
1320 से 1412 ई. तक दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाला तुगलक वंश अपने महत्वाकांक्षी सुधारों और महत्वपूर्ण वास्तुशिल्पीय योगदानों के लिए जाना जाता है। इसकी विरासत उत्तर भारत में सत्ता के सुदृढ़ीकरण और इस क्षेत्र के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने वाली जटिल चुनौतियों से चिह्नित है। इस लेख का उद्देश्य तुगलक वंश के प्रमुख शासकों, सुधारों और सांस्कृतिक प्रभावों का विस्तार से अध्ययन करना है।
तुगलक वंश के बारे में
- तुगलक वंश की स्थापना गाजी मलिक ने की थी, जो 1320 ई. में गयासुद्दीन तुगलक के रूप में सिंहासन पर बैठा और 1325 ई. तक शासन किया।
- गयासुद्दीन अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में एक महत्वपूर्ण पद पर आसीन था।
- हालाँकि, एक संक्षिप्त शासनकाल के बाद, 1325 ई. में गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु हो गई और उसका पुत्र मुहम्मद तुगलक गद्दी पर बैठा।
- तुगलकों के अधीन, दिल्ली सल्तनत का शासन और भी सुदृढ़ हुआ।
गयासुद्दीन तुगलक (1320-25 ई.)
- गयासुद्दीन तुगलक, या गाजी मलिक, तुगलक वंश का संस्थापक था। वह एक कुशल प्रशासक और अच्छा शासक था।
- यद्यपि वह एक कट्टर मुसलमान था, फिर भी उसने हिंदुओं पर अत्याचार नहीं किया।
- गयासुद्दीन तुगलक को दिल्ली के प्रसिद्ध तुगलकाबाद किले के लिए भी जाना जाता है।
- गयासुद्दीन तुगलक ने अपने शासनकाल में संचार, परिवहन और डाक व्यवस्था में सुधार किया।
- गयासुद्दीन तुगलक को वारंगल और बंगाल पर विजय प्राप्त करने के लिए जाना जाता है।
- गयासुद्दीन तुगलक की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई, जिसके बाद उसका पुत्र मुहम्मद बिन तुगलक गद्दी पर बैठा।
मुहम्मद बिन तुगलक (1325-51 ई.)
- 1325 ई. में गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद, उसका पुत्र मुहम्मद बिन तुगलक, या जौना खान, गद्दी पर बैठा।
- मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली सल्तनत के सबसे विवादास्पद शासकों में से एक था। उसने कई महत्वाकांक्षी योजनाएँ और प्रयोग शुरू किए, लेकिन उनमें से अधिकांश विफल रहे।
- मुहम्मद बिन तुगलक एक अरबी और फ़ारसी विद्वान था जो धार्मिक मामलों के प्रति सहिष्णु था।
मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में सुधार
मोहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल के दौरान हुए सुधारों को निम्न प्रकार देखा जा सकता है:
- राजधानी का स्थानांतरण: मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी को दिल्ली से दक्कन के देवगीर स्थानांतरित किया और इसका नाम बदलकर दौलताबाद कर दिया।
- कई कुलीन, धार्मिक व्यक्ति और शिल्पकार नई राजधानी में स्थानांतरित हो गए।
- मुहम्मद बिन तुगलक ने दिल्ली से देवगीर तक एक सड़क बनवाई और लोगों के लिए विश्राम गृह बनवाए।
- कठिन यात्रा और गर्मी के कारण कई लोगों की मृत्यु हो गई। इससे लोगों को भारी कठिनाई और आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा।
