पाठ्यक्रम: सामान्य अध्ययन पेपर-3/ अर्थव्यवस्था
सन्दर्भ
- केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने ISA स्टील कॉन्क्लेव के पांचवें संस्करण में अपने संबोधन के दौरान 2034 तक 500 मिलियन टन इस्पात उत्पादन का लक्ष्य रखा।
भारत में इस्पात उत्पादन की स्थिति
- भारत 2018 में जापान को पीछे छोड़ते हुए विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा इस्पात उत्पादक है।
- वित्त वर्ष 24 में कच्चे इस्पात और तैयार इस्पात का उत्पादन क्रमशः 143.6 मीट्रिक टन और 138.5 मीट्रिक टन रहा।
- वित्त वर्ष 23 में भारत की तैयार इस्पात की खपत 119.17 मीट्रिक टन और वित्त वर्ष 24 में 138.5 मीट्रिक टन रही।
- वित्त वर्ष 24 में तैयार इस्पात का निर्यात और आयात क्रमशः 7.49 मीट्रिक टन तथा 8.32 मीट्रिक टन रहा। वित्त वर्ष 23 में प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत 86.7 किलोग्राम रही।
भारत में इस्पात क्षेत्र की संभावनाएं
- कम लागत पर मानव शक्ति की आसान उपलब्धता और प्रचुर लौह अयस्क भंडार की उपस्थिति भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाती है।
- भारत विश्व में लौह अयस्क का पांचवा सबसे बड़ा भंडार रखने वाला देश है।
- ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (GEM) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई 2023 में कोयला आधारित स्टील क्षमता के विकास में भारत चीन को पीछे छोड़ देगा।
- ऑटोमोबाइल उद्योग की वृद्धि: ऑटोमोटिव क्षेत्र स्टील का एक प्रमुख उपभोक्ता है।
- जैसे-जैसे भारत का मध्यम वर्ग बढ़ रहा है और उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ रही है, ऑटोमोबाइल की मांग बढ़ रही है, जिससे इस्पात की मांग में भी वृद्धि हो रही है।
- शहरीकरण: बढ़ती जनसँख्या और बढ़ते शहरीकरण के साथ, आवास, वाणिज्यिक स्थानों तथा शहरी बुनियादी ढांचे की मांग बढ़ रही है। यह प्रवृत्ति निर्माण और रियल एस्टेट क्षेत्रों में स्टील की निरंतर मांग में योगदान देती है।
भारत में इस्पात क्षेत्र की चिंताएँ
- कच्चे माल की उपलब्धता और लागत: इस्पात उद्योग लौह अयस्क और कोकिंग कोयले जैसे कच्चे माल की उपलब्धता तथा लागत पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
- भारत अपनी कोकिंग कोयले की 90% आवश्यकता की पूर्ति के लिए आयात पर निर्भर है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा: इस्पात उद्योग अत्यधिक प्रतिस्पर्धी है और भारतीय इस्पात निर्माताओं को अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।
- अतीत में विशेष रूप से चीन और वियतनाम से इस्पात उत्पादों की डंपिंग से उद्योग पर बड़ा प्रभाव पड़ा था।
- बुनियादी ढांचे की बाधाएं: अपर्याप्त परिवहन सुविधाएं, अकुशल रसद और बिजली की कमी, इस्पात उद्योग के सुचारू संचालन में बाधा डालती हैं। इससे उत्पादन लागत भी बढ़ जाती है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
- राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 (NSP 2017): भारत ने 2030-31 तक 300 MTPA(मिलियन टन प्रति वर्ष) की कुल कच्चे इस्पात क्षमता और 255 MTPA की कुल कच्चे इस्पात की मांग/उत्पादन प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
- 2019 में, सरकार ने आयात को कम करने के उद्देश्य से स्टील स्क्रैप रीसाइक्लिंग नीति शुरू की। सरकारी खरीद में घरेलू रूप से निर्मित लौह और इस्पात उत्पादों (DMI & SP नीति) को वरीयता प्रदान करने की नीति जिसके परिणामस्वरूप लगभग ₹34,800 करोड़ का आयात प्रतिस्थापन हुआ है।
- ब्रांड इंडिया लेबलिंग: इस्पात मंत्रालय ने भारतीय गुणवत्ता वाले स्टील को दूसरों से अलग करने के लिए देश में उत्पादित स्टील की मेड इन इंडिया ब्रांडिंग की पहल की है।
- 2021 में, भारत और रूस ने इस्पात क्षेत्र में अनुसंधान और विकास करने और कोकिंग कोल (स्टील बनाने में उपयोग किया जाता है) का उत्पादन करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
- 2021 में, भारत-जापान स्टील डायलॉग के ढांचे के तहत संयुक्त गतिविधियों के माध्यम से इस्पात क्षेत्र को बढ़ावा देने की पहल की।
- इस्पात के लिए उत्पादकता से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI): इस योजना को सरकार द्वारा 2021 में 6,322 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ मंजूरी दी गई थी।
- उद्देश्य: पूंजी निवेश को आकर्षित करके देश के अंदर ‘विशिष्ट इस्पात’ के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना, रोजगार सृजन करना और इस्पात क्षेत्र में प्रौद्योगिकी उन्नयन को बढ़ावा देना।
- “लौह एवं इस्पात क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा” योजना पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से की जाने वाली पहलों के लिए हितधारकों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। सरकार ने स्वचालित मार्ग के तहत इस्पात क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी।
- उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2000-मार्च 2024 के बीच भारतीय धातुकर्म उद्योगों ने 17.51 बिलियन अमेरिकी डॉलर का FDI प्रवाह आकर्षित किया।
आगे की राह
- भारत को एक अग्रणी वैश्विक इस्पात निर्माता के रूप में स्थापित करने के लिए कम उत्सर्जन, उच्च उत्पादकता और बेहतर गुणवत्ता प्राप्त करने में नवाचार की आवश्यकता है।
- उत्पादन को अनुकूलित करने, अपशिष्ट को कम करने और मूल्य श्रृंखला में दक्षता बढ़ाने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग आवश्यक है।
- साथ ही, घरेलू उद्योगों के लिए समान अवसर की आवश्यकता है और सतत विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए इस्पात उद्योग के नेताओं के साथ कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) को संबोधित करना होगा।
Source: TH
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