पाठ्यक्रम: GS2/शासन
समाचार में
- राज्यसभा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के विरुद्ध हेट स्पीच के आरोपों की जाँच के लिए एक पैनल बना सकती है।
क्या आप जानते हैं? – संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को राष्ट्रपति द्वारा ‘सिद्ध दुराचरण’ या ‘अक्षमता’ के आधार पर हटाया जा सकता है, जब प्रत्येक सदन में यह प्रस्ताव उस सदन की कुल सदस्यता के बहुमत से और उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत (विशेष बहुमत) से एक ही सत्र में पारित किया जाता है। – न्यायाधीश (जाँच) अधिनियम, 1968 न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार करता है। – एक प्रस्ताव पर कम से कम 50 राज्यसभा सदस्य या 100 लोकसभा सदस्य हस्ताक्षर करने चाहिए। – अध्यक्ष या स्पीकर समीक्षा और परामर्श के बाद प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं। |
‘हेट स्पीच’ क्या है?
- हेट स्पीच की कोई विशिष्ट कानूनी परिभाषा नहीं है, लेकिन सामान्यतः यह ऐसे भाषण, लेखन या कार्यों को संदर्भित करता है जो हिंसा भड़काते हैं या समुदायों के बीच नफरत और असहमति फैलाते हैं।
- भारतीय विधि आयोग के अनुसार, हेट स्पीच नस्ल, जातीयता, लिंग, धर्म आदि के आधार पर समूहों को निशाना बनाती है, जिसका उद्देश्य भय, आतंक या हिंसा भड़काना होता है।
- इसे व्यक्तियों या समूहों को घृणा, हिंसा या अपमान से बचाने के लिए मुक्त भाषण पर प्रतिबंध के रूप में देखा जाता है।
- विधि आयोग ने हेट स्पीच को विशेष रूप से अपराध की श्रेणी में डालने के लिए IPC में दो नए प्रावधान—153C और 505A जोड़ने का प्रस्ताव दिया है।
भारतीय कानून में हेट स्पीच का उपचार कैसे किया जाता है?
- भारतीय कानून में हेट स्पीच मुख्य रूप से IPC की धारा 153A (अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 196) और 505 (अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 353) के अंतर्गत आता है।
- धारा 153A धर्म, जाति, भाषा आदि के आधार पर समूहों के बीच दुश्मनी बढ़ाने को अपराध घोषित करती है, जिसके लिए अधिकतम तीन वर्ष की जेल या यदि यह धार्मिक स्थलों पर किया गया हो तो पांच वर्ष की सजा हो सकती है।
- धारा 505 ऐसे बयान देने को दंडित करती है जो सार्वजनिक उपद्रव, भय या समुदायों के बीच घृणा को भड़काते हैं, जिसमें अधिकतम तीन वर्ष की जेल या यदि धार्मिक स्थलों पर हुआ हो तो पांच वर्ष की सजा का प्रावधान है।
मुद्दे और चिंताएँ
- भारत में हेट स्पीच कानूनों का प्रवर्तन असंगत है और प्रायः पक्षपात से प्रभावित होता है।
- सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने इसे नियंत्रित करने को और जटिल बना दिया है क्योंकि यह नफरत फैलाने के लिए नए प्लेटफॉर्म प्रदान करता है।
सुझाव और आगे की राह
- भारत को शांति, समानता और कानून के शासन को बनाए रखने के लिए मुक्त भाषण और हेट स्पीच नियंत्रण के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन बनाने की आवश्यकता है।
- इसके लिए मजबूत कानूनों, निष्पक्ष प्रवर्तन और व्यापक जन जागरूकता की आवश्यकता होगी।
Source :IE
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