- पाँच महीने के अन्दर ही, राजधानी वापस दिल्ली स्थानांतरित होने के कारण इस योजना को छोड़ दिया गया।
- सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन: भारत में चाँदी की कमी को दूर करने के लिए मुहम्मद बिन तुगलक ने चाँदी के सिक्कों (टंका) के समान मूल्य के कांसे के सिक्के या जीतल सिक्के चलाए।
- मुहम्मद बिन तुगलक ने कांसे के सिक्कों को टंका के समकक्ष स्वीकार करने का आदेश दिया।
- बरनी के अनुसार, सुल्तान की विजय नीति और असीम उदारता के कारण सरकारी खजाना खाली हो गया जिस कारण राजा को सांकेतिक मुद्रा प्रचलन में लाने के लिए बाध्य होना पड़ा।
- मुहम्मद बिन तुगलक ने राज्य के लिए नए सिक्के जारी करने का अधिकार सुरक्षित नहीं रखा, इसलिए लोगों ने अपने घरों में सांकेतिक मुद्रा ढालना शुरू कर दिया।
- बड़ी संख्या में नकली और जाली सिक्के बाज़ार में प्रचलन में आ गए। परिणामस्वरूप, कांसे के सिक्कों का मूल्य तेज़ी से गिर गया और लोगों ने उन्हें अस्वीकार कर दिया, जिससे व्यापार में और भी हानि हुई।
- जाली ढलाई से शाही खजाने को भारी नुकसान हुआ। कांसे के सिक्के 1329 ईस्वी से 1332 ईस्वी तक तीन वर्षों तक प्रचलन में रहे।
- अंततः सरकार को कांसे के जीतल सिक्के वापस लेने और बदले में सोने और चांदी के सिक्के या टंका जारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
- गंगा यमुना दोआब में करों में वृद्धि: मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी सेना के खर्चों को पूरा करने के लिए गंगा और दोआब क्षेत्र में भूमि कर बढ़ा दिए।
- कई किसानों ने मुहम्मद बिन तुगलक के खिलाफ विद्रोह कर दिया क्योंकि वे क्षेत्र में अकाल के कारण बढ़े हुए राजस्व का भुगतान करने में असमर्थ थे।
- अंततः, मुहम्मद बिन तुगलक ने उसके आदेश को रद्द कर दिया।
- खुरासान अभियान: मुहम्मद बिन तुगलक की विवादास्पद परियोजना, खुरासान अभियान, 1330-31 ईस्वी में शुरू की गयी थी।
- अभियान की सटीक भौगोलिक स्थिति को स्पष्ट करना आवश्यक था। हालाँकि, बरनी का मानना था कि यह इराक में था।
- मुहम्मद बिन तुगलक ने खुरासान क्षेत्र में अभियान के लिए एक विशाल सेना तैयार की।
- ऐसा कहा जाता है कि मुहम्मद बिन तुगलक और तरमाशिरिन के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित होने के बाद खुरासान अभियान को छोड़ दिया गया।
- बरनी के अनुसार, खुरासान सेना का एक हिस्सा क़राचिल भेजा गया था। यह परियोजना 1337-39 ईस्वी में शुरू हुई थी। क़राचिल क्षेत्र कांगड़ा जिले में हिमालय के मध्य में स्थित है।
- मोहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल के दौरान हुए सुधारों को निम्न प्रकार देखा जा सकता है:इब्न बतूता के अनुसार, क़राचिल का अभियान मुख्य रूप से राजपूत क्षेत्रों में चीनी अतिक्रमण को रोकने के लिए किया गया था।
- यह अभियान मुहम्मद बिन तुगलक की एक और बड़ी विफलता साबित हुआ, जिसके कारण संसाधनों का भारी नुकसान हुआ और जनता तथा सल्तनत की सेना में असंतोष फैल गया।
