पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध
संदर्भ
- भारत और यूनाइटेड किंगडम ने द्विपक्षीय रक्षा सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।
प्रमुख समझौते और सहयोग
- रक्षा साझेदारी-भारत (DP-I): द्विपक्षीय रक्षा सहयोग के लिए वन-स्टॉप हब के रूप में कार्य करने हेतु UK के रक्षा मंत्रालय के अन्दर एक समर्पित कार्यक्रम कार्यालय की स्थापना।

- इसका उद्देश्य दोनों देशों में गहन सहयोग को सुविधाजनक बनाना तथा आर्थिक विकास को समर्थन प्रदान करना है।
- लेजर बीम राइडिंग MANPADs (LBRM): भारत और UK ने लेजर बीम राइडिंग मैन पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम्स (MANPADS) की डिलीवरी के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए।
- उच्च वेग मिसाइलों (STARStreak) और लांचरों की प्रारंभिक आपूर्ति इस वर्ष के लिए निर्धारित है।
- हल्के बहुउद्देशीय मिसाइल (LMM): इसका उद्देश्य भारतीय और ब्रिटिश उद्योगों को वैश्विक रक्षा आपूर्ति शृंखला में एकीकृत करना है।
- उन्नत लघु दूरी की हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल (ASRAAM): हैदराबाद में ASRAAM असेंबली और परीक्षण सुविधा स्थापित करने के लिए सहयोग।
- एकीकृत पूर्ण इलेक्ट्रिक प्रणोदन (IFEP) प्रणाली: भारत के अगली पीढ़ी के लैंडिंग प्लेटफॉर्म डॉक (LPD) बेड़े के लिए एकीकृत पूर्ण इलेक्ट्रिक प्रणोदन (IFEP) प्रणाली को डिजाइन और विकसित करने के लिए एक आशय पत्र पर हस्ताक्षर किए गए।
- दोनों देश भारत की पहली समुद्री भूमि-आधारित परीक्षण सुविधा स्थापित करने के लिए कार्य कर रहे हैं, जिसका लक्ष्य 2030 तक पानी में LPD पहुँचाना है।
भारत और ब्रिटेन के बीच रक्षा सहयोग – विगत् दशक में भारत की रक्षा खरीद का केवल 3% ही ब्रिटेन से आया था। – आधुनिक सहयोगात्मक रूपरेखाएँ: 1. रक्षा और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा साझेदारी (DISP), 2015: इसका उद्देश्य आतंकवाद-निरोध, साइबर सुरक्षा और रक्षा विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाना है। 2. रक्षा उपकरण समझौता ज्ञापन (MoU): यह दोनों देशों के रक्षा उद्योगों के बीच सहयोग को सुगम बनाता है तथा सह-विकास और सह-उत्पादन पहल को बढ़ावा देता है। 3. भारत-ब्रिटेन 2+2 विदेश एवं रक्षा वार्ता। – संयुक्त सैन्य अभ्यास और प्रशिक्षण: 1. अभ्यास अजय वारियर; 2. कोंकण अभ्यास; 3. अभ्यास कोबरा योद्धा; 4. तरंग शक्ति अभ्यास। – रक्षा औद्योगिक सहयोग: भारत के DRDO और ब्रिटेन के DSTL के बीच रक्षा अनुसंधान पर सहयोग करने के लिए एक व्यवस्था पत्र पर हस्ताक्षर किए गए, जिसमें भारतीय नौसेना के लिए इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम जैसे क्षेत्रों पर जोर दिया गया। – समुद्री सहयोग: एक नए समुद्री संवाद, ग्रे और डार्क शिपिंग सूचना साझाकरण और तंत्र के साथ नेविगेशन की स्वतंत्रता एवं खुली पहुँच को बढ़ावा देना और समुद्री सहयोग में सुधार करना। |
मुख्य चिंताएँ
- भारत-ब्रिटेन रक्षा सहयोग प्रायः निम्नलिखित से संबंधित भारतीय नियमों और विनियमों द्वारा उत्पन्न ‘थ्री-आई (three-I)’ चुनौती के कारण पटरी से उतर जाता है:
- विदेशी निवेश;
- बौद्धिक संपदा अधिकार;
- स्वदेशी सामग्री आवश्यकताएँ
सामरिक महत्त्व
- ये समझौते भारत-ब्रिटेन संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण कदम हैं। रक्षा सहयोग, विशेष रूप से वायु रक्षा और समुद्री प्रणोदन जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में।
- यह भारत के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है तथा स्वदेशी रक्षा क्षमताओं और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देता है।