दिवालियापन समाधान का पुनर्गठन

पाठ्यक्रम: GS3/भारतीय अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • 2016 में प्रारंभ की गई दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) को भारत की दिवाला प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए डिज़ाइन किया गया था, जिसका उद्देश्य समय पर समाधान एवं परिसंपत्ति मूल्य को अधिकतम करना था।
    • हालाँकि, जैसे-जैसे कानून परिपक्व हुआ है, कुछ मुद्दे उभरे हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है, विशेष रूप से संस्थागत क्षमता और प्रक्रियात्मक दक्षता के संबंध में।
IBC की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, 2016
– IBC भारत में सभी संस्थाओं – कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत दोनों – के दिवालियेपन समाधान के लिए एक व्यापक कानून है। इसका उद्देश्य भारत में कॉर्पोरेट संकट समाधान व्यवस्था में सुधार करना है।
IBC की आवश्यकता:
1. भारत की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) और ऋण चूक में वृद्धि;
2. ऋणदाता-इन-पॉज़ेशन प्रणाली के विपरीत ऋणदाता-इन-कंट्रोल मॉडल के साथ समयबद्ध तंत्र बनाने के लिए पहले से उपलब्ध कानूनों को समेकित करना।
3. वर्तमान ऋण वसूली तंत्रों की सीमित प्रयोज्यता और प्रतिबंध जैसे:
1.1 बैंकों और वित्तीय संस्थानों को देय ऋणों की वसूली अधिनियम (1993);
1.2 वित्तीय परिसंपत्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम (SARFAESI) 2002;
1.3 लोक अदालतें;
1.4 ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRTs);

IBC 2016 की मुख्य विशेषताएँ

  • दिवालियापन का समाधान: IBC कंपनियों, व्यक्तियों और साझेदारी फर्मों के लिए अलग-अलग दिवालियापन समाधान प्रक्रियाएँ निर्धारित करता है।
    •  यह लेनदारों और देनदारों दोनों को दिवालियापन समाधान प्रक्रिया प्रारंभ करने की अनुमति देता है।
  •  समयबद्ध समाधान: समाधान प्रक्रिया 180 दिनों के अंदर पूरी होनी चाहिए, जिसे यदि आवश्यक हो तो 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
  •  दिवालियापन का नियामक: भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) दिवालियापन कार्यवाही की देखरेख करता है और इसके साथ पंजीकृत संस्थाओं को विनियमित करता है।
    • बोर्ड में विधि एवं न्याय मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के प्रतिनिधि शामिल हैं। 
  • न्यायाधिकरण: राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) कंपनियों और सीमित देयता भागीदारी के लिए दिवालियापन समाधान को संभालता है।
    • ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) व्यक्तियों और साझेदारी फर्मों के लिए दिवालियापन समाधान की देखरेख करता है। 
  • कॉर्पोरेट दिवालियापन के लिए दो-चरणीय प्रक्रिया: 
    • पहला चरण: दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (IRP), जहाँ लेनदार देनदार के व्यवसाय को जारी रखने की व्यवहार्यता का आकलन करते हैं। 
    • दूसरा चरण: परिसमापन, यदि पुनरुद्धार के प्रयास विफल हो जाते हैं, जहाँ देनदार की संपत्ति लेनदारों के बीच वितरित की जाती है।
  • लाइसेंस प्राप्त दिवालियापन पेशेवर: वे दिवालियापन प्रक्रिया का प्रबंधन करते हैं और प्रक्रिया के दौरान देनदार की संपत्ति को नियंत्रित करते हैं।
    • वे समाधान योजनाओं का मसौदा तैयार करने और संहिता के अनुपालन को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • दावों की प्राथमिकता: IBC दावों का एक स्पष्ट पदानुक्रम स्थापित करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि सुरक्षित लेनदारों को पहले भुगतान किया जाता है, उसके बाद असुरक्षित लेनदारों तथा परिचालन लेनदारों को भुगतान किया जाता है।
  • कॉर्पोरेट प्रशासन को बढ़ावा देना: दिवालियापन समाधान के लिए एक संरचित एवं पारदर्शी प्रक्रिया प्रदान करके, IBC कॉर्पोरेट संस्थाओं के बीच कॉर्पोरेट प्रशासन और जवाबदेही को बढ़ावा देता है।

