चीन के नेतृत्व वाला त्रिपक्षीय गठजोड़ भारत के लिए नई चुनौती

पाठ्यक्रम: GS2/अन्तर्राष्ट्रीय संबंध 

संदर्भ 

  • हाल ही में चीन ने कुनमिंग में चीन-दक्षिण एशिया प्रदर्शनी के दौरान पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ प्रथम त्रिपक्षीय बैठक की मेजबानी की। दक्षिण एशिया के लिए इसके दूरगामी परिणाम हैं -विशेषकर भारत के लिए।
कुनमिंग त्रिपक्षीय (जून 2025)
– यह बुनियादी ढांचे, व्यापार, समुद्री मामलों और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर केंद्रित था। चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश ने क्षेत्र में ‘शांति, समृद्धि और स्थिरता’ के लिए एक साझा दृष्टिकोण पर बल दिया। 
– इसके बाद चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान को शामिल करते हुए एक समान त्रिपक्षीय बैठक हुई, जिसमें चीन के भारत को बाहर रखने वाले क्षेत्रीय समूहों को संस्थागत बनाने की इच्छा का संकेत दिया गया, जबकि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के दायरे का विस्तार किया गया।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: इस गठजोड़ के पीछे के कारण

  • 1962 का युद्ध विरासत: भारत-चीन युद्ध (1962) ने चीन-पाकिस्तान गठजोड़ की नींव रखी।
    • चीन के लिए पाकिस्तान एक रणनीतिक बफर की भूमिका निभाता था ताकि भारत को सीमित किया जा सके।
    • पाकिस्तान के लिए चीन एक निरंतर आर्थिक और सैन्य सहयोगी के रूप में उभरा।
  • आर्थिक और सैन्य निर्भरता:
    • 2024 के अंत तक पाकिस्तान का चीन के प्रति $29 बिलियन से अधिक का कर्ज था।
    • पाकिस्तान के 80% हथियारों का आयात चीन से होता है।
    • संयुक्त राष्ट्र में, विशेष रूप से आतंकवाद संबंधी मामलों में, चीन पाकिस्तान को लगातार संरक्षण देता रहा है।
  • बांग्लादेश का उदय और प्रारंभिक तनाव:
    • 1971 में बांग्लादेश, पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से से अलग होकर बना।
    • चीन, जिसने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान का समर्थन किया था, ने बांग्लादेश को 1976 में मान्यता दी।
  • पुरानी रणनीति का पुनरुत्थान: ‘चीन-पाकिस्तान प्लस वन’
    • ऐतिहासिक आधार: 1965 से ही पाकिस्तान, चीन, पूर्वी पाकिस्तान और नेपाल का उपयोग कर भारत के पूर्वोत्तर को सिलिगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से काटने की रणनीति पर विचार कर रहा था।
    • वर्तमान रूप: उरी (2016), पुलवामा (2019), और पहलगाम (2025) जैसे आतंकी हमलों में भारत ने निर्णायक प्रतिक्रिया दी।
    • भारत की राजनयिक प्रतिक्रिया: संधियों का निलंबन, व्यापार रोकना, और लक्षित हमलों जैसी रणनीति अपनाई गई, जिससे पाकिस्तान की कमजोरियाँ उजागर हुईं।
    • चीन के विरुद्ध भारत की सैन्य प्रतिक्रिया: डोकलाम (2017) और गलवान (2020) जैसी घटनाओं में चीन को आश्चर्य में डाल दिया गया।

भारत पर प्रभाव

  • दो-मोर्चा रणनीतिक दबाव: उत्तर में चीन और पश्चिम में पाकिस्तान के साथ, अगर बांग्लादेश की संरेखण इन देशों के साथ बढ़ती है, तो भारत के पूर्वी मोर्चे पर तीसरे रणनीतिक खतरे की आशंका बनती है।
    • इससे भारत की सैन्य और राजनयिक क्षमता पर दबाव बढ़ सकता है।
  • घेराव की आशंका: यह गठजोड़ चीन की भारत को चारों ओर से घेरने की रणनीति को बल देता है, विशेषकर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के विस्तार और बांग्लादेश में संभावित सैन्य सहयोग के संदर्भ में।
  • सिलिगुड़ी कॉरिडोर की संवेदनशीलता:
    • सिलिगुड़ी कॉरिडोर (जिसे ‘चिकन नेक’ भी कहा जाता है) भारत के मुख्य भूभाग को पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ता है—यह अब और भी अधिक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो गया है।
    • बांग्लादेश में चीन या पाकिस्तान की बढ़ती उपस्थिति इस संकरी पट्टी के लिए खतरा बन सकती है।
  • संचालन संबंधी चुनौतियाँ:
    • पाकिस्तान द्वारा हालिया सैन्य तनावों में चीनी निर्मित हथियारों का उपयोग और
    • बांग्लादेश का पाकिस्तानी नौसैनिक अभ्यास (Aman-25) में भाग लेना, तीनों देशों की सेनाओं के बीच बढ़ती आपसी कार्यक्षमता का संकेत देता है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर प्रभाव