- कृषि सुधार: मुहम्मद बिन तुगलक ने कृषि विभाग, ‘दीवान-ए-कोही’ की स्थापना की।
- उसने कृषि क्षेत्र से संबंधित सभी मुद्दों की देखभाल के लिए कृषि मंत्री, अमीर-ए-कोही को नियुक्त किया।
- मुहम्मद बिन तुगलक ने किसानों को कृषि ऋण, ‘तकवी’, प्रदान करने का आदेश दिया। किसानों को खेती के लिए बीज की व्यवस्था करने में मदद के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान की गई।
- कृषि विभाग का मुख्य उद्देश्य भूमि पर खेती को बढ़ावा देना और कृषि उपज की उत्पादकता बढ़ाना था।
- मुहम्मद-बिन-तुगलक दिल्ली सल्तनत के सभी सुल्तानों में सबसे विद्वान शासक था।
- इब्न बतूता के अनुसार मुहम्मद-बिन-तुगलक ने नए सिक्के जारी किए, जिन्हें दीनार कहा गया।
- इब्न बतूता की यात्रा के वृत्तांत से डाक व्यवस्था का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है।
- मुहम्मद-बिन-तुगलक दिल्ली के सभी सुल्तानों में हिंदुओं के सार्वजनिक उत्सवों, विशेषकर होली आदि में भाग लेने वाला पहला सुल्तान था।
- बदायूनी ने मुहम्मद-बिन-तुग़लक़ की मृत्यु के बारे में लिखा कि “लोगों को सुल्तान से मुक्ति मिली, और सुल्तान को लोगों से।”
- फिरोज के काल में जजिया एक अलग कर बन गया। इससे पहले, यह भू-राजस्व का हिस्सा था।
- कराचिल अभियान (1330): यह अभियान हिमालय की कुमाऊँ पहाड़ियों में चीनी आक्रमणों का मुकाबला करने के लिए शुरू किया गया था।
- ऐसा भी प्रतीत होता है कि यह अभियान कुमाऊँ-गढ़वाल क्षेत्र की कुछ विद्रोही जनजातियों के विरुद्ध था ताकि उन्हें दिल्ली सल्तनत के अधीन लाया जा सके।
- पहला आक्रमण सफल रहा, लेकिन वर्षा ऋतु शुरू होने पर आक्रमणकारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
- उसकी पाँच परियोजनाओं कारण उसे अपने शासन काल में कई विद्रोहों का सामना करना पड़ा और उसके अंतिम दिन इन विद्रोहों को नियंत्रित में बीते।
फ़िरोज़ शाह तुगलक (1351-88 ई.)
- मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के बाद, उसका चचेरा भाई फ़िरोज़ शाह तुगलक तुगलक वंश का अगला सुल्तान बना।
- फ़िरोज़ शाह तुगलक को कुलीनों और धर्मशास्त्रियों का समर्थन प्राप्त था। वह एक दयालु व्यक्ति था जो कठोर दंड का पक्षधर नहीं था। उसने अपने पूर्ववर्तियों द्वारा दिए गये किसानों के कर्ज़ माफ़ कर दिए।
- फिरोज़ शाह तुग़लक़ ने दीवान-ए-खैरात (दान विभाग) और दीवान-ए-बंदगान (गुलामों का विभाग) की स्थापना की और इक्तादारी प्रणाली को वंशानुगत बना दिया। उसने कारख़ानों (शाही निर्माण इकाइयों) का विकास किया, जिनमें हज़ारों गुलामों को नियुक्त किया गया।
- उसका शासनकाल कई सार्वजनिक कार्यों के लिए भी जाना जाता है। फ़िरोज़ शाह तुगलक ने सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण कराया और चार नए शहर बसाए: जौनपुर, हिसार, फ़तेहाबाद और फिरोज़ाबाद।
- उसके शासनकाल में, विभिन्न स्थानों पर लगभग 300 नए नगरों का निर्माण हुआ और लगभग 845 सार्वजनिक निर्माण कार्य पूरे किए।
