया सब्सिडी ₹1.19 लाख करोड़ निर्धारित की गई है।
    • NPK सब्सिडी लगभग ₹0.49 लाख करोड़ निर्धारित की गई है। यह सरकार की विशाल राजकोषीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

उर्वरक क्षेत्र में सरकार की पहलें  

  • पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (NBS) योजना: 2010 में फॉस्फेटिक और पोटैशिक उर्वरकों के लिए शुरू की गई।
    • इस योजना के अंतर्गत DAP सहित P और K उर्वरकों को उनके पोषक तत्वों की मात्रा के आधार पर सब्सिडी दी जाती है।
  •  वन नेशन वन फर्टिलाइज़र योजना: उर्वरक क्षेत्र में ब्रांडिंग की एकरूपता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए शुरू की गई।
  •  PM PRANAM योजना: “PM मातृ-पृथ्वी के पुनरुद्धार, जागरूकता सृजन, पोषण और सुधार के लिए कार्यक्रम(PMPRANAM)” इस योजना का उद्देश्य राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को वैकल्पिक उर्वरकों और रासायनिक उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करना है।

आगे की राह  

  • पूर्वानुमान आधारित मांग योजना: अच्छे मानसून वाले वर्षों में उर्वरक की कमी से बचने के लिए फसल क्षेत्र के पैटर्न के अनुसार उर्वरक आवंटन को समन्वित करना आवश्यक है।
  •  विविध आयात स्रोत: DAP और यूरिया के लिए चीन पर अत्यधिक निर्भरता से असुरक्षा उत्पन्न होती है; कई आपूर्तिकर्ताओं के साथ दीर्घकालिक अनुबंध आवश्यक हैं।
  •  क्षमता विस्तार: “आत्मनिर्भर भारत” के अंतर्गत घरेलू यूरिया संयंत्रों की शीघ्र स्थापना से आयात पर निर्भरता कम होगी।
  •  सतत कृषि पद्धतियाँ: नैनो-यूरिया, जैविक उर्वरक और मृदा स्वास्थ्य कार्ड का व्यापक उपयोग समय के साथ रासायनिक उर्वरकों की तीव्रता को कम कर सकता है।

Source: IE

 

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