भारत में सूक्ष्मवित्त क्षेत्र: चुनौतियाँ एवं अवसर

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • भारत में सूक्ष्मवित्त क्षेत्र वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण रहा है, विशेष रूप से समाज के वंचित और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए। 
  • हालाँकि, इसने विगत् कुछ वर्षों में उल्लेखनीय लोचशीलता और अनुकूलनशीलता के साथ-साथ कई चुनौतियों का सामना किया है।

भारत में सूक्ष्मवित्त क्षेत्र का विकास और वर्तमान परिदृश्य

  • 1970 का दशक: गुजरात में स्व-रोजगार महिला संघ (SEWA) बैंक (1974 में स्थापित) का उद्देश्य महिलाओं को वित्तीय सेवाओं तक पहुँच प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाना था, जिससे वे छोटे व्यवसाय शुरू कर सकें और अपनी आजीविका में सुधार कर सकें।
  • 1990 का दशक (विकास और औपचारिकता): इसका प्राथमिक उद्देश्य गरीब परिवारों को ऋण प्रदान करना था, जिनमें से अधिकांश औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से बाहर थे।
    • नाबार्ड द्वारा प्रारंभ किया गया स्वयं सहायता समूह-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG-BLP);
    • SKS सूक्ष्मवित्त और बंधन जैसे सूक्ष्मवित्त संस्थानों (MFIs) की स्थापना, साथ ही स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का उदय;
  • स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY); 
    • वर्तमान परिदृश्य: MFIs सामूहिक रूप से 12-14 करोड़ परिवारों को सेवा प्रदान करते हैं, जिनका बकाया पोर्टफोलियो लगभग ₹7 लाख करोड़ है, जिसमें से लगभग ₹4 लाख करोड़ का योगदान संयुक्त देयता समूह (JLG) ऋण के माध्यम से किया जाता है।
    • मुख्य अभिकर्त्ताओं में NBFC-MFIs (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ – MFIs), बैंक, लघु वित्त बैंक (SFBs) और गैर-लाभकारी संस्थान शामिल हैं।
    • MFIs मुख्य रूप से महिला उद्यमियों, छोटे किसानों और सूक्ष्म उद्यमियों को सेवा प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें बिना किसी संपार्श्विक के ऋण प्राप्त करने में सहायता मिलती है।

भारत में सूक्ष्मवित्त क्षेत्र के सामने प्रमुख चुनौतियाँ

  • अति-ऋणग्रस्तता और ऋण चूक: वित्तीय साक्षरता की कमी और कुछ संस्थाओं द्वारा आक्रामक ऋण देने से ऋण का भार बढ़ता है, जिससे ऋण चूक बढ़ती है।
  • उच्च ब्याज दरें और परिचालन लागत: MFIs सामान्यतः पारंपरिक बैंकों की तुलना में अधिक ब्याज दर (18% से 26% तक) वसूलते हैं, जिसका मुख्य कारण उच्च परिचालन लागत है।
    • छोटे ऋणों की सेवा, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, उच्च लेनदेन लागत, कार्यबल व्यय और जोखिम प्रबंधन शामिल है।
  • विनियामक चुनौतियाँ और नीति अनिश्चितता: इस क्षेत्र को RBI द्वारा विनियमित किया जाता है, लेकिन बार-बार नीतिगत परिवर्तन अनिश्चितता उत्पन्न करते हैं।
    • ब्याज दर सीमा, ऋण प्रतिबंध और अनुपालन भार की शुरूआत MFI की परिचालन दक्षता को प्रभावित करती है।
    • घरेलू आय के लिए दस्तावेजी प्रमाण की कमी और केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) में डेटा अपलोड करने में देरी या चूक जैसी चुनौतियाँ सटीक देयता मूल्यांकन में बाधा डालती हैं।
  • आर्थिक झटकों के दौरान ऋण चुकौती संकट: कोविड-19, प्राकृतिक आपदाएँ, 2016 में विमुद्रीकरण, GST कार्यान्वयन के दौरान व्यवधान और IL&FS, DHFL या मुद्रास्फीति में वित्तीय संकट जैसे आर्थिक व्यवधानों के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में उच्च गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPAs) हुई हैं।
  • डिजिटल ऋण प्लेटफ़ॉर्म से प्रतिस्पर्धा: फिनटेक और डिजिटल ऋण प्लेटफ़ॉर्म के उदय ने पारंपरिक MFI के लिए एक नई चुनौती पेश की है। जबकि डिजिटल ऋणदाता त्वरित, संपार्श्विक-मुक्त ऋण प्रदान करते हैं, कई सीमित विनियमन के साथ काम करते हैं, जो संभावित रूप से उधारकर्त्ताओं के लिए जोखिम उत्पन्न करते हैं।
  • सीमित वित्तीय साक्षरता और जागरूकता: कई सूक्ष्मवित्त ग्राहकों में वित्तीय साक्षरता की कमी होती है, जिसके कारण खराब वित्तीय निर्णय, अत्यधिक उधार लेना और ऋण का अनुचित उपयोग होता है।