- वह किसानों के प्रति उदार था। उसने किसानों को क्लीन चिट देने के लिए किसानों के ऋणों के सभी सार्वजनिक अभिलेख नष्ट कर दिए।
- फिरोज शाह तुगलक ने हिंदुओं के प्रति असहिष्णुता दिखाई और ब्राह्मणों पर जजिया कर भी लगाया। उनके शासनकाल में, कई हिंदू मंदिरों और मूर्तियों को नष्ट कर दिया गया।
- फिरोज शाह तुगलक ने गरीबों के लिए ‘दार-उल-शफा’ नामक एक निःशुल्क अस्पताल की स्थापना की।
- उसने अशोक के एक स्तंभ को उसके मूल स्थान से हटाकर दिल्ली में स्थापित किया।
- फिरोज तुगलक पहला शासक था जिसने हिंदू धार्मिक ग्रंथों का संस्कृत से फारसी में अनुवाद कराने के लिए कदम उठाए।
- फिरोज तुगलक दिल्ली का पहला सुल्तान था जिसने हक्क-ए-शर्ब, या सिंचाई कर लगाया।
- फिरोज तुगलक राजकीय कोष से हज यात्रा का आयोजन करने वाला पहला शासक था।
- हालाँकि फिरोज़ शाह तुग़लक़ दिल्ली सल्तनत का अंतिम महान शासक के रूप में जाना जाता है और उसने कई लोकहितकारी कार्य किए, परंतु हिंदुओं के प्रति उसकी असहिष्णु नीति के कारण वह हिंदू समुदाय में कम लोकप्रिय बन गया।
तुगलक प्रशासन
- तुग़लक़ वंश का प्रशासन अपेक्षाकृत अधिक स्थायित्वपूर्ण था।
- प्रशासन की पद्धति प्रत्येक शासक के अनुसार भिन्न रही, लेकिन फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ का शासनकाल प्रशासनिक दृष्टि से विशेष रूप से उल्लेखनीय माना जाता है।
- उसने प्रशासन के सुचारू संचालन के लिए उलेमाओं की सलाह का पालन किया।
- कुलीनों को उनकी संपत्ति का वंशानुगत उत्तराधिकार सुनिश्चित किया गया।
- प्रसिद्ध इक्ता प्रणाली को पुनर्परिभाषित किया गया और वंशानुगत बनाया गया।
- इस्लामी कानून का उल्लंघन करने वाले 28 से अधिक वस्तुओं पर लगाए गए विशेष करों को समाप्त कर दिया गया।
तुगलक कला और स्थापत्य कला
- तुग़लक़ वंश ने कला और वास्तुकला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- इस काल में इस्लामी वास्तुकला का प्रभुत्व और पुनर्खोज देखा गया।
- इंडो-इस्लामिक शैली में रचनात्मकता से भरपूर एक नया साम्राज्य निर्मित करने के लिए विभिन्न विशेषज्ञों और शिल्पकारों को आमंत्रित किया गया।
- इंडो-इस्लामिक वास्तुकला शैली ने इस्लामी और हिंदू वास्तुकला शैलियों का समन्वय किया।
- तुग़लक़ वंश की वास्तुकला तीनों शासकों के शासनकाल में फली-फूली। प्रत्येक शासक ने अपने-अपने काल में वास्तुकला में नवाचार जोड़े।
- फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ इस्लामी वास्तुकला का एक महान संरक्षक था। उसने प्रसिद्ध फ़िरोज़ शाह कोटला का निर्माण कराया, जिसे दिल्ली का पाँचवां नगर भी कहा जाता है।
गयासुद्दीन का मकबरा
- गयासुद्दीन तुगलक के कार्यकाल में रोमन शैली पर आधारित प्रसिद्ध तुगलकाबाद शहर का निर्माण हुआ।
- गयासुद्दीन का मक़बरा एक कृत्रिम झील पर बनाया गया था, जो एक गढ़ (किले) से एक प्रमुख मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ था।
