पाठ्यक्रम: GS3/पर्यावरण; जलवायु परिवर्तन
संदर्भ
- एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी हिमालय ने 32 वर्षों (1988-2020) की अवधि में 110 हिमनद समाप्त हो गए हैं और हिमनदों के तीव्रता से पश्चगमन को प्रकट किया है, जिसका क्षेत्र के जल विज्ञान और जलवायु पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
- हिमनद झीलें: अध्ययन में पाया गया कि 309.85 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करने वाले हिमनद प्रति वर्ष 16.94 वर्ग किलोमीटर की दर से पीछे हट रहे हैं।
- इससे आधार शैल उजागर हो गए और हिमनद झीलें निर्मित हो गईं, जिससे हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (GLOFs) का खतरा बढ़ गया।
- अध्ययन अवधि के दौरान इस क्षेत्र में हिमनदों की संख्या 756 से घटकर 646 हो गयी।
- हिमनदों के पीछे हटने के कारण:
- तापमान में वृद्धि: पूर्वी हिमालय क्षेत्र वैश्विक औसत से अधिक दर से गर्म हो रहा है, जहाँ प्रति दशक तापमान में 0.1°C से 0.8°C के बीच वृद्धि हो रही है।
- ऐसा अनुमान है कि सदी के अंत तक तापमान में 5-6°C की संभावित वृद्धि तथा वर्षा में 20-30% की वृद्धि के साथ यह स्थिति जारी रहेगी।
- पिछली शताब्दी में इस क्षेत्र में तापमान में लगभग 1.6°C की वृद्धि देखी गई है, तथा पूर्वी हिमालय में तापमान वृद्धि की दर वैश्विक औसत से अधिक हो गई है।
- तापमान में वृद्धि: पूर्वी हिमालय क्षेत्र वैश्विक औसत से अधिक दर से गर्म हो रहा है, जहाँ प्रति दशक तापमान में 0.1°C से 0.8°C के बीच वृद्धि हो रही है।
- निहितार्थ: क्षेत्र की स्वच्छ जल की आपूर्ति के लिए, जो नीचे की ओर रहने वाले 1.3 बिलियन से अधिक लोगों का भरण-पोषण करती है।
- हिमालय के हिमनद, जिन्हें प्रायः उनके विशाल बर्फ भंडार के कारण ‘तीसरा ध्रुव’ कहा जाता है, इस क्षेत्र के जल विज्ञान संतुलन और वैश्विक समुद्र स्तर को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- हिमनदों के पश्चगमन से क्षेत्र की जैव विविधता और कृषि पद्धतियों पर भी प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त, हिमनदों के कम होने से नदी के प्रवाह पैटर्न में बदलाव हो सकता है, जिससे जलविद्युत उत्पादन और सिंचाई प्रणाली प्रभावित हो सकती है।
भारत में हिमालय के हिमनद – इन्हें सामान्यतः तीन नदी घाटियों में विभाजित किया गया है, अर्थात् सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र। – अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों (समशीतोष्ण जलवायु) में सर्दियों के दौरान भारी बर्फबारी होती है। सिंधु नदी – यह नदी मानसरोवर झील एवं कैलाश पर्वत के पास तिब्बती पठार से निकलती है और पश्चिम की ओर, कराकोरम पर्वतमाला के दक्षिण तथा महान हिमालय के उत्तर में माउंट नागा पर्वत तक प्रवाहित होती है, जहाँ यह तीव्र गति से दक्षिण की ओर मुड़कर 2,880 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद पाकिस्तान से होकर कराची के पास अरब सागर में मिल जाती है। गंगा नदी – यह गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है, जहां इसे भागीरथी के नाम से जाना जाता है, जो देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलती है और मिलकर इसे गंगा कहा जाता है। ब्रह्मपुत्र नदी (यालू जांग्बू या त्सांग पो) – यह तिब्बत में कोंगग्यू त्सो झील के ठीक दक्षिण में कैलाश पर्वतमाला के हिमनद से निकलती है। – यह विश्व की सबसे लंबी नदियों में से एक है। यह अपनी प्रथम 1,625 किलोमीटर की यात्रा तिब्बत में, 918 किलोमीटर की यात्रा भारत में और शेष 337 किलोमीटर की यात्रा बांग्लादेश में करती है, उसके बाद यह बंगाल की खाड़ी में गिरती है। हिमालय के हिमक्षेत्रों और हिमनदों का महत्त्व – पृथ्वी का विकिरण संतुलन: बर्फ से एल्बेडो। – दक्षिण-पश्चिमी मानसून को आकर्षित करना: हिमालय के बर्फ के मैदानों और हिमनदों तथा हिंद महासागर के बीच तापमान में अंतर गर्मियों के दौरान दक्षिण-पश्चिमी मानसून को भारतीय भूभाग की ओर आकर्षित करता है। – जलवायु परिवर्तन का मुख्य संकेतक: बर्फ के मैदान और हिमनदों क्षेत्रीय एवं वैश्विक स्तर पर भारतीय भूभाग की जलवायु प्रणाली को नियंत्रित करते हैं। तापमान में बदलाव के प्रति बर्फ के मैदानों और हिमनदों की संवेदनशीलता उन्हें जलवायु परिवर्तन का मुख्य संकेतक बनाती है। |
शमन और अनुकूलन रणनीतियाँ
- हिमनदों के पश्चगमन से निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना, जलवायु लचीलापन बढ़ाना और स्थायी जल प्रबंधन प्रथाओं को लागू करना शामिल है।
- प्रभावों को कम करने एवं बदलते पर्यावरण के अनुकूल होने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और स्थानीय समुदाय की भागीदारी आवश्यक है।
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समाचार में 04-02-2025