प्रमुख चुनौतियाँ

  • संस्थागत चुनौतियाँ: IBC का प्रभावी कार्यान्वयन राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) और उसके अपीलीय निकाय, राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) के प्रदर्शन पर निर्भर करता है।
    • इन न्यायाधिकरणों को IBC के अंतर्गत कॉर्पोरेट दिवालियापन और कंपनी अधिनियम के तहत मामलों से निपटने का दोहरा भार उठाना पड़ता है।
    • यह उस स्थिति से ग्रस्त है जिसे ‘अस्थायी वियोजन’ कहा जा सकता है।
क्या आप जानते हैं?
– राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) की स्थापना 1999 में एराडी समिति की सिफारिशों के आधार पर की गई थी और इसे 2016 में क्रियान्वित किया गया था
– इसकी संरचना बीते युग की आर्थिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करती है, जिससे यह समकालीन मांगों को पूरा करने में असमर्थ है।
  • प्रक्रियागत विलंब: NCLT दिवालियापन समाधान और विलय एवं एकीकरण जैसे कॉर्पोरेट लेनदेन के लिए बाधा बन गया है।
    • 63 सदस्यों की स्वीकृत संख्या के साथ, जिनमें से कई अपना समय कई पीठों में बाँटते हैं, NCLT को मामलों का भार कुशलतापूर्वक संभालने में कठिनाई होती है।
  • समाधान में विलंब: भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में दिवाला समाधान के लिए औसत समय बढ़कर 716 दिन हो गया, जो वित्त वर्ष 2022-23 में 654 दिन था, जो निर्धारित 330 दिन की समय-सीमा को पार कर गया।
    • मुकदमेबाजी, अकुशलता और हितधारकों के मध्य तैयारी की कमी के कारण यह प्रायः काफी लंबा खिंच जाता है।
    • लम्बी समाधान प्रक्रिया के दौरान परिसंपत्ति का मूल्य प्रायः कम हो जाता है, जिससे ऋणदाता की वसूली कम हो जाती है।
  • वसूली दरों में गिरावट: IBC के अंतर्गत वसूली दरें मार्च 2019 में 43% से घटकर सितंबर 2023 तक 32% हो गई हैं, जिससे प्रक्रिया की प्रभावशीलता के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं।

अन्य प्रमुख चिंताएँ

  • संस्थागत क्षमता की गुणवत्ता: नियुक्ति की वर्तमान पद्धति में डोमेन अनुभव की आवश्यकता को नजरअंदाज किया जाता है।
  • सदस्यों में प्रायः उच्च-दांव वाले दिवालियापन मामलों में शामिल सूक्ष्म जटिलताओं को समझने के लिए आवश्यक डोमेन ज्ञान का अभाव होता है।
  • नौकरशाही की भूलभुलैया: NCLTs के समक्ष तत्काल सूचीबद्धता के लिए कोई प्रभावी प्रणाली मौजूद नहीं है।
    • रजिस्ट्री के कर्मचारियों को किसी विशेष मामले को सूचीबद्ध करने या न करने के व्यापक अधिकार दिए गए हैं, जिससे समाधान प्रक्रिया और जटिल हो जाती है।
  • अविकसित ऋण पारिस्थितिकी तंत्र: मजबूत ऋण सूचना प्रणालियों की कमी और संकटग्रस्त परिसंपत्ति बाजार समाधान प्रभावशीलता को बाधित करते हैं।

