राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस 2025

पाठ्यक्रम: GS3/ विज्ञान और प्रौद्योगिकी

संदर्भ

  • भारत 23 अगस्त 2025 को अपना द्वितीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस मना रहा है, जिसका विषय है: “आर्यभट्ट से गगनयान: प्राचीन ज्ञान से अनंत संभावनाएं”।
    • 23 अगस्त को “राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस” घोषित किया गया था ताकि चंद्रयान-3 मिशन की सफलता को सम्मानित किया जा सके, जिसने विक्रम लैंडर को ‘शिव शक्ति’ बिंदु पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग कराई और प्रज्ञान रोवर को चंद्र सतह पर तैनात किया।

भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र 

  • भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को दशकों की निरंतर निवेश नीति से लाभ मिला है, विगत दशक में $13 बिलियन का निवेश हुआ, जिससे लगभग $60 बिलियन का GDP योगदान प्राप्त हुआ।
  • अंतरिक्ष क्षेत्र की संभावनाएं
    • निर्यात क्षमता और निवेश: वर्तमान में भारत की अंतरिक्ष सेवाओं में निर्यात बाजार हिस्सेदारी ₹2,400 करोड़ ($0.3 बिलियन) है। इसमें ₹88,000 करोड़ ($11 बिलियन) तक वृद्धि करने का लक्ष्य है।
    • अंतरिक्ष पर्यटन का उदय: 2023 में अंतरिक्ष पर्यटन बाजार का मूल्य $848.28 मिलियन था। यह 2032 तक $27,861.99 मिलियन तक पहुंचने की संभावना है।
    • रोजगार सृजन: अंतरिक्ष क्षेत्र ने सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में 96,000 रोजगारों का समर्थन किया है।
      • प्रत्येक डॉलर के उत्पादन पर भारतीय अर्थव्यवस्था में $2.54 का गुणक प्रभाव पड़ा और भारत की अंतरिक्ष कार्यबल देश की सामान्य औद्योगिक कार्यबल की तुलना में 2.5 गुना अधिक उत्पादक रही।

भारत की हालिया उपलब्धियाँ 

  • मानव अंतरिक्ष उड़ान में प्रगति: ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला Axiom Mission-4 के अंतर्गत ISS (अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन) पर जाने वाले प्रथम भारतीय बने। यह भारत के प्रथम मानव अंतरिक्ष मिशन ‘गगनयान’ का अग्रदूत माना जा रहा है।
  • NASA-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR) उपग्रह: यह उपग्रह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया।
    • NISAR प्रथम ऐसा उपग्रह मिशन है जो दो माइक्रोवेव बैंडविथ क्षेत्रों—L-बैंड और S-बैंड—में रडार डेटा एकत्र करता है।
  • चंद्रयान कार्यक्रम:
    • चंद्रयान-1 (2008): चंद्रमा पर जल अणुओं की पुष्टि की।
    • चंद्रयान-2 (2019): लैंडर विफलता के बावजूद मूल्यवान ऑर्बिटर डेटा प्रदान किया।
    • चंद्रयान-3 (2023): चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट-लैंडिंग करने वाला विश्व का प्रथम मिशन।
  • मंगल ऑर्बिटर मिशन (2013–2021):
  • प्रथम एशियाई मिशन जिसने प्रथम प्रयास में मंगल की कक्षा प्राप्त की।
  • 7 वर्षों से अधिक समय तक वायुमंडलीय और स्थलाकृतिक डेटा प्रदान किया।

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र की चुनौतियाँ

  • प्रतिस्पर्धा और वैश्विक बाजार हिस्सेदारी: वैश्विक बाजार में 8% हिस्सेदारी प्राप्त करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी प्रतिस्पर्धा करनी होगी।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: निजी क्षेत्र ने रुचि दिखाई है, लेकिन अधिक निवेश और प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।
  • प्रौद्योगिकी विकास और नवाचार: पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहन, लघु उपग्रह और उन्नत प्रणोदन प्रणालियों जैसी अत्याधुनिक तकनीकों के विकास के लिए भारी निवेश और अनुसंधान की आवश्यकता है।
  • नियामक ढांचा और लाइसेंसिंग: लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं, निर्यात नियंत्रण और अनुपालन को नेविगेट करना जटिल हो सकता है।
  • अवसंरचना और सुविधाएं: ऐसी अवसंरचना का विकास और रखरखाव करने के लिए पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता होती है।

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रमुख सुधार

  • IN-SPACe की स्थापना (2020): भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र एकल-खिड़की नियामक और सुविधा प्रदाता के रूप में कार्य करता है, जो निजी कंपनियों को अंतरिक्ष गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति और प्रोत्साहन देता है।
  • न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (2019) के माध्यम से निगमीकरण: इसे ISRO की वाणिज्यिक शाखा के रूप में स्थापित किया गया ताकि तकनीक का हस्तांतरण, उपग्रह/लॉन्च वाहन का निर्माण उद्योग के माध्यम से किया जा सके और वाणिज्यिक उपग्रह सेवाएं प्रदान की जा सकें।
  • भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023: इसने ISRO, NSIL और निजी क्षेत्र की संस्थाओं की भूमिकाएं और जिम्मेदारियाँ निर्धारित कीं।
    • इसका उद्देश्य अनुसंधान, अकादमिक संस्थानों, स्टार्टअप्स और उद्योग की भागीदारी को बढ़ाना है।
  • FDI मानदंडों का उदारीकरण (2024): सरकार ने अंतरिक्ष क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश नियमों को आसान बनाया ताकि वैश्विक पूंजी और तकनीक को आकर्षित किया जा सके, विशेष रूप से उपग्रह निर्माण और लॉन्च सेवाओं में।

आगे की राह

  • भारत का लक्ष्य है कि 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) की स्थापना की जाए और 2040 तक भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर उतारा जाए।
  • सततता और अंतरिक्ष शासन: उत्तरदायी कक्षीय व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए मलबा-मुक्त अंतरिक्ष मिशन (DFSM) पहल को सख्ती से लागू किया जाए।
  • स्वदेशी तकनीक को बढ़ावा: पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहन (RLVs), छोटे उपग्रह लॉन्चर और हरित प्रणोदन प्रणालियों को प्राथमिकता दी जाए।
    • गहन अंतरिक्ष संचार नेटवर्क और क्वांटम-एन्क्रिप्टेड उपग्रह संचार में निवेश किया जाए।

Source: AIR

 

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