रत्नागिरी के अवशेष: बौद्ध विरासत

पाठ्यक्रम: GS1/कला और संस्कृति

संदर्भ

  • पुरातत्वविदों ने दिसंबर 2023 में ओडिशा के रत्नागिरी में 1.4 मीटर ऊँचे बुद्ध के सिर के साथ-साथ 1,500 वर्ष पुरानी पट्टिकाएँ और स्तूप खोजे हैं। यह महत्त्वपूर्ण खोज रत्नागिरी को वज्रयान (तांत्रिक बौद्ध धर्म) के एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित करती है, जो छठीं से बारहवीं शताब्दी ई. के बीच फला-फूला।
    • हाल ही में हुई खुदाई प्राचीन बौद्ध विश्व में रत्नागिरी के कलात्मक, आध्यात्मिक और शैक्षिक महत्त्व पर प्रकाश डालती है।

रत्नागिरी का ऐतिहासिक महत्त्व

  • रत्नागिरी, जिसका अर्थ है ‘रत्नों की पहाड़ी’, छठीं से बारहवीं शताब्दी ई. के बीच गुप्त एवं गुप्तोत्तर शासकों के संरक्षण में फली-फूली।
  • यह ओडिशा में बौद्ध स्थलों के व्यापक नेटवर्क का भाग था, साथ ही ललितगिरि और उदयगिरि भी बौद्ध विरासत के ‘हीरक त्रिभुज’ का निर्माण करते थे।
    • शिलालेखों, बोधिसत्वों की छवियों और स्तूपों की उपस्थिति से संकेत मिलता है कि रत्नागिरी वज्रयान बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र था।
  • ऐसा माना जाता है कि इस स्थल ने भारत और उसके बाहर, विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म के प्रचार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
रत्नागिरी का ऐतिहासिक महत्त्व

अवशेष और कलाकृतियाँ

  • पवित्र स्तूप और अवशेष एकत्रण: अवशेष ताबूतों की उपस्थिति, जिनमें कभी-कभी हड्डियों के टुकड़े, मोती या शिलालेख होते हैं, इन संरचनाओं से जुड़ी मजबूत धार्मिक श्रद्धा का सुझाव देते हैं।
  • मठ (विहार) और आवासीय परिसर: रत्नागिरी में दो अच्छी तरह से संरक्षित मठ (विहार) हैं, जो बौद्ध शिक्षा और ध्यान के केंद्र के रूप में कार्य करते थे।
    • बड़े मठ में एक भव्य प्रवेश द्वार, एक विशाल प्रांगण और भिक्षुओं के लिए कई कक्ष हैं।
    • इन मठों की दीवारें जटिल नक्काशी से सजी हैं, जिनमें तारा, अवलोकितेश्वर और मंजुश्री जैसे देवताओं के चित्रण शामिल हैं।
  • उत्कृष्ट बौद्ध मूर्तियाँ:
    • भूमिस्पर्श मुद्रा (पृथ्वी को छूने वाली मुद्रा) में बैठे हुए बुद्ध, जो ज्ञान का प्रतीक है।
    • ध्यानी बुद्ध बौद्ध दर्शन के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • अवलोकितेश्वर और मैत्रेय जैसे बोधिसत्वों की छवियाँ।
    • तारा जैसी देवी, तांत्रिक बौद्ध धर्म के प्रभाव को दर्शाती हैं।
  • शिलालेख और ताम्रपत्र: ब्राह्मी और संस्कृत लिपियों में कई शिलालेख खोजे गए हैं, जो मूल्यवान ऐतिहासिक अभिलेख प्रदान करते हैं।
    • इन शिलालेखों में बौद्ध राजाओं के संरक्षण, मठों को दिए गए दान और रत्नागिरी में अपनाई गई शिक्षाओं का उल्लेख है।
    • कुछ शिलालेख नालंदा और विक्रमशिला जैसे दूर के बौद्ध केंद्रों के साथ संबंधों का संकेत देते हैं।
  • टेराकोटा मुहरें और पांडुलिपियाँ: उत्खनन से टेराकोटा मुहरें भी मिली हैं जिन पर ‘श्री रत्नागिरी महाविहारीय आर्य भिक्षु संघस्य’ लिखा हुआ है, जो दर्शाता है कि रत्नागिरी एक महत्त्वपूर्ण मठयुक्त विश्वविद्यालय था।
    • प्राचीन पांडुलिपियों के टुकड़े शास्त्र अध्ययन और बौद्ध शिक्षा की उपस्थिति का सुझाव देते हैं।

वज्रयान बौद्ध धर्म में रत्नागिरी की भूमिका (एक तांत्रिक रूप)

  • वज्रयान देवताओं के अनेक चित्रण और गूढ़ बौद्ध प्रतीकों की उपस्थिति से पता चलता है कि यह स्थल तांत्रिक बौद्ध प्रथाओं का एक प्रमुख केंद्र था। 
  • ऐसा माना जाता है कि रत्नागिरी ने पूरे भारत और उसके बाहर से विद्वानों, भिक्षुओं एवं साधकों को आकर्षित किया, जिससे बौद्ध दर्शन के प्रसार में योगदान मिला।
हीनयान और महायान बौद्ध धर्म
– कुषाण राजा कनिष्क के संरक्षण में कश्मीर में आयोजित चतुर्थ बौद्ध संगीति (72 ई.) में बौद्ध धर्म को दर्शन, व्यवहार और बौद्ध शिक्षाओं की व्याख्या में मतभेद के कारण हीनयान एवं महायान संप्रदायों में विभाजित कर दिया गया था।
हीनयान बौद्ध धर्म (छोटे वाहन, उर्फ ​​थेरवाद बौद्ध धर्म)
– यह बुद्ध की शिक्षाओं का सख्ती से पालन करके व्यक्तिगत ज्ञान (अरहत आदर्श) पर बल देता है। यह मठवासी अनुशासन और सबसे पुराने बौद्ध धर्मग्रंथों (पाली कैनन या त्रिपिटक) पर केंद्रित है। 
बुद्ध का दृष्टिकोण: ऐतिहासिक शिक्षक यह श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, लाओस एवं कंबोडिया में प्रचलित है, और इसे प्रायः इसका जीवित प्रणाली माना जाता है।
महायान बौद्ध धर्म (महायान)
– इसे बाद में (लगभग पहली शताब्दी ईसा पूर्व) विकसित किया गया था, जिसमें करुणा और बोधिसत्व आदर्श (सभी प्राणियों के लिए ज्ञान की खोज यानी सार्वभौमिक ज्ञान या बोधिसत्व मार्ग) पर बल दिया गया था। इसमें पाली कैनन से परे कई ग्रंथ शामिल हैं, जैसे लोटस सूत्र और प्रज्ञापारमिता सूत्र (संस्कृत और चीनी ग्रंथ)। 
बुद्ध का दृष्टिकोण: दिव्य आकृति, कई बुद्ध चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत और वियतनाम में फैले, जिससे ज़ेन, प्योर लैंड एवं वज्रयान जैसी आगे की शाखाएँ बनीं।

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Source: TH

 

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