श्वेत क्रांति 2.0

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था

सन्दर्भ

  • केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने ‘श्वेत क्रांति 2.0’ के लिए मानक संचालन प्रक्रिया का शुभारंभ किया।

परिचय

  • सरकार ने दो लाख नई बहुउद्देशीय प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों, डेयरी तथा मत्स्य सहकारी समितियों के गठन और सुदृढ़ीकरण पर एक कार्य योजना भी शुरू की।
  •  श्वेत क्रांति 2.0 चार प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित है – महिला किसानों को सशक्त बनाना, स्थानीय दूध उत्पादन को बढ़ाना, डेयरी बुनियादी ढांचे को मजबूत करना और डेयरी निर्यात को बढ़ावा देना। 
  • श्वेत क्रांति 2.0 का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में डेयरी सहकारी समितियों द्वारा दूध की खरीद में 50 प्रतिशत की वृद्धि करना है।
    •  डेयरी सहकारी समितियां पांचवें वर्ष के अंत तक प्रतिदिन एक हजार लाख लीटर दूध खरीदेगी, जिससे ग्रामीण उत्पादकों की आजीविका में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। 
  • इस योजना में 100,000 नई और मौजूदा जिला सहकारी समितियों, बहुउद्देशीय जिला सहकारी समितियों और बहुउद्देशीय PACS की स्थापना और उन्हें मजबूत करना शामिल है, जिन्हें आवश्यक बुनियादी ढांचे के साथ दूध मार्गों से जोड़ा जाएगा।

श्वेत क्रांति

  • भारत में श्वेत क्रांति, जिसे ऑपरेशन फ्लड के नाम से भी जाना जाता है, दूध उत्पादन को बढ़ाने और देश में दूध की कमी की समस्या को दूर करने के लिए लागू किया गया एक महत्वपूर्ण डेयरी विकास कार्यक्रम था। 
  • इसे 1970 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) द्वारा डॉ. वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में शुरू किया गया था, जिन्हें प्रायः “श्वेत क्रांति का जनक” कहा जाता है।

श्वेत क्रांति की प्रमुख विशेषताएं और उपलब्धियां:

  • सहकारी मॉडल: इसने डेयरी उद्योग में सहकारी मॉडल की शुरुआत की, जिससे किसानों को डेयरी सहकारी समितियाँ बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
  • अमूल: श्वेत क्रांति का सबसे प्रमुख परिणाम गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ (GCMMF) की सफलता थी, जिसने अपने उत्पादों को अमूल ब्रांड नाम से विपणन किया।
  • दूध उत्पादन में वृद्धि: इस कार्यक्रम ने पशुधन की गुणवत्ता में सुधार करके देश भर में दूध उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि की।
  • बुनियादी ढांचे का विकास: बढ़ते डेयरी उद्योग को समर्थन देने के लिए दूध प्रसंस्करण संयंत्र, कोल्ड स्टोरेज सुविधाएँ और परिवहन नेटवर्क जैसे बुनियादी ढाँचे विकसित किए गए।
  • आर्थिक प्रभाव: इसने डेयरी फार्मिंग में शामिल किसानों की आय को बढ़ावा दिया, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र आर्थिक विकास में योगदान मिला।
  • अन्य राज्यों में भी इसका अनुकरण: गुजरात में ऑपरेशन फ्लड की सफलता ने अन्य राज्यों में भी इसके अनुकरण को बढ़ावा दिया, जिससे पूरे भारत में श्वेत क्रांति की पहुँच और प्रभाव का अधिक विस्तार हुआ।

भारत में डेयरी क्षेत्र

  • उत्पादन: भारत विश्व में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो 2021-22 में वैश्विक दूध उत्पादन में 24% का योगदान देता है।
    • देश के शीर्ष 5 दूध उत्पादक राज्य हैं: राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और आंध्र प्रदेश। ये सभी मिलकर देश के कुल दूध उत्पादन में 53.11% का योगदान करते हैं।
भारत में डेयरी क्षेत्र
  • मूल्य-वर्धित उत्पाद: भारत में डेयरी क्षेत्र ने तरल दूध से आगे बढ़कर मक्खन, घी, पनीर, दही और आइसक्रीम जैसे विभिन्न मूल्य-वर्धित उत्पादों का उत्पादन करने के लिए विविधता लाई है। 
  • अर्थव्यवस्था: यह उद्योग राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5% का योगदान देता है और प्रत्यक्षतः 8 करोड़ से अधिक किसानों का समर्थन करता है। यह क्षेत्र विशेष रूप से महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण रोजगार प्रदाता है, और महिला सशक्तिकरण में अग्रणी भूमिका निभाता है।

