पाठ्यक्रम: GS2/सामाजिक मुद्दे
संदर्भ
- हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने के. उमा देवी बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मातृत्व अधिकारों को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने के लिए महत्वपूर्ण है।
भारत में मातृत्व अधिकारों के बारे में
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 ने भारत में मातृत्व अधिकारों की विधायी नींव रखी।
- इसका उद्देश्य प्रसव-पूर्व और प्रसवोत्तर अवधि के दौरान महिलाओं के रोजगार की शर्तों को विनियमित करना था।
- यह 12 सप्ताह के वेतन सहित अवकाश और मातृत्व के दौरान सेवा से हटाए जाने से सुरक्षा प्रदान करता था।
- हालाँकि, इसका लाभ मुख्यतः संगठित क्षेत्र तक सीमित था।
- मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017: इसका उद्देश्य उन संस्थानों में कार्य करने वाली महिलाओं के लिए भुगतान युक्त मातृत्व अवकाश को 12 से बढ़ाकर 26 सप्ताह करना है, जहाँ 10 या उससे अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं।
- इसके साथ भारत उन कुछ देशों में शामिल हो गया जहाँ इतनी लंबी अवधि का मातृत्व अवकाश प्रदान किया जाता है।
चिंताएँ और चुनौतियाँ
- संगठित बनाम असंगठित क्षेत्र का अंतर: भारत की 90% से अधिक कार्यरत महिलाएँ घरेलू कार्य , कृषि या ठेका श्रम जैसे असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जहाँ यह अधिनियम लागू नहीं होता।
- ये महिलाएँ प्रायः औपचारिक अनुबंध, स्वास्थ्य सुरक्षा या अधिकारों की जानकारी के बिना कार्य करती हैं।
- नियोक्ताओं पर वित्तीय भार : अवकाश की पूरी लागत नियोक्ता द्वारा वहन की जाती है, जिससे विशेष रूप से छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) द्वारा महिलाओं को नियुक्त करने में झिझक होती है।
- इसके चलते सामाजिक बीमा मॉडल या राज्य सहायता प्राप्त वित्तीय व्यवस्था की मांग उठी है।
- पितृत्व अवकाश की कमी: कानून में पिता के लिए कोई समकक्ष अधिकार नहीं है, जिससे देखभाल का भार महिलाओं पर असमान रूप से पड़ता है और लैंगिक भूमिकाओं की पुनरावृत्ति होती है।
- क्रियान्वयन संबंधी चुनौतियाँ: विशेष रूप से गैर-महानगरीय क्षेत्रों में अनुपालन और जागरूकता दोनों ही कम हैं।
- कई महिलाएँ अपने अधिकारों से अनभिज्ञ हैं या उनके पास शिकायत निवारण की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
मातृत्व अधिकारों के वित्तपोषण का तुलनात्मक विश्लेषण
- 82 देशों के एक तुलनात्मक अध्ययन के अनुसार, 44% देश मातृत्व लाभ को सामाजिक सुरक्षा योगदान से वित्तपोषित करते हैं, जबकि केवल 15% — जिनमें भारत भी शामिल है — सिर्फ नियोक्ता पर आधारित मॉडल का अनुसरण करते हैं, जिसे अब सतत नहीं माना जाता।
भारत में मातृत्व लाभ वित्तपोषण से संबंधित प्रमुख प्रयास
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): यह गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्रथम जीवित संतान के लिए ₹5,000 की नकद सहायता प्रदान करती है, जिसका उद्देश्य वेतन हानि की आंशिक भरपाई और स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करना है।
- कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC): यह नियोक्ता-कर्मचारी अंशदान आधारित प्रणाली है और नियोक्ता द्वारा वित्तपोषण वाले मॉडल की तुलना में अधिक स्थिर है। पात्र महिलाओं को 26 सप्ताह तक औसत दैनिक वेतन का 100% भुगतान किया जाता है। इसकी पहुँच केवल औपचारिक क्षेत्र के पंजीकृत श्रमिकों तक ही सीमित है।
- मातृत्व लाभ निधि (प्रस्तावित): इसका उद्देश्य विशेष रूप से SMEs और असंगठित क्षेत्र को सहायता देना है। यह सरकार, नियोक्ताओं और संभवतः कर्मचारियों द्वारा साझा अंशदान पर आधारित होगा।
- डॉ. मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी मातृत्व लाभ योजना (तमिलनाडु): यह योजना चरणबद्ध रूप से ₹18,000 की सहायता प्रदान करती है, जो कि केंद्र सरकार की राशि से काफी अधिक है।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी
- मातृत्व एक मौलिक अधिकार: सर्वोच्च न्यायालय ने मातृत्व अधिकारों को जीवन और गरिमा के अधिकार का भाग घोषित किया, जिससे इसकी कानूनी स्थिति एवं प्रभावशीलता में वृद्धि हुई। यह निर्णय निम्नलिखित अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशनों पर आधारित है:
- मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा
- महिला भेदभाव उन्मूलन संधि (CEDAW)
- ILO मातृत्व संरक्षण कन्वेंशन C183 (2000)
- UN आर्थिक एवं सामाजिक परिषद के उपकरण
- ILO संदर्भ: न्यायालय ने “Care at Work” – 2022 (ILO रिपोर्ट) का उल्लेख किया और नोट किया कि 123 देश पूर्ण भुगतान युक्त मातृत्व अवकाश प्रदान करते हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर 90% माताओं को लाभ मिलता है।
- भारत 26 सप्ताह का मातृत्व अवकाश देकर अब उन 42 देशों में शामिल है जो ILO C183 के 18 सप्ताह के मानक से अधिक लाभ प्रदान करते हैं।
- मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की पुन: पुष्टि: न्यायालय ने इस अधिनियम को आदर्श विधायी ढाँचे के रूप में पुनः स्वीकार किया और कहा कि राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि सभी रोजगार क्षेत्रों में सेवा शर्तों के अनुरूप, अभेदभाव रहित रूप में मातृत्व लाभों का कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाए।
आगे की राह
- ILO की “वर्ल्ड सोशल प्रोटेक्शन रिपोर्ट 2024–26” में बताया गया है कि अधिकांश राष्ट्र केवल नियोक्ता आधारित मॉडल की तुलना में कर-आधारित या अंशदान आधारित योजनाओं पर निर्भर करते हैं।
- इसमें सार्वजनिक सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ, कर वित्तपोषित सहायता मॉडल, और असंगठित व स्वयं-रोज़गार वाली महिलाओं को शामिल करना सम्मिलित है।
- मातृत्व अधिकारों का वित्तपोषण: ऐतिहासिक रूप से, बॉम्बे मातृत्व लाभ अधिनियम, 1929 ने पूरे भार को केवल नियोक्ताओं पर डाला था।
- लेकिन आधुनिक नीति मॉडल (जैसे कि ILO द्वारा अनुशंसित) सामाजिक बीमा, सार्वजनिक वित्तपोषण या मिश्रित मॉडल को वरीयता देते हैं ताकि नियोक्ताओं पर अत्यधिक भार न पड़े और लैंगिक भेदभावपूर्ण भर्ती से बचा जा सके।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] भारत में मातृत्व अधिकारों के वित्तपोषण से जुड़ी चुनौतियों और नीतिगत निहितार्थों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। |
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