एक ऐतिहासिक निर्णय में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य विधायी प्रक्रियाओं में राज्यपालों की संवैधानिक भूमिका को फिर से परिभाषित किया है। यह सहकारी संघवाद और जवाबदेही के सिद्धांतों पर बल देता है, यह सुनिश्चित करता है कि राज्यपाल संवैधानिक ढाँचे के भीतर कार्य करें।