पाठ्यक्रम: GS2/शासन
संदर्भ
- ग्रामीण विकास मंत्रालय ने NAKSHA (शहरी बस्तियों का राष्ट्रीय भू-स्थानिक ज्ञान-आधारित भूमि सर्वेक्षण) कार्यक्रम के दूसरे चरण की शुरुआत की है। NAKSHA को डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) के अंतर्गत लागू किया गया है।
NAKSHA
- पहला चरण: पायलट कार्यान्वयन और सर्वेक्षण संचालन
- परिचय: इसे 2024-25 के बजट में भूमि रिकॉर्ड को मानकीकृत करने, प्रक्रियाओं को सरल बनाने और भूमि लेन-देन में पारदर्शिता लाने के लिए घोषित किया गया था।
- कवरेज: इसे 26 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में 152 शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) में शुरू किया गया है।
- इसमें 35 वर्ग किमी से कम क्षेत्र और 2 लाख से कम जनसंख्या वाले शहरों को लक्षित किया गया है।
- आगामी 5 वर्षों में पूरे शहरी क्षेत्र को कवर करने का लक्ष्य है।
- तकनीकी एकीकरण: उच्च-सटीकता मानचित्रण के लिए हवाई सर्वेक्षण, ड्रोन तकनीक और वेब-GIS प्लेटफॉर्म का उपयोग किया गया।
- दूसरा चरण: क्षमता निर्माण और कौशल वृद्धि
- इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत 157 शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) से 304 जिला और ULB-स्तरीय अधिकारियों को नामित किया गया है।
- ये अधिकारी आधुनिक भू-स्थानिक तकनीकों का उपयोग करके प्रभावी शहरी संपत्ति सर्वेक्षण करने के लिए व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे।
- प्रशिक्षण का उद्देश्य ULB अधिकारियों और क्षेत्रीय कर्मचारियों को तकनीकी और व्यावहारिक कौशल से लैस करना है ताकि वे NAKSHA कार्यक्रम के अंतर्गत उच्च-सटीकता वाले भूमि सर्वेक्षणों की निगरानी कर सकें।
भारत को भूमि प्रबंधन के लिए NAKSHA जैसे कार्यक्रम की आवश्यकता क्यों है?
- टुकड़ों में बंटा भूमि रिकॉर्ड प्रणाली: भारत में भूमि रिकॉर्ड रखने की प्रणाली राज्य-विशिष्ट और असंगत है।
- प्रायः पुराने मैनुअल रिकॉर्ड उपयोग किए जाते हैं, जिससे स्वामित्व विवाद, खरीदारों, निवेशकों और संस्थानों के लिए कानूनी अनिश्चितता उत्पन्न होती है।
- भूमि विवाद और मुकदमेबाजी: भारतीय न्यायलयों में 66% से अधिक दीवानी मामले भूमि/संपत्ति से जुड़े होते हैं।
- डिजिटाइज़्ड, छेड़छाड़-रहित भूमि मानचित्रों की कमी एक प्रमुख कारण है।
- नगरीकरण और बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा: 2023-24 की आर्थिक समीक्षा के अनुसार, 2030 तक भारत की लगभग 40% जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में रहने की संभावना है।
- शहरों के नियोजित विकास के लिए भूमि और संपत्ति रिकॉर्ड प्रणाली का सुव्यवस्थित होना आवश्यक है।
- कृषि सुधार को बढ़ावा: डिजिटाइज्ड खतौनी नक्शे भूमि रिकॉर्ड से जुड़े होने पर:
- सरल ऋण पहुँच, फसल बीमा योजनाओं, पीएम-किसान और अन्य DBT पहलों का समर्थन कर सकते हैं।
- आपदा जोखिम और जलवायु लचीलेपन:
- एक भू-टैग की गई मानचित्रण प्रणाली जलवायु प्रतिरोधक योजना में सहायता करती है।
Source: TH
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