- तुगलक वंश का एक अन्य प्रसिद्ध शासक मुहम्मद बिन तुगलक था, जिसने पहले और दूसरे शहरों को जोड़ने वाली दीवार, जहा-पना का निर्माण करके योगदान दिया।
खिड़की मस्जिद
फिरोज शाह के शासनकाल में लगभग 300 नए शहर बसाए गए। इनमें सबसे प्रसिद्ध दिल्ली में लाल किले के पास फिरोजाबाद था, जिसे अब फिरोज शाह कोटला कहा जाता है। कुतुब मीनार की ऊपरी दो मंजिलों का पुनर्निर्माण भी फ़िरोज़ शाह तुगलक ने करवाया था।
कुतुब मीनार
- फ़िरोज़ शाह तुगलक ने कुतुब मीनार की चौथी और पाँचवीं मंजिलें बनवाईं, जो लाल बलुआ पत्थर और मकराना संगमरमर से बनी हैं।
- सल्तनतकालीन स्मारक में पहला वास्तविक मेहराब बलबन के मकबरे में देखा जा सकता है।
- भारत का पहला इंडो-इस्लामिक शैली में निर्मित मकबरा बलबन का मकबरा था।
- घोड़े की नाल के आकार का मेहराब सबसे पहले अलाई दरवाज़े में बनाया गया था।
तुगलक वंश का महत्व
- तुगलक, दिल्ली सल्तनत के पाँच राजवंशों में से तीसरा था जिसने भारत पर शासन किया। इसे दिल्ली सल्तनत के सबसे शक्तिशाली राजवंशों में से एक माना जाता है।
- तुगलकों ने लगभग एक शताब्दी तक भारत पर शासन किया, जिसके दौरान भारत में विकास और समृद्धि का दौर चला।
- तुगलकों ने पूरे राज्य को सुदृढ़ बनाने और किसी भी विदेशी आक्रमण से उसकी रक्षा करने का बीड़ा उठाया।
- दूसरी ओर, सम्राट द्वारा शुरू की गई नकली मुद्रा के कारण तुगलकों को एक बड़ी आर्थिक गिरावट का भी सामना करना पड़ा।
- तुगलक विचारों और संस्कृति के आदान-प्रदान के माध्यम से उत्तर और दक्षिण को एकीकृत करने के लिए भी जाने जाते थे।
- तुगलक वंश, अपनी क्षमता के अनुसार, दिल्ली सल्तनत के अंतिम शक्तिशाली राजवंश के रूप में जाना जाता है।
- फिरोज शाह तुगलक के उत्तराधिकारियों के शासनकाल के दौरान दिल्ली का राजनीतिक नियंत्रण धीरे-धीरे कमजोर होता गया।
- 1398 ई. में तैमूर के आक्रमण ने सल्तनत को उजाड़ कर रख दिया। तुगलकों के शासन के अंत (1412 ई.) तक, सल्तनत उत्तर भारत के एक छोटे से क्षेत्र तक सीमित रह गयी थी। इस दौरान, कई क्षेत्रों ने स्वतंत्र दर्जा प्राप्त कर लिया।
निष्कर्ष
तुगलक राजवंश मध्यकालीन भारत के एक गतिशील काल का उदाहरण है, जो प्रशासन और संस्कृति में उपलब्धियों के साथ-साथ आर्थिक कुप्रबंधन और सामाजिक अशांति से भी चिह्नित है। इस राजवंश ने सल्तनत को जहाँ एक ओर मज़बूत किया, वहीं इसके पतन ने भविष्य के क्षेत्रीय परिवर्तनों का मार्ग प्रशस्त किया, जिसने भारतीय इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी।
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
तुगलक राजवंश का संस्थापक कौन था?
तुगलक राजवंश का संस्थापक गयासुद्दीन तुगलक था।
तुगलक से पहले किस राजवंश ने दिल्ली पर शासन किया था?
तुगलक से पहले खिलजी राजवंश ने दिल्ली पर शासन किया था।
तुगलक राजवंश के बाद किसने शासन किया?
तुगलक वंश के बाद सैय्यद वंश का शासन आया।
तुगलक वंश का सबसे महान शासक कौन था?
तुगलक वंश का सबसे महान शासक मुहम्मद बिन तुगलक था।