भारत में डेयरी क्षेत्र की चुनौतियाँ

  • कम उत्पादकता: पशुओं की गुणवत्ता दूध उत्पादकता और इस प्रकार समग्र उत्पादन को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण है।
    • विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक होने के बावजूद, प्रति पशु भारत की उत्पादकता वैश्विक औसत की तुलना में बहुत कम है।
  • पशु स्वास्थ्य और प्रजनन सेवाओं का प्रावधान: रोग, उचित प्रजनन पद्धतियों की कमी और अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ जैसे मुद्दे पशुधन के समग्र स्वास्थ्य और गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
  • चारा संसाधनों की कमी: गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए विनियमनों की कमी है। सुसंगत नीति के अभाव में, बाजार में सभी प्रकार के घटिया फ़ीड उपलब्ध हैं।
  • बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ: अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे जैसे कि मजबूत कोल्ड चेन की कमी के कारण दूध और डेयरी उत्पाद खराब हो जाते हैं, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ बिजली की आपूर्ति अनियमित है।
  • प्रौद्योगिकी अपनाना: किसानों में जागरूकता, शिक्षा और प्रशिक्षण की कमी कृत्रिम गर्भाधान, कुशल आहार विधियों तथा रोग प्रबंधन जैसी उन्नत प्रथाओं के कार्यान्वयन में बाधा डालती है।
  • बाजार में उतार-चढ़ाव और मूल्य अस्थिरता: दूध के लिए स्थिर और लाभकारी कीमतों की कमी डेयरी किसानों की आय को प्रभावित करती है, जिससे उनके लिए अपने संचालन की योजना बनाना और निवेश करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • गुणवत्ता मानक: यह सुनिश्चित करने के लिए कि उत्पाद घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को पूरा करते हैं, गुणवत्ता नियंत्रण उपायों और स्वच्छता प्रथाओं के पालन में निवेश की आवश्यकता होती है।

डेयरी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन: इसे स्वदेशी मवेशियों की नस्लों के संरक्षण और विकास के लिए 2014 में शुरू किया गया था।
    • उद्देश्य: देशी मवेशियों की उत्पादकता और आनुवंशिक सुधार को बढ़ाना।
  • राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (NPDD): NPDD 2014 से लागू है और इसका उद्देश्य उच्च गुणवत्ता वाले दूध के उत्पादन के साथ-साथ राज्य सहकारी डेयरी संघ के माध्यम से दूध तथा दूध उत्पादों की खरीद, प्रसंस्करण एवं विपणन के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण या सुदृढ़ीकरण करना है।
  •  डेयरी उद्यमिता विकास योजना (DEDS): डेयरी उद्योग में स्वरोजगार के अवसर सृजित करने के लिए पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग द्वारा DEDS को लागू किया जा रहा है।
    • यह छोटे से मध्यम स्तर के डेयरी उद्यम स्थापित करने के लिए व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है। 
    • राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक इस कार्यक्रम को चला रहा है।
  •  राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP): यह 100% मवेशियों, भैंसों, भेड़, बकरी और सूअरों की जनसँख्या का टीकाकरण करके खुरपका और मुंहपका रोग और ब्रुसेलोसिस के नियंत्रण के लिए 2019 में शुरू की गई एक प्रमुख योजना है।
  •  राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM): कृषि मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए NLM का उद्देश्य डेयरी फार्मिंग सहित पशुधन क्षेत्र का सतत विकास सुनिश्चित करना है।
    •  इसका ध्यान पशुधन की उत्पादकता बढ़ाने, उनके स्वास्थ्य में सुधार लाने तथा चारा एवं खाद्य संसाधनों के लिए सहायता उपलब्ध कराने पर केंद्रित है।

आगे की राह

  • गांठदार त्वचा रोग से होने वाली मृत्यु जैसी स्थितियों पर नियंत्रण पाने के लिए टीकाकरण अभियान को तेज़ करना।
  •  दूध और दूध उत्पादों की मांग को बनाए रखने के लिए आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान को दूर करने के लिए मजबूत तथा प्रभावी मूल्य श्रृंखला। 
  • समन्वित तरीके से रणनीतियों को लागू करके, भारत में दूध उत्पादन की लागत को कम करना संभव है, साथ ही डेयरी किसानों की आजीविका में सुधार करना और एक सतत तथा संपन्न डेयरी उद्योग सुनिश्चित करना।

Source: TH