पाठ्यक्रम: GS1/ भारतीय भूगोल, GS3/पर्यावरण
समाचार में
- पर्यावरण मंत्री ने नेपाल में प्रथम सगरमाथा संवाद को संबोधित किया, जिसमें हिमालय सहित संवेदनशील पर्वतीय पारिस्थितिकी प्रणालियों की रक्षा के लिए पाँच सूत्रीय वैश्विक कार्य योजना प्रस्तुत की गई।
संबोधन की प्रमुख बातें
- “सागरमाथा”, जिसका अर्थ है ‘आकाश का सिर’, पर्वतीय पारिस्थितिकी प्रणालियों की भव्यता और उनकी रक्षा की जिम्मेदारी दोनों का प्रतीक है। संवाद का नाम विश्व की सबसे ऊँची पर्वत चोटी सगरमाथा (माउंट एवरेस्ट) से प्रेरित है।
- उन्होंने भारत और उसके हिमालयी पड़ोसी देशों के बीच सांस्कृतिक और पारिस्थितिक संबंधों पर बल दिया।
- दक्षिण एशिया में वैश्विक जनसंख्या का 25% भाग रहता है, लेकिन इसका ऐतिहासिक CO₂ उत्सर्जन मात्र 4% है। फिर भी, भारत जैसे विकासशील देश जलवायु परिवर्तन के असंतुलित प्रभावों का सामना कर रहे हैं।
- विकसित देश जलवायु वित्तपोषण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण में वांछित योगदान नहीं कर रहे हैं।
- उन्होंने हिम तेंदुए, बाघ और अन्य प्रजातियों की रक्षा हेतु अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट्स एलायंस के अंतर्गत सीमा-पार सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया और परियोजना स्नो लेपर्ड में भारत की प्रगति को दोहराया।
भारत द्वारा प्रस्तावित पाँच सूत्रीय वैश्विक कार्य योजना
- विज्ञान सहयोग को बढ़ावा देना: अनुसंधान सहयोग को मजबूत करना, हिमनद परिवर्तन, जल विज्ञान चक्र और जैव विविधता की निगरानी।
- जलवायु अनुकूलता का निर्माण: जलवायु अनुकूलन उपायों में निवेश, हिमनदीय झील विस्फोट बाढ़ (GLOFs) जैसी आपदाओं के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु-लचीला बुनियादी ढाँचा।
- पर्वतीय समुदायों को सशक्त बनाना: स्थानीय समुदायों के कल्याण, आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को नीति-निर्माण का केंद्र बनाना ताकि वे हरित आजीविका एवं सतत पर्यटन का लाभ उठा सकें। उनकी पारंपरिक ज्ञान प्रणाली अमूल्य संसाधन है।
- हरित वित्तपोषण उपलब्ध कराना: पर्वतीय राष्ट्रों के लिए जलवायु वित्त को संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क (UNFCCC) और पेरिस समझौते के अनुसार उपलब्ध कराना ताकि वे प्रभावी ढंग से अनुकूलन एवं शमन रणनीतियों को लागू कर सकें।
- पर्वतीय दृष्टिकोण को मान्यता देना: सुनिश्चित करना कि पर्वतीय पारिस्थितिकी प्रणालियों की विशिष्ट कमजोरियों और योगदान को वैश्विक जलवायु वार्ताओं और सतत विकास एजेंडा में उचित रूप से सम्मिलित किया जाए।
हिमालय का महत्त्व
- जलवायु नियंत्रक: हिमालय ठंडी मध्य एशियाई पवनों को रोकता है और भारतीय मानसून को प्रभावित करता है, जिससे उत्तरी मैदानी क्षेत्रों में वर्षा सुनिश्चित होती है।
- जल स्रोत: यह गंगा, सिंधु एवं ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है, जो एक अरब से अधिक लोगों की जल और खाद्य सुरक्षा को बनाए रखता है।
- जैव विविधता हॉटस्पॉट: हिम तेंदुआ और लाल पांडा जैसी संकटग्रस्त प्रजातियों सहित विविध वनस्पतियों और जीवों का आवास।
- सांस्कृतिक महत्त्व: हिंदू धर्म एवं बौद्ध धर्म में पवित्र माना जाता है; अमरनाथ, बद्रीनाथ और कैलाश मानसरोवर जैसी तीर्थस्थल यहीं हैं।
- सामरिक महत्त्व: चीन, नेपाल और भूटान के साथ प्राकृतिक सीमा के रूप में कार्य करता है, जिससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
हिमालय की रक्षा हेतु भारत द्वारा उठाए गए कदम
- राष्ट्रीय हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र सततता मिशन (NMSHE): भारत की राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC) का हिस्सा, जो सतत विकास, हिमनदों की निगरानी और जैव विविधता संरक्षण पर केंद्रित है।
- सिक्योर हिमालय परियोजना: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के सहयोग से प्रारंभ की गई, यह उच्च ऊँचाई जैव विविधता संरक्षण और हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम एवं लद्दाख में सतत आजीविका का समर्थन करती है।
- परियोजना स्नो लेपर्ड: सामुदायिक-आधारित संरक्षण और वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से हिम तेंदुए तथा उसके प्राकृतिक आवास की रक्षा करने की पहल।
- अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट्स एलायंस (IBCA): भारत-नेतृत्व वाली पहल, जो सीमा-पार हिमालयी क्षेत्रों में हिम तेंदुए और बाघ जैसे बिग कैट्स प्रजातियों के संरक्षण के लिए वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देती है।
Source: PIB
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