प्रस्तावित संशोधन और हितधारक सहभागिता

  • भारतीय दिवाला एवं शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) ने कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया विनियमों में संशोधन का प्रस्ताव किया है।
    • प्रमुख सुझावों में पंजीकृत मूल्यांकनकर्त्ताओं को अलग-अलग परिसंपत्ति वर्ग मूल्यांकन के बजाय संपूर्ण कॉर्पोरेट देनदार के लिए व्यापक मूल्यांकन रिपोर्ट प्रस्तुत करने की आवश्यकता शामिल है। इसका उद्देश्य दक्षता और पारदर्शिता बढ़ाना है।
  • वैकल्पिक विवाद समाधान के रूप में मध्यस्थता की खोज: IBBI की विशेषज्ञ समिति ने IBC के अंतर्गत वैकल्पिक विवाद समाधान पद्धति के रूप में मध्यस्थता को सम्मिलित करने की सिफारिश की है।
    • इसका उद्देश्य मामलों के त्वरित समाधान तथा पक्षों को स्वेच्छा से न्यायालय के बाहर समझौता करने की अनुमति देकर न्यायिक संस्थाओं पर भार कम करना है।
    • समिति ने दिवालियापन मामलों के लिए एक विशेष मध्यस्थता ढाँचा स्थापित करने का सुझाव दिया है, जो वर्तमान IBC ढाँचे के अंदर कार्य कर सकता है।

अन्य सुझाए गए सुधार

  • प्री-पैकेज्ड इन्सॉल्वेंसी को सुविधाजनक बनाना: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिए रूपरेखा ने समाधानों में तीव्रता लाने में आशाजनक परिणाम दिखाए हैं।
    • इस तंत्र को अन्य क्षेत्रों में विस्तारित करने से विलंब और लागत में और कमी आ सकती है।
  • समाधान-केंद्रित दृष्टिकोण को बढ़ावा देना: ढाँचे में परिसमापन की तुलना में समाधान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
    • व्यवसायों को चालू रखने के लिए निविदाकर्त्ताओं के लिए नवीन पुनर्गठन रणनीतियों और प्रोत्साहनों पर अधिक बल देना आवश्यक है।
  • स्थिरता एकीकरण: दिवालियापन समाधानों में पर्यावरण, सामाजिक एवं शासन (ESG) मानदंडों को सम्मिलित करने से दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित हो सकती है और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ संरेखित किया जा सकता है।
    • अन्य सुधार जैसे स्पष्ट दिशा-निर्देशों के माध्यम से मुकदमेबाजी को सुव्यवस्थित करना, NCLT की संस्थागत क्षमता और परिचालन दक्षता को मजबूत करना तथा व्यावसायिकता को प्रोत्साहित करना।

वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • गतिशील वैश्विक आर्थिक परिवेश में नई चुनौतियों, जैसे सीमापार दिवालियापन, डिजिटल अर्थव्यवस्था में व्यवधान और स्थिरता की आवश्यकता, के अनुकूल होने के लिए दिवालियापन ढाँचे पर पुनर्विचार करना आवश्यक हो गया है।
    • सीमा-पार दिवालियापन पर UNCITRAL मॉडल कानून को अपनाने से विभिन्न न्यायक्षेत्रों में परिसंपत्तियों या ऋणदाताओं से जुड़े मामलों में सहयोग और समन्वय सुनिश्चित हो सकता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम जैसे परिपक्व न्यायक्षेत्रों से सीख लिया जा सकता है, जो लचीलेपन, पूर्व-निर्धारित दिवालियापन योजनाओं और देनदार-इन-पॉजेशन (DIP) वित्तपोषण पर बल देते हैं।

निष्कर्ष और आगे की राह

  • दिवालियापन समाधान का तात्पर्य केवल बकाया राशि वसूलना नहीं है, बल्कि आर्थिक मूल्य को संरक्षित करना तथा जिम्मेदारीपूर्वक उधार लेने और देने की संस्कृति को बढ़ावा देना भी है।
    • IBC की वर्तमान सीमाओं को दूर करने के लिए इसमें नया ढाँचा लाकर भारत एक व्यापार-अनुकूल और लचीली अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकता है।
  • ऋण बाजारों को मजबूत करने, निवेशकों का विश्वास बढ़ाने और एक स्वस्थ वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत दिवालियापन समाधान ढाँचा आवश्यक है।
    • लक्षित सुधारों के साथ, IBC भारत की आर्थिक विकास प्रक्रम की आधारशिला बनी रह सकती है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत में दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 के वर्तमान ढाँचे का विश्लेषण कीजिए। इसके कार्यान्वयन में आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए तथा इसके उद्देश्यों को अधिक प्रभावी ढंग से प्राप्त करने के लिए दिवालियापन समाधान प्रक्रिया को पुनः तैयार करने हेतु सिफारिशें प्रस्तावित कीजिए।

Source: TH