विकास एवं प्रगति के अवसर

  • डिजिटल और फिनटेक एकीकरण का विस्तार: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML) और डेटा एनालिटिक्स के उपयोग से ऋण मूल्यांकन में सुधार हो सकता है, जोखिम कम हो सकते हैं और परिचालन दक्षता बढ़ सकती है।
    • UPI, आधार-लिंक्ड बैंकिंग और डिजिटल KYC के उदय ने पहले ही सूक्ष्मवित्त प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित कर दिया है। 
  • ग्रामीण और कृषि वित्तपोषण पर ध्यान: ग्रामीण विकास और वित्तीय समावेशन पर सरकार के जोर के साथ, MFI अपनी सेवाओं का विस्तार कृषि, संबद्ध गतिविधियों और ग्रामीण व्यवसायों तक कर सकते हैं, किसानों एवं छोटे व्यापारियों के लिए अनुकूलित वित्तीय उत्पाद प्रदान कर सकते हैं। 
  • महिला-केंद्रित सूक्ष्मवित्त मॉडल: सूक्ष्मवित्त उधारकर्त्ताओं में महिलाओं की संख्या महत्त्वपूर्ण है।
    • महिला-केंद्रित ऋण मॉडल, स्वयं सहायता समूह (SHG) और महिला उद्यमिता कार्यक्रमों को मजबूत करने से सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा मिल सकता है। 
  • सतत और प्रभाव-संचालित सूक्ष्मवित्त: MFI हरित वित्त में विविधता ला सकते हैं, अक्षय ऊर्जा, जल संरक्षण और सतत कृषि पहलों का समर्थन कर सकते हैं। यह प्रभाव-संचालित वित्त पर वैश्विक फोकस के अनुरूप है।
  •  जोखिम प्रबंधन और क्रेडिट ब्यूरो समन्वय को मजबूत करना: क्रेडिट ब्यूरो (जैसे कि सिबिल और इक्विफैक्स) के साथ बेहतर समन्वय से अति-ऋणग्रस्तता को रोका जा सकता है, जिससे जिम्मेदारीपूर्ण ऋण सुनिश्चित हो सकता है।
    • जोखिम-आधारित मूल्य निर्धारण मॉडल और एआई-संचालित क्रेडिट निगरानी से चूक को और कम किया जा सकता है।

सरकार और नीति समर्थन

  • विनियामक सहायता: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) NBFC-MFI को विनियमित करता है, जिससे इस क्षेत्र में निष्पक्ष व्यवहार और स्थिरता सुनिश्चित होती है। सूक्ष्मवित्त इंस्टीट्यूशंस (विकास और विनियमन) विधेयक की शुरूआत ने उद्योग को और मजबूत किया है।
    • सरकार ने 2012 में सूक्ष्मवित्त इंस्टीट्यूशंस (विकास और विनियमन) विधेयक पारित किया, ताकि MFI को विनियामक निरीक्षण और मान्यता प्रदान की जा सके, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।
    • RBI और सूक्ष्मवित्त संस्थागत नेटवर्क (MFIN) ने जोखिमों को कम करने और सतत विकास सुनिश्चित करने तथा उधारकर्त्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए कठोर ऋण मानदंड पेश किए हैं।
    • नया RBI ढाँचा (2022): विभिन्न श्रेणियों के ऋणदाताओं में सूक्ष्मवित्त ऋण को सुसंगत बनाना।
    • मालेगाम समिति की रिपोर्ट और उसके बाद के विनियामक ढाँचे ने MFI की स्थिरता को पुनर्स्थापित करने में सहायता की।
  • वित्तीय समावेशन पहल: प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY), माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी (मुद्रा योजना), एम स्वनिधि और SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम जैसी सरकारी योजनाओं ने सूक्ष्मवित्त आउटरीच को बढ़ावा दिया है।
    • अन्य प्रमुख पहलों में स्टैंड-अप इंडिया योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) – आजीविका, माइक्रो यूनिट्स के लिए क्रेडिट गारंटी फंड (CGFMU), महिला SHGs के लिए ब्याज अनुदान योजना और दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (DAY-NULM) आदि शामिल हैं।

निष्कर्ष

  • भारत में सूक्ष्मवित्त क्षेत्र ने ऋण तक पहुँच प्रदान करके और वंचित समुदायों के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देकर लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया है।
  • जबकि अति-ऋणग्रस्तता, विनियामक अनिश्चितता और डिजिटल प्रतिस्पर्धा जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, फ़िनटेक, ग्रामीण वित्तपोषण, महिला सशक्तीकरण एवं सतत सूक्ष्मवित्त में उभरते अवसर इस क्षेत्र के भविष्य के विकास को गति दे सकते हैं।
  • प्रौद्योगिकी, नीति समर्थन और अभिनव वित्तीय मॉडल का लाभ उठाकर, भारतीय सूक्ष्मवित्त उद्योग देश के वित्तीय समावेशन लक्ष्यों और आर्थिक विकास को प्राप्त करने में अपनी भूमिका को मज़बूत कर सकता है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत में सूक्ष्मवित्त क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों एवं अवसरों को ध्यान में रखते हुए, वित्तीय समावेशन को बनाए रखते हुए तथा समाज के आर्थिक रूप से सुभेद्य वर्गों के हितों की रक्षा करते हुए, इसकी स्थिरता एवं विकास सुनिश्चित करने के लिए कौन से विशिष्ट उपाय और नीतिगत हस्तक्षेप आवश्यक हैं?

Source: BL

 

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