  • समुद्री पुनर्संरेखण:
    • यह गठजोड़ चीन को बांग्लादेश के माध्यम से बंगाल की खाड़ी में नौसैनिक पहुँच दिला सकता है, जो पाकिस्तान के ग्वादर एवं श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाहों की उपस्थिति को और अधिक प्रभावशाली बनाएगा।
    • इससे चीन की हिंद महासागर में शक्ति प्रक्षेपण क्षमता बढ़ सकती है।
  • क्षेत्रीय समूहों को कमजोर करना:
    • चीन की त्रिपक्षीय कूटनीति भारत-नेतृत्व वाले BIMSTEC और BBIN जैसे क्षेत्रीय प्रयासों को कमजोर कर सकती है।
    • SAARC पहले से ही भारत-पाक तनावों से निष्क्रिय है—यह और हाशिए पर जा सकता है।
  • क्वाड और ASEAN की प्रतिक्रिया:
    • अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत (QUAD) को इस नए अक्ष को ध्यान में रखते हुए अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति को पुनः परिभाषित करना पड़ सकता है।
    • ASEAN राष्ट्र, विशेषकर म्यांमार और श्रीलंका, इस प्रभाव के संघर्ष में खींचे जा सकते हैं।
  • आर्थिक दबाव:
    • चीन की पाकिस्तान और बांग्लादेश से गहराती आर्थिक साझेदारी—अवसंरचना, व्यापार और ऋण के माध्यम से—क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखला और निवेश प्रवाहों को भारत से दूर ले जा सकती है।

भारत की रणनीतिक पहल

  • मालदीव, उसके राष्ट्रपति के आरंभिक भारत-विरोधी दृष्टिकोण के बावजूद, आर्थिक रूप से भारत के करीब आया है।
  • नेपाल के BRI परियोजनाएँ, फंडिंग की समस्या के कारण रुकी हुई हैं।
  • श्रीलंका की नई सरकार भारत की रणनीतिक सीमाओं के अनुरूप दिखाई देती है।
  • बांग्लादेश के साथ बिगड़ते संबंधों के बावजूद भारत ने क्षेत्रीय ऊर्जा पहल में बाधा नहीं डाली।

भारत की संभावित रणनीति

  • रणनीतिक और सैन्य दृष्टिकोण:
    • पूर्वोत्तर भारत में विशेषकर सिलिगुड़ी कॉरिडोर के आसपास सीमा अवसंरचना को सुदृढ़ करना
    • बांग्लादेश में चीनी प्रभाव का मुकाबला करने हेतु बंगाल की खाड़ी में नौसैनिक उपस्थिति और निगरानी को मजबूत करना।
    • रक्षा क्षमताओं का आधुनिकीकरण और QUAD जैसे साझेदारों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास बढ़ाना।
  •  राजनयिक पहल:
    • उच्च स्तरीय यात्राएँ, आर्थिक प्रोत्साहन और जन-जन संपर्कों के माध्यम से बांग्लादेश के साथ विश्वास पुनर्स्थापना
    • अफगानिस्तान से रिश्तों को गहरा करना ताकि पाकिस्तान के प्रभाव को कम किया जा सके।
    • राजनयिक सीमाएं स्पष्ट करना कि उकसावे का आर्थिक और राजनीतिक दंड होगा।
  • आर्थिक रणनीति:
    • भारत-बांग्लादेश-नेपाल ऊर्जा गलियारे जैसी क्षेत्रीय व्यापार और कनेक्टिविटी परियोजनाओं का विस्तार करना।
    • चीन के निवेशों के विकल्प (विशेष रूप से अवसंरचना और डिजिटल क्षेत्र में) प्रस्तुत करना।
    • व्यापार प्रतिबंध या बंदरगाहों तक पहुँच को सीमित जैसे चयनात्मक आर्थिक संकेतों का उपयोग करना ताकि बिना पड़ोसियों को नाराज़ किए असहमति व्यक्त की जा सके।
  •  क्षेत्रीय गठबंधन निर्माण:
    • चीन को छोड़कर BIMSTEC और SAARC जैसे मंचों को मजबूत करना
    • त्रिपक्षीय और बहुपक्षीय वार्ताओं को बढ़ावा देना ताकि चीन के प्रभाव को कम किया जा सके।
    • पड़ोसी देशों में लोकतांत्रिक संस्थाओं और सिविल सोसायटी को समर्थन देना ताकि अधिनायकवादी प्रभाव का मुकाबला किया जा सके।
  •  सूचना एवं साइबर रणनीति:
    • भारत की छवि को अस्थिर करने वाले भ्रामक प्रचार अभियानों का मुकाबला करना।
    • साइबर सुरक्षा में निवेश कर चीन-समर्थित तकनीकी खतरों से महत्वपूर्ण अवसंरचना की रक्षा करना।
  •  रणनीतिक धैर्य और लचीलापन:
    • उकसावे पर अत्यधिक प्रतिक्रिया देने से बचना, बल्कि संयमित प्रतिक्रिया से नैतिक बढ़त बनाए रखना।
    • पड़ोसी देशों में शासन परिवर्तन के साथ व्यवहारिक कूटनीति अपनाना, न कि विचारधारात्मक कठोरता।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] पाकिस्तान एवं बांग्लादेश के साथ उभरते चीन के नेतृत्व वाले त्रिपक्षीय गठजोड़ दक्षिण एशिया में भारत के रणनीतिक परिदृश्य को कैसे पुनर्परिभाषित करता है, और इसके जवाब में भारत क्या उपाय अपना सकता है?

Source: TH

 

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