पाठ्यक्रम: GS3/पर्यावरण; संरक्षण
संदर्भ
- हाल ही में, महाराष्ट्र के पुणे में पुणे रिवरफ्रंट विकास परियोजना के विरुद्ध ‘चलो चिपको’ विरोध के बाद विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच परिचर्चा पुनः प्रारंभ हो गई, जो 1970 के दशक के चिपको आंदोलन की भावना को प्रतिध्वनित करती है।
चिपको आंदोलन के बारे में
- इसकी शुरुआत 1973 में उत्तराखंड के चमोली जिले (तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा) में हुई थी।
- इसका नेतृत्व ग्रामीणों, विशेषकर महिलाओं ने किया था, जिन्होंने सरकार समर्थित कटाई अभियान के कारण पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए पेड़ों को गले लगाया था।
- सुंदरलाल बहुगुणा और गौरा देवी जैसी प्रमुख हस्तियों ने लोगों को संगठित करने एवं पर्यावरण संरक्षण त्तथा सतत् विकास के बीच संबंध को प्रकट करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रमुख विशेषताएँ
- बुनियादी स्तर पर सक्रियता: इस आंदोलन का नेतृत्व स्थानीय समुदायों, विशेषकर ग्रामीण महिलाओं ने किया, जो अपने अस्तित्व के लिए वनों के पारिस्थितिक मूल्य को समझती थीं।
- अहिंसक प्रतिरोध: गांधीवादी सिद्धांतों से प्रेरित होकर, प्रदर्शनकारियों ने वनों की कटाई को रोकने के लिए पेड़ों को गले लगाने और धरना देने जैसे शांतिपूर्ण तरीकों का उपयोग किया।
- पर्यावरण जागरूकता: इस आंदोलन ने मिट्टी के कटाव को रोकने, कृषि को बनाए रखने और जैव विविधता को बनाए रखने में वनों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाई।
- नीतिगत प्रभाव: विरोध प्रदर्शनों के कारण अंततः 1980 में हिमालयी क्षेत्र में वाणिज्यिक वनों की कटाई पर सरकार द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया।
शहरी पर्यावरण विरोध: शहरों में चिपको विरासत
- शहरों को वायु प्रदूषण, जल की कमी, हरित क्षेत्रों की हानि और जलवायु परिवर्तन से होने वाली आपदाओं जैसे अद्वितीय पर्यावरणीय मुद्दों का सामना करना पड़ता है।
- इसके प्रत्युत्तर में, शहरी कार्यकर्त्ताओं और नागरिकों ने विरोध प्रदर्शन, कानूनी कार्रवाई एवं वकालत के माध्यम से पर्यावरण की रक्षा के लिए कदम उठाया है।
चिपको और आधुनिक ईरान विरोध के बीच समानता | ||
पहलू | चिपको आंदोलन | शहरी पर्यावरण विरोध |
समस्या का समाधान | वनों की कटाई और जैव विविधता की हानि | वायु प्रदूषण, वनों की कटाई, भूमि उपयोग परिवर्तन |
विरोध का तरीका | वृक्ष-आलिंगन, धरना, मार्च | कानूनी याचिकाएँ, विरोध प्रदर्शन, सोशल मीडिया अभियान |
प्रमुख प्रतिभागी | ग्रामीण महिलाएँ, ग्रामीण | शहरी निवासी, कार्यकर्त्ता, छात्र |
सरकार की प्रतिक्रिया | वनों की कटाई पर नीति प्रतिबंध | मिश्रित स्थिति – कुछ नीतिगत जीत, कुछ कानूनी लड़ाइयाँ जारी |
चिपको से प्रेरित समकालीन शहरी पर्यावरण विरोध:
- आरे वन बचाओ आंदोलन (मुंबई, महाराष्ट्र): यह मेट्रो कार शेड परियोजना के लिए आरे कॉलोनी में 2,700 से अधिक पेड़ों की कटाई के विरोध में उभरा।
- कार्यकर्त्ताओं और निवासियों ने वनों की कटाई को रोकने के लिए पेड़ों को गले लगाकर और मानव शृंखला बनाकर चिपको शैली का विरोध किया।
- अरावली बचाओ अभियान (गुरुग्राम): निवासी और पर्यावरणविद अरावली पहाड़ियों में अवैध खनन और रियल एस्टेट अतिक्रमण का विरोध कर रहे हैं, जो वायु शोधन और रेगिस्तानीकरण के विरुद्ध एक बाधा के रूप में पर्वत शृंखला की भूमिका पर बल देते हैं।
- वायु प्रदूषण के खिलाफ नागरिक नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शन (दिल्ली और NCR): दिल्ली प्रायः विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार है।
- स्वच्छ वायु का अधिकार और सांस लेने का मेरा अधिकार जैसे अभियानों ने नीतिगत बदलावों की माँग की है, जिस तरह से चिपको कार्यकर्त्ताओं ने वन संरक्षण के लिए लड़ाई लड़ी थी।
- झील बचाओ आंदोलन (बेंगलुरु और हैदराबाद): बेलंदूर झील बचाओ और उल्सूर झील बचाओ जैसे अभियानों का उद्देश्य शहर के तेजी से लुप्त हो रहे जल निकायों को प्रदूषण एवं अतिक्रमण से बचाना है।
- नागरिक समूहों ने विरोध प्रदर्शन किए हैं, जनहित याचिकाएँ (PILs) दायर की हैं, तथा स्थानीय सामुदायिक कार्रवाई की चिपको भावना को प्रतिध्वनित करते हुए सफाई अभियान आयोजित किए हैं।
- राहगिरी आंदोलन (गुरुग्राम और अन्य शहर): यह शहरी प्रदूषण को कम करने और सतत शहरी गतिशीलता को बढ़ावा देने के लिए पैदल यात्री-अनुकूल और वाहन-मुक्त सड़कों का समर्थन करता है।
- चिपको की तरह, यह एक समुदाय-नेतृत्व वाली पहल है जो वाहनों के बजाय लोगों के लिए सार्वजनिक स्थानों को पुनः प्राप्त करने पर केंद्रित है।
पर्यावरण विरोध की चुनौतियाँ और भविष्य
- सरकारी और कॉर्पोरेट प्रतिरोध: बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ प्रायः पर्यावरण संबंधी चिंताओं पर आर्थिक लाभ को प्राथमिकता देती हैं।
- सार्वजनिक उदासीनता: ग्रामीण समुदायों पर वनों की कटाई के प्रत्यक्ष प्रभाव के विपरीत, शहरी पर्यावरणीय मुद्दे कई शहरवासियों को दूर की कौड़ी लग सकते हैं।
- कानूनी लड़ाई: पर्यावरण विरोध प्रायः लंबी और जटिल कानूनी लड़ाइयों की ओर ले जाते हैं, जिससे समाधान में विलंब होती है।
- हालाँकि, बढ़ती जलवायु जागरूकता और फ्राइडेज़ फ़ॉर फ्यूचर इंडिया जैसे युवा-नेतृत्व वाले आंदोलनों के उदय के साथ, पर्यावरण सक्रियता गति पकड़ रही है।
निष्कर्ष
- चिपको आंदोलन की विरासत इसकी तात्कालिक उपलब्धियों से कहीं आगे तक फैली हुई है। यह बुनियादी स्तर पर सक्रियता और पारिस्थितिकी चेतना का प्रतीक बन गया है, जिसने विश्व भर में पर्यावरण आंदोलनों को प्रेरित किया है। अहिंसक प्रतिरोध और सामुदायिक भागीदारी पर आंदोलन का बल समकालीन पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं के साथ गूंजता रहता है।
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